उमा शंकर जोशी (21 जुलाई 1911 – 19 दिसम्बर 1988) प्रख्यात गुजराती कवि और स्कॉलर रहे। उन्हें कविता संग्रह निशीथ के लिए 1967 में ज्ञानपीठ सम्मान दिया गया था। एक मामूली अध्यापक से अपना कैरियर शुरू करते हुए वे गुजरात विश्वविद्यालय के उप कुलपति के पद तक पहुंचे। गुजराती जन मानस में उनके प्रति बहुत आदर है।
उनके पास बहुत से लेखक मित्र और प्रकाशक अपनी किताबें भेंट करने के लिए आते थे। सौजन्यवश वे किताबें स्वीकार करने से मना भी न कर पाते और चाह कर भी पढ़ने के लिए समय न निकाल पाते।
जब भी कोई लेखक अपनी किताब उन्हें सप्रेम भेंट करता तो वे भेंटकर्ता के सामने ही किताब दोनों हाथों में थामते, पाँच सेकेंड के लिए आंखों से लगाते और फिर आंखें बंद करके 10 सेकेंड के लिए सीने से लगा लेते। तभी वे किताब नीचे रखते। भेंटकर्ता अपनी पुस्तक को इतने बड़े लेखक द्वारा दिये जा रहे सम्मान से गदगद हो जाता।
एक बार उनसे एक मित्र ने पूछा – मैं आपको भेंट की जाने वाली हर किताब को इसी तरह का सम्मान देते हुए देखता हूं। क्या सारी किताबें आपके लिए इतने सम्मान के योग्य होती हैं।
उमा शंकर जोशी बहुत भोलेपन से बोले – नहीं भाई, ऐसा तो नहीं है। लोग इतनी किताबें दे जाते हैं कि दस जनम में न पढ़ सकूं। अब यही करता हूं कि मैं किताब को पहले आंखों से और फिर दिल से लगाता हूं तो इस तरह किताब मेरे भीतर उतर जाती है। तब उसे पढ़ने की जरूरत नहीं रहती।
उनके बारे में उनकी वेबसाइट umashankarjoshi.in से और जानकारी ली जा सकती है।
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