रविवार, 12 अप्रैल 2015

स्‍टीफन ज्‍वाइग की कहानी शतरंज



प्रसिद्ध लेखक स्‍टीफन ज्‍वाइग की एक कहानी शतरंज के खेल के बारे में है।

कहानी में एक कैदी है जिस पर मुकदमा चल रहा है। उसे इस अरसे में एक अकेली कोठरी में रखा गया है। कमरे में कुछ भी नहीं है। एक बार उसे सुनवाई के लिए दूसरी इमारत में ले जाया जाता है। कैदी सुनवाई वाले चेम्‍बर के बाहर अपनी बारी का इंतजार कर रहा है। तभी एक अधिकारी आता है और अपना ओवर कोट वहीं टाँग कर भीतर जाता है। कैदी को अचानक कोट की जेब से झांकती एक किताब नज़र आती है। किताब देख कर ही उसका ब्‍लड प्रेशर हाई हो जाता है। पढ़ने के लिए किताब....। वह अपने आपको रोक नहीं पाता और आखिर किताब चुरा ही लेता है।
जब तक वह सुनवाई के बाद अपनी कोठरी में नहीं पहुंच जाता, किताब का ख्‍याल उसे रोमांचित किये रहता है। वह बहुत प्‍यार से, उत्‍सुकता से किताब खोलता है। किताब देखते ही उसका सारा उत्‍साह मंद पड़ जाता है। किताब में विश्‍व प्रसिद्ध खिलाड़ियों की शतंरज की दो सौ चालें समझायी गयी हैं। वह किताब एक कोने  में फेंक देता है। लेकिन कहावत है कि न मामे से काणा मामा अच्‍छा होता है। वह किताब उठाता है और धीरे धीरे उसमें ध्‍यान  लगाता है। किताब में उसे रस आने लगता है। वह रोटी के टुकड़े बचा बचा कर उन्‍हें सुखाकर गोटियां बनाता है। फर्श पर लकीरें खींच कर शतरंज बनाता है। और दी गयी चालों के हिसाब से खेलता है। उसका समय अच्‍छा गुजरने लगता है।
एक अरसा बीत जाने पर वह सारी चालें इतनी बार खेल चुका है कि अब उसे खेलने के लिए शतरंज और गोटियों की जरूरत ही नहीं रही। उसे सारी चालें याद हो गयी हैं और वह मन ही मन खेल कर टाइम पास करता है।
बाद में छूटने पर एक बार वह समुद्री यात्रा कर रहा होता है। वहीं दो खिलाड़ियों में शतरंज का रोमांचक खेल चल रहा है। वह एक दर्शक की हैसियत से खेल में दखल देता है और अपनी चालों से सबको हैरान कर देता है। वहीं वह यह भेद खोलता है कि किस तरह से शतरंज की चालों वाली किताब चुरा कर उसने इस खेल में महारत हासिल की है।

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