(यह पोस्ट कुछ महीने पहले किसी अन्य संदर्भ से डाली गयी थी। इसका खास महत्व है इसलिए दोबारा आपके लिए)
हमारी एक मराठी भाषी मित्र हैं अनिला फड़नवीस। लिखती तो नहीं लेकिन पढ़ती खूब हैं। मूड आये तो अपनी ही खुशी के लिए कुछ न कुछ अनुवाद कर लेती हैं। एक संस्थान में लाइब्रेरियन हैं। अगले महीने नौकरी से रिटायर हो रही हैं।
एक दिन मैंने यूं ही पूछ लिया कि अब आगे के लिए क्या योजना है। उन्होंने जो कुछ बताया वह मेरे लिए हैरान करने वाला तो था ही, सोच को एक नयी दिशा देने वाला भी था।
बताया उन्होंने - अरे अपनी मंथली किटी पार्टी है ना उसी का और विस्तार करना है। पहले उसे पाक्षिक और फिर वीकली करने की योजना है। उसकी और यूनिट्स खोलने का काम करना है।
मैं हैरान हुआ – आप और किटी पार्टी। मैं सोच भी नहीं सकता कि आप किटी पार्टी में जाती होंगी और रिटायरमेंट के बाद उसी को पूरा समय देने के बारे में सोच रही हैं।
वे हँसने लगीं – आप जो समझ रहे हैं, ये वो वाली किटी पार्टी नहीं है। ये किताबों वाली किटी पार्टी है।
दोबारा हैरान होने की बारी थी - किटी पार्टी किताबों वाली। ये कैसी किटी पार्टी होती है।
बताया उन्होंने – हम बीस लेडीज़ का एक ग्रुप है। सब की सब हर महीने एक बार आखिरी रविवार को मिलती हैं। बारी बारी से एक एक की मेहमान बनती हैं। जैसे किटी पार्टी की मेम्बर्स मिलती हैं, वैसे ही। हम भी कंट्रीब्यूट करती हैं उनकी तरह। सौ रुपया महीना। खाती पीती भी हैं लेकिन हमारे मिलने का मकसद अलग होता है। जिसकी बारी आती है, वह इन दो हजार रुपयों की अपनी पसंद की नयी किताबें मंगवाती है। मराठी में आज भी कमीशन के बाद सौ रुपये में स्तरीय और अच्छी किताबें मिल जाती हैं।
इस किटी पार्टी में तीन काम होते हैं। पिछली पार्टियों में ले जायी गयी किताबें इस पार्टी में सब वापिस लाती हैं। पहले से तय योजना के अनुसार सबके घर अलग अलग साहित्यिक पत्रिकाएं आती हैं। वे भी लायी जाती हैं। बहुत रोमांचक होते हैं वे पल जब सब सामने रखी ढेर सारी नयी और पुरानी किताबों और पत्रिकाओं में से सबको अपनी पसंद की किताबें और पत्रिकाएं चुनने का मौका मिलता है। ये अदला बदली हर बार चलती रहती है। हर बार सबके हिस्से में न पढ़ी गयी पुरानी किताबें और एक नयी किताब आती है। पत्रिकाएं भी।
उसके बाद मेजबान सदस्या की ओर से खाना पीना होता है। पढ़ी गयी किताबों पर पूरी गंभीरता से बात होती है। कुछ किताबों के सार बताये जाते हैं और कुछ किताबों की समीक्षा की जाती है। सब की सब उन किताबों से गुजरने के अनुभव शेयर करती हैं। उन किताबों की भी बात होती है जो इनके अलावा किसी के हाथ लग गयी होती है और पढ़ ली गयी होती है।
पार्टी के आखिर में अगली मेजबान के नाम की पर्ची निकाली जाती है, अगली बार खरीदी जाने वाली किताबों के नाम सुझाये और कुछ हद तक तय किये जाते हैं और ये तय किया जाता है कि अगली बार की किटी पार्टी में कौन कौन किताबों पर बोलेंगी। हां, दीवाली वाले महीने में इसमें थोड़ा फेर बदल होता है। दीवाली के मौके पर मराठी में सौ से ज्यादा पत्रिकाएं अपने विशेषांक निकालती हैं। कई पत्रिकाएं तो ऐसी हैं जो सिर्फ दीवाली पर वार्षिक अंक ही निकालती हैं। इन पत्रिकाओं का हम बेसब्री से इंतजार करते हैं। वर्ष का सर्वश्रेष्ठ साहित्य इनमें छपता है। पूजा के अवसर पर जिस तरह बांग्ला भाषा में सैकड़ों पत्रिकाएं छपती हैं और कई बांग्ला लेखक इन्हीं पत्रिकाओं के माध्यम से घर घर पहुंचते हैं, वही परम्परा मराठी में भी है। आपको हैरानी होगी कि मराठी का हर बड़ा लेखक हर घर के लिए अपना-सा और परिचित नाम है और उन्हें घर घर पहुंचाने में इन दीपावली अंकों की बहुत बड़ी भूमिका है। दीपावली से पहले ही हर आफिस में काम करने वाले दस बीस लोग आपस में ग्रुप बना लेते हैं और सामूहिक रूप से पत्रिकाओं के दीपावली अंक खरीदते और मिल जुल कर पढ़ते हैं।
हम चाह कर भी सारी या अपनी पसंद की चुनिंदा पत्रिकाएं नहीं खरीद सकते। हजारों रुपये चाहिये और पढ़ने के लिए ढेर सारा समय भी। ऐसे में हमारी किटी पार्टी ही यह काम करती है। सब मेम्बर अपनी अपनी पसंद की पत्रिकाएं सुझाती हैं और फिर बारी बारी से पढ़ती और अपने पास रखती हैं।
मैं हक्का बक्का। रोमांचित भी। अवाक भी। यही पूछ पाया – इसका योजना का विस्तार आप किस रूप में करना चाह रही हैं।
वे मुस्कुरायी - बहुत आसान है। मराठी माणूस को किताब, पत्रिका, नाटक और संगीत के कार्यक्रम के लिए पूछना नहीं, बताना पड़ता है। बाकी काम बहुत आसान है।
मैं अपनी तरफ से क्या कहूं।
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