शनिवार, 11 अप्रैल 2015

45 बरस बाद मिला किताब को उसका पहला पाठक लेकिन उसे किताब नहीं दी गयी



बात 2008 की है। तब मैं पुणे में था और मेरे कथाकार मित्र राज कुमार राकेश शिमला में थे। संयोग से हम दोनों ही उस समय (एक दूसरे की जानकारी के बिना) बर्ट्रेंड रसेल की आत्‍म कथा पढ़ रहे थे। किताब की भूमिका लिखी है माइकल फुट ने। 95 वर्षीय फुट इंगलैंड के जाने माने लेखक, पत्रकार और सुदीर्घजीवी एमपी रहे हैं। बर्ट्रेंड रसेल को 1950 में नोबेल पुरस्‍कार मिला था।
अब जी, राकेश जी को तलब लगी कि बर्ट्रेंड रसेल साहब की लिखी किताब अन्‍आर्मड विक्‍टरी पढ़ें। ये किताब बहुत कुछ समेटे हुए है। चीन युद्ध को ले कर नेहरू, चाऊ एन लाई  और बर्ट्रेंड रसेल के बीच हुई खतो-किताबत, क्‍यूबा मसले पर कमेंटरी और अमेरिका और रूस की दादागिरी के भीतरी किस्‍से। 1963 में छपी ये किताब भारत में आयी लेकिन तुरंत बैन कर दी गयी थी। किताब मिली नहीं कहीं भी उन्‍हें। दिल्‍ली तक पूछ के देख लिया। मुझसे कहा तो मैंने अपनी लाइब्रेरी, ब्रिटिश लाइब्रेरी और लैंड मार्क सब जगह तलाशी, किताब नहीं ही मिली। भला 1963 में छपी और प्रतिबंधित किताब इतनी आसानी से थोड़े ही मिलेगी।
अचानक उन्‍हें सूझा और वे गाड़ी उठा कर सीधे शिमला स्थित इंस्‍टीट्यूट ऑफ एडवांस स्‍टडीज में जा पहुंचे। किताब वहां थी। निकलवायी गयी। राकेश जी खुश लेकिन लाइब्रेरियन जी खुश नहीं। उन्‍होंने किताब देने से मना कर दिया कि नहीं दे सकते। डाइरेक्‍टर, कोई फैकल्‍टी, रिसर्च स्‍कालर, फैलो या स्‍टाफ ही इस किताब की कभी भी मांग कर सकता है। हम उनकी अनदेखी करके बाहर वाले को किताब कैसे दे सकते हैं। झगड़े और मारपीट की नौबत आ गयी। आखिर एक संकाय सदस्‍य के बीच बचाव करने पर राकेश को किताब दिखायी गयी। किताब देखते ही सब के मुंह पर ताला लग गया। यह किताब संस्थान द्वारा 1963 में खरीदी गयी थी और इस घटना के दिन तक यानी पिछले 45 बरस में एक बार भी जारी नहीं करायी गयी थी।
बेचारे बर्ट्रेंड रसेल और बेचारी उनकी किताब 'अन्‍आर्मड विक्‍टरी'। लेकिन हमारे राकेश जी भी कम नहीं। किसी तरह से स्‍टाफ के नाम से किताब जारी करवायी और रातों रात उसकी फोटो कॉपी करके अपनी जिद पूरी की। किताब उनके अनमोल खजाने में है।

अगले रविवार किताबों का एक और रोचक किस्‍सा।

1 टिप्पणी:

Rajeev Agarwal ने कहा…

I loved this post, Surajji! Will discuss further when we meet next at the Chaupaal.