बांग्ला उपन्यासकार विमल मित्र (1912–1991) जितने प्रसिद्ध बांग्ला में थे, उतने ही चाव से हिंदी में भी पढ़े जाते थे। उन्होंने सौ भी अधिक उपन्यास और सैकड़ों कहानियां लिखी। उनके उपन्यास पर 1953 में साहिब बीवी और गुलाम पर फिल्म भी बनी थी और उन्हें सर्वश्रेष्ठ फिल्म लेखन के लिए फिल्म फेयर एवार्ड मिला था। वे कई बार अठारह अठारह घंटे तक लिखते रहते थे।
एक बार एक युवक उनसे मिलने आया और उनके पैर छू कर उनके पास बैठ गया और रोने लगा। '
वे हैरान हुए। पूछा- भाई तुम कौन हो और क्यों रो रहे हो। मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं।
युवक ने कहा कि फलां पत्रिका में आपका एक धारावाहिक उपन्यास चल रहा है।
विमल जी ने कहा – हां चल तो रहा है।
युवक ने आगे कहा - उसकी नायिका एक बीमार युवती है।
विमल बाबू – हां है तो, फिर
युवक – उपन्यास की कथा जिस तरह से आगे बढ़ रही है, तय है कि अगले एकाध अंक के बाद आप नायिका को मार देंगे।
विमल बाबू – लेकिन पात्रों को जीवित रखना या मार देना लेखक के हाथ में थोड़े ही होता है। अब जैसी कहानी आगे बढ़े .. लेकिन तुम ये सब क्यों पूछ रहे हो और रो क्यों रहे हो।
युवक फिर रोने लगा - दरअसल मेरी बहन को भी वही बीमारी है जो आपके उपन्यास की नायिका को है। वह लगातार उपन्यास पढ़ रही है। अगर आपने नायिका को मार दिया तो मेरी बहन भी नहीं बच पायेगी। वह फिर से उनके पैरों पर गिर पड़ा – मेरी बहन को बचा लीजिये साहब।
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