एनिमल फार्म मोतिहारी में जन्मे जॉर्ज आर्वेल (मूल नाम एरिक आर्थर ब्लेयर) की महान कृति है। 1945 में एक रूपक कथा के रूप में प्रकाशित इस उपन्यास के जरिये आर्वेल ने स्तालिन की नीतियों की धज्जियां उड़ा कर रख दी थीं।
एक फार्म हाउस है जिसमें रहने वाले सभी मवेशी एक दिन दो सूअरों के नेत्तृत्व में दुष्ट मालिक के खिलाफ विद्रोह कर देते हैं। नये नेतृत्व में फार्म हाउस चल निकलता है। संचालन के लिए नये नियम बनाये जाते हैं और सभी मवेशियों को अच्छे दिनों के सुहाने सपने दिखाये जाते हैं।
लेकिन होता कुछ और ही है। सूअरों में आपसी रंजिश, उनमें मनुष्यों की तरह ही जीने की चाह और अंतत: ठीक मनुष्यों जैसा ही हो जाना एनिमल फार्म के बाशिंदों के लिए कैसे दिन ले कर आता है, इसे बेहद खूबसूरत तरीके से इस उपन्यास में कहा गया है।
उपन्यास का सूत्र वाक्य है - सारे पशु बराबर होते हैं लेकिन कुछ पशु दूसरे पशुओं से ज्यादा बराबर होते हैं।
इस उपन्यास में आप दुनिया भर के राजनीतिज्ञों के चेहरे देख सकते हैं।
मैंने इसका अनुवाद किया है जो यश प्रकाशन (yashpublicationdelhi@gmail.com) से छपा है। इस अनुवाद पर पिछले बरस जेएनयू की एक छात्रा ने एमफिल की है।
यह अनुवाद अमेजन पर, हिन्दीसमय पर और मेरी वेबसाइट www.surajprakash.com पर उपलब्ध है।
पुछल्ला - मैंने अभी भाई देवेन मेवाड़ी की टिप्पणी पढ़ी। मैं उनसे सहमत हूं कि इतनी महत्वपूर्ण किताब खरीद कर पढ़ी जानी चाहिए। वैसे भी नेट पर कई जगह उपलब्ध है।
एक फार्म हाउस है जिसमें रहने वाले सभी मवेशी एक दिन दो सूअरों के नेत्तृत्व में दुष्ट मालिक के खिलाफ विद्रोह कर देते हैं। नये नेतृत्व में फार्म हाउस चल निकलता है। संचालन के लिए नये नियम बनाये जाते हैं और सभी मवेशियों को अच्छे दिनों के सुहाने सपने दिखाये जाते हैं।
लेकिन होता कुछ और ही है। सूअरों में आपसी रंजिश, उनमें मनुष्यों की तरह ही जीने की चाह और अंतत: ठीक मनुष्यों जैसा ही हो जाना एनिमल फार्म के बाशिंदों के लिए कैसे दिन ले कर आता है, इसे बेहद खूबसूरत तरीके से इस उपन्यास में कहा गया है।
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इस उपन्यास में आप दुनिया भर के राजनीतिज्ञों के चेहरे देख सकते हैं।
मैंने इसका अनुवाद किया है जो यश प्रकाशन (yashpublicationdelhi@gmail.com) से छपा है। इस अनुवाद पर पिछले बरस जेएनयू की एक छात्रा ने एमफिल की है।
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