लहरों की बांसुरी तथा अन्य कहानियां – फेसबुक ले लिये गये चरित्रों पर कहानियां
फेसबुक मेरे जीवन में बहुत सारी बेहतरीन चीजें ले कर आया। इसने मुझे हजारों की संख्या में अंतरंग दोस्त दिये, सुख दुख के साथी दिये, जिनसे बरसों से आज भी स्नेह का नाता बना हुआ है। फेसबुक ने मुझे साहित्य संबंधी बातें कहने और शेयर करने का मंच दिया। इसने मुझे अपनी कहानियों और इतर रचनाओं के लिए सुविज्ञ पाठक दिये, किताबों के खरीदार दिये, रचनाओं के अनुवादक दिये, प्रकाशक दिये और सबसे बड़ी बात, अपनी रचनाओं के लिए बेहतरीन पात्र दिये।
लहरों की बांसुरी तथा अन्य कहानियां की छ: लंबी कहानियां तथा मेरा चैट उपन्यास नॉट इक्वल टू लव और इधर लिखा लघु उपन्यास ख्वाबगाह भी फेसबुक की ही देन है। इसके सजीव पात्र फेसबुक से मुझ तक चलकर आये और बेहतरीन कहानियां दे गये।
नया ज्ञानोदय में छपी एक कमजोर लड़की की कहानी, मंतव्य में छपी ये जो देश है मेरा और ललिता मैडम डॉट काम और परिकथा में छपी खेल खेल में कहानियों के पात्र फेसबुक से ही मिले थे और यादगार कहानियां दे गये। इनके अलावा अप्रैल 2016 में लमही में छपी कहानी लहरों की बांसुरी ने तो धूम ही मचा दी थी। इसे पत्रिका में, फेसबुक पर प्रतिलिपि पर और अन्य नेट पत्रिकाओं में अब तक इसे एक लाख से अधिक पाठक पढ़ चुके हैं। अकेले प्रतिलिपि.कॉम पर इसे 92600 से अधिक पाठक पढ़ चुके हैं और कोई दिन ऐसा नहीं होता जब इस कहानी पर कोई सार्थक टिप्पणी न आती हो। ऐसी कितनी ही पाठिकाओं ने बताया कि वे इसे बार बार पढ़ती हैं। आइइएस की तैयारी कर रही एक पाठिका ने बताया था कि वह इस कहानी को चालीस बार पढ़ च़ुकी है और उसे 17000 शब्द की पूरी कहानी याद है।
लहरों की बांसुरी तथा अन्य कहानियां पर पिछले बरस मुंबई विश्वविद्यालय में एक छात्रा ने एमफिल के लिए और इस वर्ष एमए की एक छात्रा ने लघु शोध प्रबंध प्रस्तुत किया
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