चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा - आधी हकीकत आधा फसाना
महान प्रकृतिवादी, भू वैज्ञानिक, वैज्ञानिक, अन्वेषक, जीव विज्ञानी, दार्शनिक, चिंतक और मानव विज्ञानी चार्ल्स डार्विन (12 फरवरी 1809 – 19 अप्रैल, 1882) चार्ल्स डार्विन का जीवन जितना उतार चढ़ावों से भरा रहा, उनकी आत्मकथा की कहानी भी उतनी रोचक है।
मानव जीवन और जीव जगत के विकास की यात्रा को वैज्ञानिक तरीके से दुनिया के सामने रखने वाले चार्ल्स डार्विन ने अपनी आगामी पीढ़ियों के लाभ के लिए अपनी आत्मकथा लिखी थी ताकि उनके बच्चों को पता चले कि वह किस किस्म का जीवन जीए और किस तरह से काम करते रहे।
उनकी मृत्यु के बाद जब उनके बेटे थॉमस ने चार्ल्स डार्विन की यह आत्मकथा छपवाने के बारे में सोचा तो उसने पाया कि पापा की आत्मकथा में ऐसी बहुत सारी बातें थीं जो दुनिया के सामने नहीं आनी चाहिए थी। दरअसल चार्ल्स डार्विन ने अपनी कजिन से ही विवाह किया था और इस वजह से वे जीवन भर तरह तरह की बीमारियों से जूझते रहे थे। और भी कई बातें थीं जो बेटे जी नहीं चाहते थे कि दुनिया को पता चलनी चाहिये।
छपवाने से पहले उन्होंने तय किया कि इस आत्मकथा का संपादन किया जाना चाहिए। वह देखकर हैरान रह गए कि काट पीट और संपादन के बाद आत्मकथा मात्र तीस चालीस पन्ने की रह गई थी। यह किसी रूप में भी छपवाने पाने लायक नहीं रही थी।
तब उन्होंने इसके बाद का हिस्सा खुद लिखा कि पापा ऐसे थे और वैसे थे और कैसे काम करते थे। जब चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा छप कर आयी तो उसमें आधी तो चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा है और आधी किताब उनके बेटे द्वारा लिखी गई उनकी जीवनी के रूप में है।
मैंने एनसीईआरटी के लिए इसका अनुवाद किया था। आप इसे मेरी वेबसाइट www.surajprakash.comपर भी पढ़ सकते हैं।
मुझे पता है कि फ्री की किताबें नहीं पढ़ी जातीं, फिर भी आपको ये रोचक किताब पढ़ने का मन हो तो इनबाक्स में अपना ईमेल आइडी दे दें। मैं भिजवा दूंगा।
मानव जीवन और जीव जगत के विकास की यात्रा को वैज्ञानिक तरीके से दुनिया के सामने रखने वाले चार्ल्स डार्विन ने अपनी आगामी पीढ़ियों के लाभ के लिए अपनी आत्मकथा लिखी थी ताकि उनके बच्चों को पता चले कि वह किस किस्म का जीवन जीए और किस तरह से काम करते रहे।
उनकी मृत्यु के बाद जब उनके बेटे थॉमस ने चार्ल्स डार्विन की यह आत्मकथा छपवाने के बारे में सोचा तो उसने पाया कि पापा की आत्मकथा में ऐसी बहुत सारी बातें थीं जो दुनिया के सामने नहीं आनी चाहिए थी। दरअसल चार्ल्स डार्विन ने अपनी कजिन से ही विवाह किया था और इस वजह से वे जीवन भर तरह तरह की बीमारियों से जूझते रहे थे। और भी कई बातें थीं जो बेटे जी नहीं चाहते थे कि दुनिया को पता चलनी चाहिये।
छपवाने से पहले उन्होंने तय किया कि इस आत्मकथा का संपादन किया जाना चाहिए। वह देखकर हैरान रह गए कि काट पीट और संपादन के बाद आत्मकथा मात्र तीस चालीस पन्ने की रह गई थी। यह किसी रूप में भी छपवाने पाने लायक नहीं रही थी।
तब उन्होंने इसके बाद का हिस्सा खुद लिखा कि पापा ऐसे थे और वैसे थे और कैसे काम करते थे। जब चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा छप कर आयी तो उसमें आधी तो चार्ल्स डार्विन की आत्मकथा है और आधी किताब उनके बेटे द्वारा लिखी गई उनकी जीवनी के रूप में है।
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