मंगलवार, 27 अगस्त 2019

बोध कथा 6


बहुत पहले की बात है। नयी नयी नौकरी थी। वेतन मिला था। खुश होना लाजमी था। सब दोस्त फिल्म देखने निकले।
रास्ते में भीड़ में कोई जेबकतरा मेहरबान हुआ और जेब साफ। जब तक पता चलता, मेरा पर्स निकाला जा चुका था। हम सबने शोर मचाया। तय था कि जेबकतरा अभी आसपास ही था लेकिन वहां आसपास जितने भी लोग थे, निर्विकार लग रहे थे। किसी पर भी शक करने की गुंजाइश नहीं लग रही थी। अलबत्ता, जब हमने बहुत शोर मचाया तो बीसियों सुझाव आने लगे कि पुलिस में जाओ या सबकी तलाशी लो, ये करो और वो करो लेकिन कुछ भी नहीं किया जा सका। चिंताएं कई थीं। कमरे का किराया, पूरे महीने का खर्च और घर भेजे जाने वाले पैसे।
भीड़ कुछ कम हुई तो मलंग जैसा दिखता एक आदमी हमारे पास आया और बहुत ही गोपनीय तरीके से बताने लगा कि वह काला जादू जानता है और चौबीस घंटे के भीतर जेबकतरे को हमारे सामने पेश कर सकता है। वह दावा करने लगा कि उसके काले जादू से कोई नहीं बच सकता। आओ मेरे साथ। तय था कि पुलिस से मदद मिलने वाली नहीं। हम उसके पीछे चल पड़े।
वह पास ही एक कोठरी में हमें ले गया। दस बीस सवाल पूछे उसने और अपनी फीस की पहली किस्त मांगी - इक्यावन रुपये और ग्यारह अंडों की कीमत। बाकी भुगतान पर्स वापिस मिल जाने पर। हमने सोचा यह करके भी देख लिया जाये। पूरे महीने के वेतन की तुलना में सौदा महंगा नहीं लगा और दोस्तों ने उसकी सेवा की पहली किस्त चुकायी। उसने दिलासा दी कि चौबीस घंटे के भीतर जेबकतरा रोता गिड़गिड़ाता हमारे सामने होगा। हमारा पता उसने नोट कर लिया।
अगले दिन वह हमारे कमरे पर हाजिर था। बताने लगा कि बस चोर का पता लगा लिया है और वह उसकी पावर के रेडियस में आ चुका है। बस अगले कुछ घंटे में वह गिड़गिड़ाते हुए खुद आयेगा। इस बार इक्यावन रुपये और इक्कीस अंडों की कीमत ले गया।
किस्सा कोताह कि वह हर तीसरे चौथे दिन आता और कुछ न कुछ वसूल कर ले जाता। कभी कहता कि चोर आपके घर का पता तलाश कर रहा है और कभी कि बस चल चुका है। जब हमने देखा कि उसकी फीस हमारे खोये पर्स से भी आगे बढ़ने वाली है तो हमने हाथ खड़े कर दिये। ये सब भी तो चंदा करके दिया जा रहा था उसे।
उसने एक दिन की मोहलत और मांगी और इस बार मुर्गे की कीमत ले गया।
अगले दिन वह हड़बड़ाता हुआ आया। हमारे कमरे में ही धुनी रमायी और आंखें मूंदे कुछ मंत्र उछाले, कुछ चेतावनियां बरसायीं और कुछ धमकियों का धुंआ किया। अचानक उसने चिल्लाना शुरू कर दिया – चोर मेरे सामने है। वह आपका पर्स मार कर बहुत शर्मिंदा है। वह खुदकुशी करने जा रहा है। वह बस नदी तक पहुंचने वाला है। जल्दी बताइये क्या करूं। एक मामूली पर्स के चक्कर में उसके बच्चे अनाथ हो जायेंगे। जल्दी बतायें, वह बस छलांग मारने वाला है। कहिये तो उसे रोकूं। मुझ पर हत्या का दोष लगेगा।
पाठक गण समझ सकते हैं कि हमने तरस खा कर जेबकतरे को खुदकुशी करने से रोका ही होगा और रहीम खां बंगाली को भी कुछ दे दिला कर ही विदा किया होगा।
डिस्क्लेमर : यह एक सच्ची घटना है और इसकी तुलना उस देश से न की जाये जहां आम आदमी, बैंक, जेबकतरे और बिचौलियों के बीच ये खेल अरसे से खेला जा रहा है। बेशक वहां जेबकतरा खुदकुशी करने के बजाये शर्म के मारे देश छोड़ कर चला ही जाता है।

कोई टिप्पणी नहीं: