लेखकों की बातें – किस्सा तैंतालिस – जेल में छद्म नाम से लिखते
थे कहानियां ओ हेनरी
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ओ हेनरी (1862-1910) का मूल
नाम विलियम
सिडनी पोर्टर था।
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जब तीन बरस
के थे
तो उनकी
माँ का
देहांत हो
गया था
और उन्हें पिता के साथ नाना के घर
रहना पड़ा था।
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बचपन से ही
ओ हेनरी को पढ़ने का चस्का लग गया। साथ ही पेट पालने के लिए कम उम्र में ही बहुत सारे
काम करने
पड़े।
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वे बचपन से ही गाने बजाने में माहिर
थे।
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वे पत्रकार बने, बैंक में क्लर्की की। एक रिश्तेदार के यहां फार्मेसी में
काम किया। साथ साथ लिखते भी रहे।
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पहली पत्नी से
भाग कर शादी की थी और दूसरी पत्नी उन्हें छोड़ कर भाग गयी थी।
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जब एक बैंक में
काम मिला तो वहां कुछ हेराफेरी हुई और वे निकाल दिये गये।
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बाद में पता चला
कि हेराफेरी में उनका भी हाथ था तो केस चला।
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वे मुकदमे की
सुनवाई के लिए अपने ससुर के साथ अदालत आ रहे थे कि बीच में ही गायब हो कर दूसरे
देश होंडरस चले गये। कई बरस वहीं रहे। वहां एक खतरनाक ट्रेन रॉबर के संपर्क में
आये।
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वहां पर पता चला
कि पीछे पत्नी की हालत खराब है तो हार कर वापिस आये। गिरफ्तार कर लिये गये और
पाँच बरस की सज़ा हुई। अच्छे व्यवहार के कारण वे तीन बरस में रिहा कर दिये गये
थे।
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जेल में
फार्मेसी के अनुभव के आधार पर जेल की अस्पताल में काम करने लगे। इस बात के सुबूत
कम हैं कि वे जेल में ज्यादा रहे या अस्पताल में।
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बेटी को पालने
के मकसद से वे जेल में कहानियाँ लिखने
लगे और बाहर एक दोस्त के पास छपवाने के लिए भेजते रहे। उसने ये कहानियां 14 अलग
अलग नामों से छपवायीं। बाद में ओ हेनरी नाम प्रसिद्ध हो जाने के बाद यही नाम चल
पड़ा। उनकी बेटी को कभी नहीं बताया गया कि वे जेल में हैं।
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ओ हेनरी अपने
पात्र रचने के लिए होटल की लॉबियों में और इधर उधर भटकते रहते थे और लोगों की
बातें सुनते रहते थे। वे जीवन भर अपने पात्र इसी तरह तलाशते रहे।
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ट्विस्ट इन द
टेल का कमाल दिखाने में माहिर ओ हेनरी कहते थे कि जो अच्छा लगता
है, वही लिखें। लिखने के
बारे में और कोई
नियम नहीं है।
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ओ हेनरी ने आम तौर
पर छोटी
कहानियाँ लिखी
हैं। कुल मिला कर 381 कहानियां लिखीं।
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बाद में वे बहुत
पीने लगे थे जिससे उनके नियमित लेखन पर असर पड़ा।
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जिस कमरे में ओ
हेनरी पर मुकदमा चला था, बाद में प्रसिद्ध हो जाने पर उसी कमरे को ओ हेनरी कक्ष का
नाम दिया गया।
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ओ हेनरी जब मरने
वाले थे
तो उन्होंने कहा था
- कमरे की में बत्तियाँ जला
दो। मैं अंधेरे में घर
नहीं जाना चाहता।
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जब वे मरे तो सिंकदर
की तरह खाली हाथ थे। उनकी अंतिम यात्रा का समय गलती से उनके विवाह के आयोजन के रूप
में तय कर लिया गया था।
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