रविवार, 12 अप्रैल 2015

धर्मवीर भारती


जब ज्‍यादा चाय मांगने लगें भारती जी जो कुछ लिखा जायेगा।
डॉक्‍टर धर्मवीर भारती (दिसंबर 25, 1926 – सितंबर 4, 1997) जब खाने के प्रति लापरवाह होने लगें और चाय ज्‍यादा मांगने लगें तो पुष्‍पा जी समझ जाती थीं कि कोई रचना बाहर आने को है। ये हालत दो तीन दिन तक चलती तब जा कर भारती जी लिखने की मेज़ पर आ पाते। अक्‍सर रात के समय लिखते।
सबसे पहले कहानी के नोट्स बनने का सिलसिला शुरू होता। ये भी कई दिन तक चलता। सबसे पहले उन व्‍यक्तियों के नाम लिखे जाते जिन पर कहानी लिखी जानी होती। कुछ पाइंट्स नोट किये जाते, घटनाएं दर्ज की जातीं और इस तरह कहानी के लिए ज़मीन तैयार की जाती। ये वक्‍त भारती जी के लिए सबसे ज्‍यादा बेचैनी वाला होता। लेकिन एक बार कहानी के नोट्स तैयार हो जाने के बाद उनका आगे का सफर आसान हो जाता और दो तीन दिन में ही कहानी फाइनल कर लेते। कहानी शुरू करके लगातार उसी पर काम करते। कहानी लिखते समय भारती जी अपने पात्रों के साथ एकाकार हो जाते। प्रसंग के अनुसार कभी हंसते, कभी उदास हो जाते तो कभी ठहाके लगाने लगते।
कविताओं के मामले में बेशक इतनी तैयारी न होती लेकिन बेचैनी वाला आलम ज़रूर रहता।
उन्‍हें घर पर लिखने में सुभीता रहता बस, बच्‍चे उनके आस पास शोर न करें। चाय नियमित रूप से मिलती रहे। उनकी हिदायत रहती कि उनके कागजों में कोई छेड़छाड़ न की जाये। जैसे हैं, उन्‍हें वैसे ही रहने दिया जाये।
अपनी प्रसिद्ध कविता मुनादी उन्‍होंने लगातार दो दिन तक भारी तनाव में रहने के बाद लिखी थी। सुबह के अख़बार में जय प्रकाश नारायण की चार तस्‍वीरें छपी थीं जिनमें उन्‍हें पटना में भाषण देते, लाठी खाते, गिरते, और सिर पर कपड़ा बाँध कर खड़े होते दिखाया गया था। ये तस्‍वीरें देख कर भारती जी बेहद विचलित हो गये थे और अपने टैरेस वाले फ्लैट में सुबह शाम लगातार दो दिन तक मुट्ठियां ताने चहल कदमी करते रहे थे।
तीसरे दिन सुबह जब पुष्‍पा जी ने बाथरूम में भारती जी के गुनगुनाने की आवाज़ सुनी तो वे लपक कर भारती जी की मेज़ की तरफ गयी थीं।
मुनादी कविता रात में लिखी जा चुकी थी।

यहां मुनादी कविता का लिंक दे रहा हूं। कविता गद्यकोष पर पढ़ी जा सकती है।http://www.kavitakosh.org/kk/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%80_/_%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0_%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A5%80

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