ऐन फ्रैंक की डायरी
आप जानते ही हैं कि नाजियों के जुर्म से बचने के लिए यहूदियों को दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इधर उधर छुपकर या देश से बाहर जाकर अपनी जान बचानी पड़ी थी। दूसरे विश्व युद्ध के दिन उनके लिए बहुत संकट के दिन थे। वे अपने ही देश में अपनी ही जमीन पर वे अवांछित हो गए थे। लाखों की संख्या में यहूदियों को हर तरह की यातनाएं सहनी पड़ी थीं और जानें गंवानी पड़ी थीं।
ऐन फ्रैंक के परिवार और एक और परिवार को लगभग दो ढाई बरस तक अज्ञातवास में रहना पड़ा था। वहां उनके राशन पानी की, कोर्स की किताबों की और जिंदगी की दूसरी चीजों की जरूरत उनके मित्र पूरी करते रहे थे। वह और उसकी बड़ी बहन अज्ञातवास में भी अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए थीं ताकि जब वे बाहर निकलें तो दूसरे बच्चों से पीछे न रह जाएं। दिल बहलाने के लिए ऐन फ्रैंक ने डायरी लिखना शुरू किया था। यह डायरी किटी नाम की काल्पनिक मित्र को लिखी गई थी। इस डायरी में अज्ञातवास के दौरान के लोम हर्षक अनुभव दर्ज हैं। हर समय खतरा बना रहता था कि कभी भी वे पकड़े जा सकते हैं और उन्हें मौत की सजा दी जा सकती है। बाहर युद्ध की विभीषिका थी। अज्ञातवास में साथ में रह रहे पीटर नाम के लड़के से उसका तेरह चौदह साल की उम्र में मासूम प्रेम अंकुरित हुआ था।
इन सारी बातों को ऐन ने बहुत ही ईमानदारी से और बाल सुलभ भाषा में दर्ज किया है।
युद्ध खत्म होने के बाद हालांकि उनके परिवार वाले बाहर सुरक्षित वापस आ सके थे लेकिन निमोनिया के कारण ऐन ज्यादा दिन नहीं जी पाई थी।
वहीं पर तलाशी के दौरान ऐन की लिखी डायरी का पता चला था और उसे बाद में प्रकाशित कराया गया था।
एक वक्त था कि ऐन फ्रैंक की डायरी दुनिया भर में बाइबल के बाद सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली मानी जाती थी।
मैंने वाणी प्रकाशन के लिए इसका अनुवाद किया था।
इसके अनुवाद से एक रोचक किस्सा जुड़ा हुआ है। जब मैं इस किताब का अनुवाद कर रहा था तो मेरा बेटा अभिजित सेंट्रल स्कूल में नौवीं क्लास में था। वह रोज किताब पढ़ने के लिए मांगता लेकिन मैं टाल रहा था। मुझे पता था कि जब किताब उसके हाथ में जाएगी तो मैं तीन-चार दिन तक अनुवाद नहीं कर पाऊंगा। अनुवाद पूरा होते ही मैंने उसे किताब दी और कहा कि अब तुम आराम से पढ़ो। वह स्कूल जाते समय बस में लगातार यह किताब पढ़ता रहा। पहला पीरियड, दूसरा पीरियड और तीसरा पीरियड। उसने 1 मिनट के लिए भी किताब बंद नहीं की। वह पहले और दूसरे पीरियड में किसी तरह से हाजरी दे सका लेकिन अंग्रेजी के तीसरे पीरियड में वह ऐन फ्रैंक की डायरी में इतना डूब चुका था कि तीन बार नाम पुकारे जाने पर भी यस मैडम नहीं कहा। साथ वाले बच्चों ने मेरे बेटे को इशारा किया कि मैडम अटेंडेंस के लिए बार-बार तुम्हारा नाम पुकार रही है। तब तक मैडम अभिजित के सिर पर आ खड़ी हुई थी।
मैडम ने पूछा - दिखाओ कौन सी किताब पढ़ रहे हो। बेटा घबराया मैडम सॉरी मैडम सॉरी मैडम आगे क्लास में नहीं पढ़ूंगा। मैडम ने किताब देखी और पूछा - कहां से लाए। बेटे ने डरते हुए कहा - मेरे पापा इसका ट्रांसलेशन कर रहे हैं और आज ही मुझे पढ़ने के लिए मिली है। मैडम ने किताब लौटाते हुए धीरे से कहा - अभिजित यह डायरी पढ़ने के बाद मुझे देना। मैंने नहीं पढ़ी है।
बेटे ने घर आकर बताया था- आज एक अच्छी किताब ने मुझे सबके सामने पिटने से बचा लिया।
इस डायरी के कुछ अंश बरसों से एनसीईआरटी के बारहवीं के कोर्स में बरसों से पढ़ाये जा रहे हैं
ऐन फ्रैंक के परिवार और एक और परिवार को लगभग दो ढाई बरस तक अज्ञातवास में रहना पड़ा था। वहां उनके राशन पानी की, कोर्स की किताबों की और जिंदगी की दूसरी चीजों की जरूरत उनके मित्र पूरी करते रहे थे। वह और उसकी बड़ी बहन अज्ञातवास में भी अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए थीं ताकि जब वे बाहर निकलें तो दूसरे बच्चों से पीछे न रह जाएं। दिल बहलाने के लिए ऐन फ्रैंक ने डायरी लिखना शुरू किया था। यह डायरी किटी नाम की काल्पनिक मित्र को लिखी गई थी। इस डायरी में अज्ञातवास के दौरान के लोम हर्षक अनुभव दर्ज हैं। हर समय खतरा बना रहता था कि कभी भी वे पकड़े जा सकते हैं और उन्हें मौत की सजा दी जा सकती है। बाहर युद्ध की विभीषिका थी। अज्ञातवास में साथ में रह रहे पीटर नाम के लड़के से उसका तेरह चौदह साल की उम्र में मासूम प्रेम अंकुरित हुआ था।
इन सारी बातों को ऐन ने बहुत ही ईमानदारी से और बाल सुलभ भाषा में दर्ज किया है।
युद्ध खत्म होने के बाद हालांकि उनके परिवार वाले बाहर सुरक्षित वापस आ सके थे लेकिन निमोनिया के कारण ऐन ज्यादा दिन नहीं जी पाई थी।
वहीं पर तलाशी के दौरान ऐन की लिखी डायरी का पता चला था और उसे बाद में प्रकाशित कराया गया था।
एक वक्त था कि ऐन फ्रैंक की डायरी दुनिया भर में बाइबल के बाद सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली मानी जाती थी।
मैंने वाणी प्रकाशन के लिए इसका अनुवाद किया था।
इसके अनुवाद से एक रोचक किस्सा जुड़ा हुआ है। जब मैं इस किताब का अनुवाद कर रहा था तो मेरा बेटा अभिजित सेंट्रल स्कूल में नौवीं क्लास में था। वह रोज किताब पढ़ने के लिए मांगता लेकिन मैं टाल रहा था। मुझे पता था कि जब किताब उसके हाथ में जाएगी तो मैं तीन-चार दिन तक अनुवाद नहीं कर पाऊंगा। अनुवाद पूरा होते ही मैंने उसे किताब दी और कहा कि अब तुम आराम से पढ़ो। वह स्कूल जाते समय बस में लगातार यह किताब पढ़ता रहा। पहला पीरियड, दूसरा पीरियड और तीसरा पीरियड। उसने 1 मिनट के लिए भी किताब बंद नहीं की। वह पहले और दूसरे पीरियड में किसी तरह से हाजरी दे सका लेकिन अंग्रेजी के तीसरे पीरियड में वह ऐन फ्रैंक की डायरी में इतना डूब चुका था कि तीन बार नाम पुकारे जाने पर भी यस मैडम नहीं कहा। साथ वाले बच्चों ने मेरे बेटे को इशारा किया कि मैडम अटेंडेंस के लिए बार-बार तुम्हारा नाम पुकार रही है। तब तक मैडम अभिजित के सिर पर आ खड़ी हुई थी।
मैडम ने पूछा - दिखाओ कौन सी किताब पढ़ रहे हो। बेटा घबराया मैडम सॉरी मैडम सॉरी मैडम आगे क्लास में नहीं पढ़ूंगा। मैडम ने किताब देखी और पूछा - कहां से लाए। बेटे ने डरते हुए कहा - मेरे पापा इसका ट्रांसलेशन कर रहे हैं और आज ही मुझे पढ़ने के लिए मिली है। मैडम ने किताब लौटाते हुए धीरे से कहा - अभिजित यह डायरी पढ़ने के बाद मुझे देना। मैंने नहीं पढ़ी है।
बेटे ने घर आकर बताया था- आज एक अच्छी किताब ने मुझे सबके सामने पिटने से बचा लिया।
इस डायरी के कुछ अंश बरसों से एनसीईआरटी के बारहवीं के कोर्स में बरसों से पढ़ाये जा रहे हैं
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