1. एक कू्र पंसारी के बेटे एंटन चेखव (1860-1904) का बचपन बहुत मार खाते हुए बीता। वे पीड़ा से कहा करते थे - देयर वाज नो चाइल्डहुड इन माय चाइल्डहुड। मेरा बचपन तो बिना बचपन के ही बीत गया।
2. नवोदित लेखकों से वे कहा करते थे कि कहानी में एक भी शब्द फालतू नहीं होना चाहिये। कहानी में अगर ड्राइंग रूम की दीवार पर बंदूक दिखायी गयी है तो अगले पन्नों पर ये बंदूक चलनी भी चाहिये। नहीं तो बंदूक का जिक्र क्यों।
3. उनका कहना था कि जो जीवन हम जीते हैं, उसी का चित्रण करना चाहिये। जीवन कैसा हो ये देखना लेखक का काम नहीं।
4. वे अपनी कई कहानियों में पाठकों की परीक्षा सी लेते लगते हैं। उनका कहना था कि लेखक का काम सवाल पूछना होता है, जवाब देना नहीं।
5. उन्होंने लिखी गयी और भविष्य में लिखी जाने वाली तमाम रचनाओं के लिए मार्क्स नाम के प्रकाशक से 75000 रूबल में सौदा कर लिया था। जब मित्रों ने उलाहना दिया कि गुरू, घाटे का सौदा कर बैठे हो तो चेखव बोले थे- अगर मैं लंबी उम्र पाऊं तो मेरी विधवा अपनी फूटी किस्मत को रोयेगी और अगर जल्दी मर जाऊं तो मार्क्स की विधवा सिर पीटेगी।
6. वे पेशे से डॉक्टर थे। कहा करते थे – चिकित्सा मेरी कानूनी बीवी है और साहित्य मेरी प्रेमिका।
7. चेखव ने मरीजों का इलाज करके इतना नहीं कमाया होगा जितना उन पर कहानियां लिख कर।
8. मरीज देखने जाने की उन्हें इतनी फीस नहीं मिलती थी जितना पैसा वे घोड़ा गाड़ी पर खर्च करते थे।
9. वे बेहतरीन मेहमान नवाज थे। जाने कहां कहां से लोग उनके घर डेरा डाले रहते। कुछ तो इतने नियमित थे कि बस राशन कार्ड बनवाने की जरूरत बाकी थी। कई नये लेखक होते जो अपनी पांडुलिपियां दुरुस्त कराने के लिए टिके रहते।
10. वे आला दरजे के परोपकारी जीव थे। चेखव म्यूजियम में उन सात हजार लोगों के खत रखे हैं जिनकी मदद उन्होंने की थी। वे उधार देने में भी माहिर थे।
11. मरीज का इंतजार तो कभी भी किया जा सकता था, जब आयेगा तब आयेगा लेकिन लिखने का काम वे आधी रात को या अल सुबह करते। स्टेथस्कोप उनकी लिखने की मेज पर ही रखा रहता।
12. वे खुद डॉक्टर थे लेकिन टीबी के मरीज थे। मरीजों के इलाज में कभी कोताही न बरतते। अपने आखिरी पलों में उन्होंने पत्नी के हाथ से शैंपेन का पूरा गिलास पीया था।
13. तकलीफ की बात ये रही कि उनका शव ट्रेन के जिस डिब्बे में मास्को लाया गया था उसमें मछलियों की ढुलाई होती थी।
14. दूसरा मजाक उनके साथ ये हुआ कि संयोग से उनकी शव यात्रा के समय सेना के एक जनरल कैबर की शव यात्रा भी साथ साथ चल रही थी।
15.चेखव के चहेते भूल से जनरल की शव यात्रा में चलते रहे। यह सब देख सुन कर गोर्की को बहुत तकलीफ पहुंची थी।
2. नवोदित लेखकों से वे कहा करते थे कि कहानी में एक भी शब्द फालतू नहीं होना चाहिये। कहानी में अगर ड्राइंग रूम की दीवार पर बंदूक दिखायी गयी है तो अगले पन्नों पर ये बंदूक चलनी भी चाहिये। नहीं तो बंदूक का जिक्र क्यों।
3. उनका कहना था कि जो जीवन हम जीते हैं, उसी का चित्रण करना चाहिये। जीवन कैसा हो ये देखना लेखक का काम नहीं।
4. वे अपनी कई कहानियों में पाठकों की परीक्षा सी लेते लगते हैं। उनका कहना था कि लेखक का काम सवाल पूछना होता है, जवाब देना नहीं।
5. उन्होंने लिखी गयी और भविष्य में लिखी जाने वाली तमाम रचनाओं के लिए मार्क्स नाम के प्रकाशक से 75000 रूबल में सौदा कर लिया था। जब मित्रों ने उलाहना दिया कि गुरू, घाटे का सौदा कर बैठे हो तो चेखव बोले थे- अगर मैं लंबी उम्र पाऊं तो मेरी विधवा अपनी फूटी किस्मत को रोयेगी और अगर जल्दी मर जाऊं तो मार्क्स की विधवा सिर पीटेगी।
6. वे पेशे से डॉक्टर थे। कहा करते थे – चिकित्सा मेरी कानूनी बीवी है और साहित्य मेरी प्रेमिका।
7. चेखव ने मरीजों का इलाज करके इतना नहीं कमाया होगा जितना उन पर कहानियां लिख कर।
8. मरीज देखने जाने की उन्हें इतनी फीस नहीं मिलती थी जितना पैसा वे घोड़ा गाड़ी पर खर्च करते थे।
9. वे बेहतरीन मेहमान नवाज थे। जाने कहां कहां से लोग उनके घर डेरा डाले रहते। कुछ तो इतने नियमित थे कि बस राशन कार्ड बनवाने की जरूरत बाकी थी। कई नये लेखक होते जो अपनी पांडुलिपियां दुरुस्त कराने के लिए टिके रहते।
10. वे आला दरजे के परोपकारी जीव थे। चेखव म्यूजियम में उन सात हजार लोगों के खत रखे हैं जिनकी मदद उन्होंने की थी। वे उधार देने में भी माहिर थे।
11. मरीज का इंतजार तो कभी भी किया जा सकता था, जब आयेगा तब आयेगा लेकिन लिखने का काम वे आधी रात को या अल सुबह करते। स्टेथस्कोप उनकी लिखने की मेज पर ही रखा रहता।
12. वे खुद डॉक्टर थे लेकिन टीबी के मरीज थे। मरीजों के इलाज में कभी कोताही न बरतते। अपने आखिरी पलों में उन्होंने पत्नी के हाथ से शैंपेन का पूरा गिलास पीया था।
13. तकलीफ की बात ये रही कि उनका शव ट्रेन के जिस डिब्बे में मास्को लाया गया था उसमें मछलियों की ढुलाई होती थी।
14. दूसरा मजाक उनके साथ ये हुआ कि संयोग से उनकी शव यात्रा के समय सेना के एक जनरल कैबर की शव यात्रा भी साथ साथ चल रही थी।
15.चेखव के चहेते भूल से जनरल की शव यात्रा में चलते रहे। यह सब देख सुन कर गोर्की को बहुत तकलीफ पहुंची थी।
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