सोमवार, 31 मार्च 2008

मेरे बचपन का शहर देहरादून

लिखो यहां वहां http://www.likhoyahanvahan.blogspot.com/ में आज पढ़ें मेरे बचपन का शहर देहरादून जो आज भी मेरी सांस सांस में बसता है.
बचपन तो सबका सांझा ही होता है और जब हमें दूसरों के बचपन के जरिये अपने बचपन में झांकने का मौका मिलता है तो हम कह उठते हैं- स्‍साला . . ये ही हम भी करते रहे हैं. . तो लीजिये एक झलक मेरे बचपन की..
सूरज प्रकाश

गुरुवार, 27 मार्च 2008

कैसे मिलती थी शराब अहमदाबाद में

http://kabaadkhaana.blogspot.com/ में आज पढ़ें मेरी एक सरस पोस्‍ट - कैसे मिलती थी शराब अहमदाबाद में.
आपको जरूर नशा आयेगा

सूरज प्रकाश

सोमवार, 24 मार्च 2008

लौट कर आना ही होगा

आज मैं तीन महीने और पन्‍द्रह दिन के बाद पुणे में अपनी नौकरी पर वापिस आ गया हूं. 10 दिसम्‍बर 2007 को दिल्‍ली में हुए सड़क हादसे की वजह से मैं बिस्‍तर पर था और कभी कभार पोस्‍ट पर आ पाता था.
इस पूरे अरसे के दौरान सभी ब्‍लागी मित्रों ने मेरे शीघ्र स्‍वस्‍थ होने के लिए अपनी शुभकामनाएं भेजीं और लगातार मेरा हाल पूछते रहे. मैं आप सब के प्रति आभारी हूं.
ये बेशक एक नया परिवार है लेकिन जिस तरह से बिल्‍कुल अनजान और अ‍परिचित मित्रों और पाठकों ने अपनी शुभकामनाएं भेजीं. उससे बहुत अच्‍छा लगा और ये विश्‍वास जगा कि प्रिंट मीडिया में हमने जो अपने पाठक खो दिये थे, ब्‍लागों की दुनिया उससे सौ गुना ज्‍यादा पाठक ले कर हमारे सामने है. सभी अपने और सभी आपसे संवाद करने के लिए तैयार
एक बार पुनः नमन.
हर सोमवार एक कहानी के साथ मेरे दूसरे ब्‍लाग soorajprakash.blogspot.com पर भी आपका स्‍वागत है.
सूरज प्रकाश

रविवार, 16 मार्च 2008

लघु कथा- कमीशन

उस दफ्तर में ज्‍वाइन करते ही मुझे वहां के सब तौर तरीके समझा दिये गये थे. मसलन छोटे मामलों में कितना लेना है और बड़े मामलों में कितनी मलाई काटनी है. यह रकम किस किस के बीच और किस अनुपात में बांटी जानी है, ये सारी बातें समझा दी गयी थीं. किस पार्टी से सावधान रहना है और किन पार्टियों की फाइलें दाब के बैठ जाना है, ये सारे सूत्र मुझे रटा दिये गये थे.
मैं डर रहा था, ये सब कैसे कर पाऊंगा, अगर कहीं पकड़ा गया या परिचितों, यार दोस्‍तों ने यह बात कहीं सरेआम की दी तो, लेकिन भीतर कहीं खुश भी था कि ऊपर की आमदनी वाली नौकरी है. खूब गुलछर्रे उड़ायेंगे. उधर पिताजी अलग खुश थे कि लड़का सेल्‍स टैक्‍स में लग गया है. हर साल इस महकमे को जो चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है, उससे तो बचेंगे.
सब कुछ ठीक चलने लगा था. मैं वहां के सारे दांव पेंच सीख गया था. बेशर्मी से मैं भी उस तालाब में नंगा हो गया था औरी पूरी मुस्‍तैदी से अपना और अपने से ऊपर वालों का घर भरने लगा था.
तभी पिताजी ने अपनी दुकान की सेल्‍स टैक्‍स की फाइल मुझे दी ताकि केस क्‍लीयर कराया जा सके. हालांकि एरिया के हिसाब से केस मुझे ही डील करना था. लेकिन मेरे साथी और अफसर कहीं गलत अर्थ न ले लें, मैंने वह फाइल अपने साथी को थमा दी ओर सारी बात बता दी.
जब उसने केस अंदर भेजा तो उसे बुलावा आया. वह जब केबिन से निकला तो उसका चेहरा तमतमाया हुआ था. बहुत पूछने पर उसने इतना ही बताया कि बॉस ने केस क्‍लीयर तो कर दिया है, पर यह पूछ रहे थे कि क्‍या ये केस सचमुच तुम्‍हारे पिताजी का है या यूं ही पूरा कमीशन अकेले खाने के लिए उसे बाप बना लिया है.
सूरज प्रकाश

बुधवार, 12 मार्च 2008

न्‍यू यार्क का विश्‍व हिन्‍दी सम्‍मेलन - माया मिली न राम

विश्‍व हिन्‍दी सम्‍मेलन जुलाई 07 के तीसरे सप्‍ताह में न्‍यूयार्क में आयोजित किया गया था और जिन लोगों ने उसमें हिस्‍सेदारी की थी, उनके कटु अनुभव अरसे त‍क मीडिया में छाये रहे थे. ये अनुभव हर तरह के थे. अव्‍यवस्‍था से ले कर सम्‍मेलन में भाव न दिये जाने तक, लेकिन जो लोग किन्‍हीं कारणों से वहां नहीं जा पाये थे उनमें से कुछ का अलग ही दुखड़ा है. सम्‍मेलन में हिस्‍सेदारी के लिए मई 07 में विदेश मंत्रालय के हिन्‍दी विभाग में जमा कराये गये चार हजार रुपये मंत्रालय ने अब तक वापिस नहीं किये हैं हालांकि इस संबंध में उन्‍हें समय रहते जून 2008 में ही सूचित किया गया था. पत्र या ईमेल का कोई जवाब नहीं दिया जाता और फोन करने पर यही उत्‍तर मिलता है कि अभी और समय लगेगा और इस समय लगने के पीछे इतनी लम्‍बी कहानी सुनायी जाती है कि आप एसटीडी का बिल बढ़ने के डर से खुद ही फोन काट दें.
कैसा है ये विभाग जिसे पैसे लौटाने जैसे मामूली काम के लिए नौ महीने का समय कम पड़ रहा है.

सूरज प्रकाश, लेखक, अनुवादक और पत्रकार,
एच1/101 रिद्धी गार्डन, फिल्‍म सिटी रोड, मालाड पूर्व मुंबई 97