• 1951 में बीस बरस का एक युवक एक संपादक के पास पहुंचा और कहने लगा- मुझे आपके अखबार में कॉलम लिखना है। संपादक हैरान - भाई ऐसी कौन सी बात है तुममें। हम तुम्हारा कॉलम क्यों छापें। कॉलम की जगह हम विज्ञापन न छापें। युवक ने भोलेपन से जवाब दिया - आप अपने संपादकीय की जगह विज्ञापन छापें। ज्यादा कमाई होगी। उसी दिन तय हो गया था कि यह कॉलम लिखा जायेगा। कॉलम लगातार पांच बरस चला। वह युवक था शरद जोशी और संपादक थे राहुल बारपुते। अख़बार था इंदौर का नई दुनिया। यहीं से व्यंग्यकार शरद जोशी की रचना यात्रा शुरू हुई जो उनके जीवन के अंतिम दिन तक अनवरत चलती रही।
• शरद जी ने एकाध बार ही नौकरी की और आजीवन मसीजीवी रहे।
• उनका कॉलम प्रतिदिन नवभारत टाइम्स के सभी संस्करणों में लगातार सात बरस तक छपता रहा। ये कॉलम चाय वाले से ले कर राष्ट्रपति तक पढ़ते थे।
• राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह इस कॉलम के बहुत मुरीद थे और अक्सर शरद जी को सुबह सुबह फोन करके बधाई दिया करते थे।
• राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने भी एक बार शरद जी पर लेख लिखा था।
• शरद जी अपने कॉलम के लेखन के बारे में इतने नियमित थे कि एक बार पत्नी के अस्पताल में भर्ती होने के कारण हिंदूजा अस्पताल की कैंटीन में बैठकर अपना कॉलम लिखा था।
• शरद जी अपना कॉलम सुबह लिखते थे और सीरियल वगैरह लिखने का काम दोपहर को करते थे। तेइस पन्ने की स्क्रिप्ट तेइस ही पन्नों में। कोई काटा पीटी नहीं। उनके काम के समय घर पर कोई ऊंची आवाज में बात तक नहीं करता था।
• वे अकेले गद्य लेखक थे जो कवि सम्मेलनों से 25 बरस तक कवियों के बीच गद्य रचना पढ़ते रहे और सबसे अधिक पसंद भी किये जाते रहे।
• एक बार एक कवि सम्मेलन की शुरूआत में ही एक फोटोग्राफर फोटो लेते समय नीचे गिर गया और वहीं पर उसकी मृत्यु हो गई थी। बाकी सभी कवि इस पक्ष में थे कि दो मिनट का मौन धारण करने के बाद कवि सम्मेलन शुरू कर दिया जाए। आखिर मानदेय का सवाल था लेकिन शरद जी ने ऐसा करने से मना कर दिया और कवि सम्मेलन नहीं होने दिया था।
• शरद जी अपनी लेखनी का अपमान जरा भी बर्दाश्त नहीं कर पाते थे। एक बार एक बड़े मंच से रचना पाठ किये बिना ही उतर आये थे क्योंकि वहां उन्हें अपने मन की रचना पढ़ने के लिए मना कर दिया गया था।
• एक बार अपनी बेटी के साथ फ्रिज खरीदने गये और जब वापिस लौटे तो फ्रिज की जगह एक पुस्तक मेले से ढेर सारी किताबें खरीद लाये।
• शरद जी ने लगभग 4500 व्यंग्य रचनाएं लिखीं।
• शरद जोशी ने लिखा था, ‘'लिखना मेरे लिए जीवन जीने की तरक़ीब है। इतना लिख लेने के बाद अपने लिखे को देख मैं सिर्फ यही कह पाता हूँ कि चलो, इतने बरस जी लिया। यह न होता तो इसका क्या विकल्प होता, अब सोचना कठिन है। लेखन मेरा निजी उद्देश्य है।
• वे कहते थे लिखने के लिए मुझे थोड़ी सी धूप, ठंडी हवा, बढिया कागज और ऐसी कलम चाहिये जो बीच में न रुके।
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