सबसे ज्यादा वे किताबें पढ़ी जाती हैं जो पाठक कहीं से चुरा कर लाता है। किताब चुराने का जोखिम तभी उठाया जायेगा जब किताब नजर तो आ रही हो लेकिन हमारे पास न हो। कई बड़े लेखक किताब चोर रहे हैं। ये एक कला है।
फिर उन किताबों का नम्बर आता है जिन्हें हम उधार मांग कर तो लाते हैं लेकिन वापिस नहीं करते। करना ही नहीं चाहते। जिसके यहां से उधार लाये थे, उसके घर आने पर छुपा देते हैं।
फुटपाथ पर बिक रही अचानक नज़र आ गयी वे किताबें भी खूब पढ़ी जाती हैं जिनकी हम कब से तलाश कर रहे थे।
पूरे पैसे दे कर खरीदी गयी किताबें भी अपना नम्बर आने पर आधी अधूरी पढ़ ही ली जाती हैं।
लाइब्रेरी से लायी गयी किताबें पूरी नहीं पढ़ी जातीं और उन्हें वापिस करने का वक्त आ जाता है।
रोज़ाना डाक में उपहार में आने वाली या किसी आयोजन में अचानक लेखक के सामने पड़ जाने पर भेंट कर दी गयी किताबें कभी नहीं पढ़ी जातीं। कई बार तो भेंट की गयी किताबें भेंटकर्ता के जाते ही किसी और पाठक के पास ठेल दी जाती हैं। वह आगे ठेलने की सोचता रहे या बिन पढ़े एक कोने में रखे रहे।
कोर्स की किताबें पढ़ने में हमारी नानी मरती है और समीक्षा के लिए आयी किताबें भी तब तक पढ़े जाने का इंतज़ार करती रहती हैं जब तक संपादक की तरफ से चार बार अल्टीमेटम न मिल जाये। तब भी वे कितनी पढ़ी जाती हैं। हम जानते हैं।
पुस्तक मेलों में खरीदी गयी किताबें भी पूरे पढ़े जाने का इंतज़ार करते करते थक जाती हैं और अगला पुस्तक मेला सिर पर आ खड़ा होता है।
यात्रा में टाइम पास करने के लिए स्टेशन, बस अड्डे या एयरपोर्ट पर खरीदी गयी किताबें यात्रा में जितनी पढ़ ली जायें, उतना ही, बाकी वे कहीं कोने में या बैग ही में पड़े-पड़े अपनी कहानी का अंत बताने के लिए बेचैन अपने इकलौते पाठक को वक्त मिलने का इंतज़ार करती रहती हैं।
हर व्यक्तिगत लाइब्रेरी में लगातार कम से कम 40 प्रतिशत ऐसी अनचाही किताबें जुड़ती जाती हैं, जो एक बार भी नहीं खुलती। इनमें किताबों का कोई कसूर नहीं होता जितना उनका गलती से वहां पहुंच जाने का होता है।
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