गुरुवार, 29 मई 2008

हमें आपकी आवाज़ चाहि‍ये.

हमारे एक प्रिय दोस्‍त विदेश से एक इंटरनेट हिन्‍दी रेडियो चलाते हैं. इस रेडियो पर आप शायरों की आवाज़ में उनकी ग़ज़लें, कवियों की आवाज़ में उनकी कविताएं और गीत सुन सकते हैं. कुछ प्रोफेशन गायकों ने भी अपनी आवाज़ में दूसरे रचनाकारों की रचनाओं के लिए दी है.

हमें आपकी आवाज़ चाहिये.

गीतों के लिए, कहानियों के लिए, लघु कथाओं के लिए और रेडियो पर प्रस्‍तुत की जा सकने वाली किसी भी रचना के लिए.

बेशक इसमें फिलहाल नहीं जुड़ा हुआ है लेकिन आपको ये सुख तो मिलेगा कि आपने एक अच्‍छी रचना को अपनी आवाज़ दी है और उसे दुनिया भर में कभी भी कहीं भी सुना जा सकता है. आपका नाम तो आपकी आवाज़ के साथ रहेगा ही.

आपकी ओर से सहमति मिलने पर वे आपको ईमेल से रचना भेजेंगे और आप अपने कम्‍प्‍यूर पर ऑडियो सिस्‍टम में उसे रिकार्ड करके वापिस भेजेंगे.

तो आप तैयार हैं अपनी आवाज़ को दुनिया भर तक पहुंचाने के लिए
मुझे ईमेल करें.
kathaakar@gmail.com
soorajprakaash@gmail.com

सोमवार, 19 मई 2008

महानगर की कथाएं - एक रास्‍ता यह भी

"सुन री, अगले हफ्ते से बजाज सेंटर में चाइनीज और ओरिएंटल कुकरी की क्लासेस शुरू हो रही है। बहुत मन कर रहा हैं मेरा ओरिएंटल खाना बनाना सीखने का लेकिन जाऊं कैसे?
"क्यों, क्या परेशानी है?"
"परेशानी सिर्फ इतनी सी है मेरी बिल्लो रानी कि ये क्लासेस पूरे चालीस दिन की हैं और सवेरे दस से तीन बजे तक चलने वाली हैं। अब इस शौक को पूरा करने के लिए डेढ़ महीने की छुट्टी लेना कोई बहुत बड़ी समझदारी की बात तो नहीं होगी ना।"
"हम तेरी मुफ्त की छुट्टी का इंतजाम कर दें तो बता क्या ईनाम देगी।"
" सच . . . तू जो कहे . . . जहाँ तू कहे शानदार पार्टी मेरी तरफ से। बता कैसे मिलेगी मुझे छुट्टी?"
"मिलेगी बाबा . . . . जरा धैर्य से। पहले मेरे दो तीन सवालों के जवाब दे। कितने बच्चे हैं तेरे?"
"एक ही तो है केतन . . . . क्यों?"
"कोई सवाल नहीं। अच्छा ये बता ओर बच्चा तो नहीं पैदा करना है तुझे?"
"अभी तक तो सोचा नहीं। हां भी और नहीं भी।"
"कोई बात नहीं। ऐसा कर, कल ही तू जा कर अपना एडमिशन करवा लेना।"
" दैट्स ग्रेट। लेकिन छुट्टी।"
"छुट्टी मिलेगी आपको एमटीपी का एक लैटर दे कर। पूरे पैंतालीस दिन की। दो बार ली जा सकती है। मिसकैरिज के लिए कोई सबूत थोड़े ही चाहिये।"
"अरे वाह, मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था। मैं कल ही अपनी गायनॉक से बात करती हूँ।"
"सिर्फ अपने लिए नहीं, मेरे लिए भी बात करना। मैं भी . . . ।"
"यू टू ब्रूटस।"

बुधवार, 7 मई 2008

महानगर की कथाएं - एक विकल्‍प यह भी




-हाय, करूणा, आज कित्ते दिन बाद दिख रही है तू? मुझे लगा या तो नौकरी बदल ली तूने या ट्रेन?
- कुछ नहीं बदला शुभदा, सब कुछ वही है, बस जरा होम फ्रंट पर जूझ रही थी, इसलिए रोज ही ये ट्रेन मिस हो जाती थी।
- क्यों क्या हुआ? सब ठीक तो है ना?
- वही सास ससुर का पुराना लफड़ा। होम टाउन में अच्छा खासा घर है। पूरी जिंदगी वहीं गुजारने के बाद वहाँ अब मन नहीं लगता सो चले आते हैं यहाँ। हम दोनों की मामूली सी नौकरी, छोटा सा फ्लैट और तीन बच्चे। मैं तो कंटाल जाती हूँ उनके आने से। समझ में नहीं आता क्या करूँ।
- एक बात बता, तेरे ससुर क्या करते थे रिटायरमेंट से पहले?
-सरकारी दफ्तर में स्टोरकीपर थे।
-उनकी सेहत कैसी है?
-ठीक ही है।
-उन दोनों में से कोई बिस्तर पर तो नहीं है?
-नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है। बस, बुढ़ापे की परेशानियाँ है, बाकी तो . . . . ।
-और तेरा सरकारी मकान है। तेरे ही नाम है ना . . . . तेरे हस्बैंड की तो प्राइवेट नौकरी है . . . ?
- हाँ है तो . . . . ।
-और तेरे ससुर की पेंशन तो 1500 से ज्यादा ही होगी?
-हाँ होगी कोई 2300 के करीब।
- बिलकुल ठीक। और तू रोज रोज के यहाँ टिकने से बचना चाहती है?
- चाहती तो हूँ, लेकिन मेरी चलती ही कहाँ है। घर में उनकी तरफदारी करने के लिए बैठा है ना श्रवण कुमार।
-अब तेरी ही चलेगी। एक काम कर। अपने ऑफिस में एक गुमनाम शिकायत डलवा दे कि तेरे नॉन डिपेंडेंट सास ससुर बिना ऑफिस की परमिशन के तेरे घर में रह रहे हैं। तेरे ऑफिस वाले तुझे एक मेमो इश्यू कर देंगे, बस। सास ससुर के सामने रोने धोने का नाटक कर देना . . . .कि किसी पड़ोसी ने शिकायत कर दी है। मैं क्या करूँ? ऐसी हालत में वे जायेंगे ही।
-सच, क्या कोई ऐसा रूल है?
-रूल है भी और नहीं भी। लेकिन इस मेमो से डर तो पैदा किया ही जा सकता है।
- लेकिन शिकायत डालेगा कौन?
-अरे, टाइप करके खुद ही डाल दे। कहे तो मैं ही डाल दूँ। मैंने भी अपने सास–ससुर से ऐसे ही छुटकारा पाया है।