नोबल पुरस्कार विजेता अर्नेस्ट हेमिंग्वे ऐसे अकेले लेखक नहीं थे जो खड़े खड़े लिखते या टाइप करते हों। उनकी इस बिरादरी में चार्ल्स डिकेंस, वर्जीनिया वुल्फ, लेविस कैरोल और फिलिप रोथ जैसे लेखक भी रहे जो आजीवन खड़े हो कर लिखते रहे। (लेट कर लिखने वाले भी कम नहीं हैं, लेकिन उनकी चर्चा बाद में)।
हेमिंग्वे का सजा सजाया अध्ययन कक्ष था लेकिन जैसा कि आप इस तस्वीर में देख सकते हैं, वे अपने अस्त व्यस्त बेड रूम में ही खड़े हुए साहित्य रच रहे हैं। उनकी खड़ी मेज पर ही जरूरत की सारी चीजें धरी रहतीं। वे अपना वज़न कभी इस पैर पर डालते और कभी उस पैर पर लेकिन ये नहीं कि भइया थक गये हो तो जरा बैठ कर सुस्ता ही लो या टाइप राइटर ही नीचे उतार लो। यही नहीं कर पाते थे वे।
लिखने के लिए उन्हें सुबह का वक्त सबसे अच्छा लगता। भोर की पहली किरण के उगते ही वे अपने काम पर लग जाते। वे मानते थे कि ये ऐसा वक्त होता है जब आपको कोई डिस्टर्ब नहीं करता। हवा खुशगवार होती है और मूड एकदम ताजा। जो लिखा है उसे पढ़ते जाओ और ठीक भी करते जाओ। एक बार काम में जुट जाओ तो किसी भी बात की परवाह नहीं रहती। सुबह काम करने का वे ये भी फायदा गिनाते कि पता होता है कि रचना में अब क्या होने वाला है और कहां जा कर रुकना है। वे अमूमन 500 शब्द प्रतिदिन टाइप करते थे।
एक रोचक बात ये भी थी कि हालांकि हेमिंग्वे खूब पीते थे लेकिन पी कर लिखने का, ड्रिंक एंड टाइप का काम एक साथ उन्होंने कभी नहीं किया। इसका कारण यही समझ में आता है कि लिखने का काम वे सुबह करते थे और पीने का काम रात में।
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