गिजुभाई बधेका - मूछों वाली मां
महान शिक्षा शास्त्री गिजूभाई बधेका (1885 1939) ने बच्चों की शिक्षा के लिए जितना काम किया उतना उसके बाद शायद किसी अकेले व्यक्ति नहीं ने नहीं किया होगाह इसलिए उन्हें गुजराती में मूछों वाली मां कहा जाता था। वह पेशे से हाईकोर्ट में वकील थे लेकिन 1920 में अपने बच्चे के जन्म के बाद उनका ध्यान बच्चों की शिक्षा की तरफ गया।
उन्होंने उन्हें बाल मंदिर की स्थापना की। बच्चों के लिए ढेरों किताबें लिखीं जिनमें दिवास्वप्न और मां बाप से प्रमुख हैं। मैंने इन दोनों किताबों के अलावा गिजु भाई की दो सौ किशोर कहानियों का भी गुजराती से अनुवाद प्रकाशन संस्थान के लिए किया है। इन कहानियों में पशु पक्षी हैं,, सारे जानवर हैं और राजा रानी हैं लेकिन हर कहानी में अंत में वे बड़े रोचक तरीके से बड़ी बात कह जाते हैं।
उन्होंने उन्हें बाल मंदिर की स्थापना की। बच्चों के लिए ढेरों किताबें लिखीं जिनमें दिवास्वप्न और मां बाप से प्रमुख हैं। मैंने इन दोनों किताबों के अलावा गिजु भाई की दो सौ किशोर कहानियों का भी गुजराती से अनुवाद प्रकाशन संस्थान के लिए किया है। इन कहानियों में पशु पक्षी हैं,, सारे जानवर हैं और राजा रानी हैं लेकिन हर कहानी में अंत में वे बड़े रोचक तरीके से बड़ी बात कह जाते हैं।
प्रकाशन संस्थान वाले चाहते थे कि मैं गिजु भाई की सारी किताबों का अनुवाद करूं लेकिन मैं अपनी प्राथमिकताओं के कारण नहीं कर पाया।
प्रकाशन संस्थान +91 98112 51744
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एक बार उन्होंने मुझे खुद बताया था कि बेशक उन्होंने मुझे इन किताबों के अनुवाद के लिए मामूली रकम दी थी लेकिन उन्होंने इन किताबों से खूब कमाया। खूब पसंद की जाती हैं ये किताबें।
गिजु भाई बताते हैं कि आप खेल खेल में हर विषय की पढ़ाई बच्चों को करा सकते हैं। चाहे वह गणित हो, विज्ञान हो या व्याकरण। बच्चे हंसते खेलते, धूप में बैठे हुए, नदी किनारे टहलते हुए या पेड़ों के नीचे बैठे हुए पढ़ सकते हैं।गिजू भाई की सारी किताबें हर मां बाप और हर अध्यापक के पास होनी चाहिए। वे जान सकते हैं कि बच्चों पर इस समय पढ़ाई का जितना बोझ है वह कैसे चुटकियों में दूर किया जा सकता है। आजकल छोटे बच्चे पढ़ते हुए घबराते हैं और स्कूल न जाने के लिए तरह तरह के बहाने बनाते हैं।
पढ़ाई कितने ही अच्छे स्कूल में हो रही हो आजकल हर बच्चा पढ़ाई के बोझ से अपना सहज बचपन नहीं जी पा रहा है। उसके हाथ में हर समय कोई प्रोजेक्ट होता है। ये बहुत घातक और विस्फोटक स्थिति है। हम कैसी पीढ़ी तैयार कर रहे हैं।
पढ़ाई कितने ही अच्छे स्कूल में हो रही हो आजकल हर बच्चा पढ़ाई के बोझ से अपना सहज बचपन नहीं जी पा रहा है। उसके हाथ में हर समय कोई प्रोजेक्ट होता है। ये बहुत घातक और विस्फोटक स्थिति है। हम कैसी पीढ़ी तैयार कर रहे हैं।
जरूरत है शुरुआत की शिक्षा को आनंद की चीज बनाने की। हम यही नहीं करते।
शांतिनिकेतन में मैंने यह पाया था कि बच्चों को पेड़ों तले खुले वातावरण में पढ़ाया जाता है। केवल साइंस और गणित के लिए ब्लैक बोर्ड से इस्तेमाल किया जाता है या जहां लैब का काम हो वहां बच्चों को लैब में ले जाता है।
बच्चों की शिक्षा के तरीके को लेकर एक रोचक अनुभव शेयर करना चाहता हूं। जब मैं गुजरात में था जो महिला मेरे घर खाना बनाती थी उसने एक दिन कहा कि मेरे बच्चे को थोड़ा पढ़ा दिया कीजिए। वह मेरे साथ आ जाया करेगा।
जब मैंने उसे आज पढ़ा अंग्रेजी का पाठ दोहराने के लिए कहा तो देख कर हैरानी हुई कि वह फराटे से अंग्रेजी बोल रहा था। जब इतनी अच्छी अंग्रेजी बोल रहा है तो उसे और पढ़ाने की क्या जरूरत है।
जब मैंने उसे आज पढ़ा अंग्रेजी का पाठ दोहराने के लिए कहा तो देख कर हैरानी हुई कि वह फराटे से अंग्रेजी बोल रहा था। जब इतनी अच्छी अंग्रेजी बोल रहा है तो उसे और पढ़ाने की क्या जरूरत है।
जब मैंने उसके हाथ से कॉपी ली तो देखा वह गुजराती में लिखी इंग्लिश बोल रहा था। इसे मैंने गुजलिश नाम दिया था। बाद में पता चला कि पंजाब में पंजलिश में और दूसरे राज्यों में भी स्थानीय भाषा में अंग्रेजी पढ़ाने और लिखने की परंपरा है।
बेशक आजकल अंग्रेजी स्कूलों के कारण पढ़ाई के तरीके बदल गए हैं और बेहतर हो गए हैं लेकिन गरीब बच्चों को अभी भी रट कर ही पाठ पढ़ाने की परंपरा है।
ऐसे में मुझे गिजु भाई बहुत याद आते हैं।
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