ये किस्सा बहुत पुराना है। उस्मानिया युनिवर्सिटी, हैदराबाद का किस्सा है। खराब किताबों को अच्छी किताबें बना कर ठेलने का। विश्वविद्यालय के तेलुगु विभाग के रीडर उपन्यासकार थे और हिंदी विभाग की रीडर कहानीकार। दोनों ही औसत दर्जे के। अब दोनों के विभाग साथ साथ थे, तो रोज़ का साथ का उठना बैठना था। वे दोनों चाह कर भी अपने-अपने विषय के कोर्स में अपनी किताबें नहीं लगा सकते थे। लेकिन जहां चाह वहां राह।
दोनों किताबों के परस्पर अनुवाद कराये गये। अब हिंदी कहानीकार रीडर महोदया की अनूदित किताब तेलुगु में बीए के कोर्स में पढ़ायी जाने लगी और तेलुगु उपन्यासकार रीडर हिंदी के बीए में खपा लिये गये। दोनों खुश।
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