• 6 बरस की उम्र में सगाई, 11 बरस में मां का निधन, 16 बरस की उम्र में पहली किताब और सोलह बरस की उम्र में ही प्रीतम सिंह से विवाह। आजीवन साहिर से उत्कट प्रेम और जीवन के अंतिम पलों तक लगभग 50 बरस तक इमरोज का संग साथ। ये है अमृता (कौर) प्रीतम (1919-2005) की जीवनी जिसे बकौल खुशवंत सिंह डाक टिकट के पीछे लिखा जा सकता था। उनकी आत्मकथा का नाम भी इसी वजह से खुशवंत सिंह ने रसीदी टिकट सुझाया था।
• अमृता प्रीतम 20वीं सदी की पंजाबी भाषा की बेहतरीन उपन्यासकार और निबंधकार थीं। उन्हें पंजाबी की पहली और सर्वश्रेष्ठ कवयित्री माना जाता है। इनकी लोकप्रियता सीमा पार पाकिस्तान में भी उतनी ही है। पंजाबी के साथ साथ हिन्दी में भी लेखन।
• उन्होंने कुल मिलाकर लगभग 100 पुस्तकें लिखीं।
• उन्हें पद्मविभूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाली पहली महिला थीं।
• अमृता को साहिर लुधियानवी से बेपनाह मोहब्बत थी।
• साहिर लाहौर में उनके घर आया करते थे और एक के बाद एक सिगरेट पिया करते थे। साहिर के जाने के बाद वो उनकी सिगरेट की बटों को साहिर के होंठों के निशान के हिसाब से दोबारा पिया करती थीं। इस तरह उन्हें सिगरेट पीने की लत लगी।
• अमृता साहिर को ताउम्र नहीं भुला पाईं।
• साहिर उनके लिए मेरे शायर, मेरा महबूब, मेरा खुदा और मेरे देवता थे। दोनों एक दूसरे को प्यार भरे खत लिखते थे।
• साहिर के लाहौर से बंबई चले आने और अमृता के दिल्ली आ बसने के कारण दोनों में भौगोलिक दूरी आ गयी थी। गायिका सुधा मल्होत्रा की तरफ साहिर के झुकाव ने भी इस दूरी को और बढ़ाया।
• बावजूद इसके साहिर भी कभी अमृता को दिल से दूर नहीं कर पाये। अगर अमृता के पास साहिर की पी हुई सिगरेटों के टोटे थे तो साहिर के पास भी चाय का एक प्याला था जिसमें कभी अमृता ने चाय पी थी। साहिर ने बरसों तक उस प्याले को धोया तक नहीं।
• इमरोज़ अमृता के जीवन में 1958 में आये। दोनों इस मामले में अनूठे थे कि उन्होंने कभी भी एक दूसरे से नहीं कहा कि वो एक-दूसरे से प्यार करते हैं। दोनों पहले दिन से ही एक ही छत के नीचे अलग-अलग कमरों में रहते रहे।
• अमृता रात के समय लिखती थीं। जब न कोई आवाज़ होती हो न टेलीफ़ोन की घंटी बजती हो और न कोई आता-जाता हो।
• इमरोज लगातार चालीस पचास बरस तक रात के एक बजे उठ कर उनके लिए चाय बना कर चुपचाप उनके आगे रखते रहे।
• इमरोज़ के पास जब कार नहीं थी वो अक्सर उन्हें स्कूटर पर ले जाते थे और अमृता की उंगलियाँ हमेशा उनकी पीठ पर कुछ न कुछ लिखती रहती थीं... अक्सर लिखा जाने वाला शब्द साहिर ही होता था।
• जब उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया तो इमरोज़ हर दिन उनके साथ संसद भवन जाते थे और बाहर बैठकर उन का इंतज़ार किया करते थे। जब वे संसद भवन से बाहर निकलती थीं तो उद्घोषक को कहती थीं कि इमरोज़ को बुला दो। एनांउसर समझता था कि इमरोज उनका ड्राइवर है। वह चिल्लाकर कहता था- इमरोज़ ड्राइवर गाड़ी लेकर आओ।
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