लेखक जब कहते हैं कि नहीं लिखा जा रहा या राइटर्स ब्लॉक परेशान कर रहा है, मैं नहीं मानती कि ऐसी कोई चीज़ होती है। जरा सोचिये- जब आप कॉलेज में होते हैं और आपको इम्तिहान में पेपर लिखना होता है। आप बेशक परेशान होते हैं लेकिन ऐसा हमेशा होता है ना कि आप पेपर से एक रात पहले किसी न किसी तरह तैयारी कर ही लेते हैं। राइटर्स ब्लॉक और कुछ नहीं होता सिवाय इसके कि आपके पास बहुत सारा समय होता है। अगर आपके पास लिखने के लिए सीमित समय हो तो आप बैठ जाते हैं और लिखना शुरू कर देते हैं। हो सकता है, आप रोजाना बहुत अच्छा न लिख पायें लेकिन आपके पास हमेशा ये सुविधा रहती है कि खराब लिखे पेज का संपादक कर सकते हैं। आप कोरे पेज का संपादन नहीं कर सकते। ये कहना है अड़तालीस वर्षीय अमेरिकी लेखिका जोडी पिको का। वे पिछले 22 वर्ष में 23 उपन्यास लिख चुकी हैं। हर नौ महीने में एक उपन्यास लिख लेती हैं। इन उपन्यासों की 35 देशों में 4 करोड़, जी हां चार करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं। उनके पिछले सात उपन्यास न्यू यॉर्क में सबसे ज्यादा बिकने वाले उपन्यास रहे हैं। कई फिल्में बनी हैं उनके उपन्यासों पर।
अपना सारा लेखन उन्होंने अपने तीन बच्चों को पूरा समय देते हुए किया है। उनकी आठवीं किताब के बाद उनके पति ने अपना सारा समय घर को दिया और जोडी ने लेखन को। आम तौर पर वे छुट्टी के दिन नहीं लिखती। हां, एक उपन्यास के खत्म करते ही अगले दिन दूसरा उपन्यास शुरू कर देती हैं। बस, पहली ही लाइन शानदार होनी चाहिये। वे कई बार एक से ज्यादा किताबों पर भी काम कर रही होती हैं। एक की रिसर्च चल रही होती है जिसे वे बहुत अधिक महत्व और समय देती हैं, दूसरे की प्रूफ रीडिंग का काम चल रहा होता है और तीसरी किताब का खाका दिमाग में शेप ले रहा होता है। ठीक उसी तरह जैसे हमारे कम्प्यूटर स्क्रीन पर एक से ज्यादा फाइलें खुली होती हैं। उनके कुछ उपन्यास हैं - Songs of the Humpback Whale (1992), Harvesting the Heart (1994), Picture Perfect (1995), Mercy (1996), The Pact (1998),Keeping Faith (1999), Plain Truth (2000), Salem Falls (2001), Perfect Match (2002), Second Glance (2003), My Sister's Keeper (2004),Vanishing Acts (2005), The Tenth Circle (2006), Nineteen Minutes(2007), Change of Heart (2008), Handle With Care (2009), House Rules (2010), and Sing You Home (2011), Lone Wolf (2012)।
एक उपन्यास Between The Lines (2012) उन्होंने अपनी बेटी सामंता वान लीअर के साथ मिल कर लिखा है।
एक सवाल मुझे परेशान कर रहा है कि आखिर क्या जादू करती है जोडी अपने लेखन में कि उसके उपन्यासों की चार करोड़ प्रतियां बिकती हैं और हिंदी लेखक के उपन्यास की कुल 300 प्रतियां छपती हैं जिन्हें खपाने में प्रकाशक पाँच बरस लगा देता है।
आप लेखकों पर लिखी गयी मेरी पिछली पोस्ट मेरे ब्लॉग www.kathaakar.blogspot.com पर पढ़ सकते हैं।
1 टिप्पणी:
अंग्रजी उपन्यासों की चार करोड़ प्रतियों क बिकना और हिंदी कथा-उपन्यास की 400 प्रतियों का भी पांच साल तक न बिक पाना ...इस खाई के बीच कई पेच हैं जो कुच्ह मेरी समझ में आए हैं वे ये हैं:
1. विदेशों में जो कुछ भी साहित्य लिखा/बेचा जाता हैं उसमें मार्केटिंग/पब्लिशिन्ग अजेन्ट की भूमिका प्रमुख होती है जो लेखक का भी हित साधता है। हिंदी साहित्य जगत में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। 2. हिंदी भाषा की अपनी सीमा है और हमारे यहां शिक्षा का स्तर भी पर्याप्त नहीं है। हिंदी के प्रकाशक लेखकों की दयनीय अवस्था से भलीभांति परिचित हैं और वे अब तो खुल कर कहते हैं -जो पैसे देगा उसको छापेंगे...रोयल्टी की बात तो भूल जाइए अब तो संस्करण भी 200-250 प्रतियों के हो गये लेखकीय प्रतियां दो-ढाई तक सीमित हो गईं. 3) हिंदी में मित्र लेखक/पाठक सब भेंट चाह्ते हैं, खरीदना कोई नहीं चाहता 4) अपवादों को छोड़ दें हिंदी लेखक की रचनाओं के पीछे शोध द्रृष्टि औ्रर पाठकों की बदलती रुचि से सामंजस्य बैठाने की क्षमता का अभाव है..यह प्रवचन लगभग 10 बिंदुओं तक तो जा ही सकता है..पर चलिए यहीं खत्म करते है< क्योंकि जिसको पढ़ाओ वही कहेगा -आपकी बात तो सही है पर हम अकेले क्या करें...
एक टिप्पणी भेजें