माइकल मधुसूदन दत्त (1824 – 1873) उन्नीसवीं शताब्दी के बेहद लोकप्रिय बांग्ला नाटककार और कवि थे।
वे आधुनिक बांग्ला नाटक और साथ ही बांग्ला कविता में सॉनेट के जनक माने जाते हैं। मेघनाद बध काव्य उनका अवसादपूर्ण महाकाव्य है जिसकी टक्कर की शैली और कथ्य की दूसरी रचना बांग्ला में नहीं मिलती। रवीन्द्र नाथ ठाकुर से पहले वे ही बांग्ला साहित्य के आकाश में अकेले चमकते रहे। मधुसूदन दत्त ने सबसे पहले अंग्रेजी शैली में बांग्ला नाटक लिखे जिसमें अंक और दृश्य होते थे। वे बहुत अच्छे विद्यार्थी रहे। वे बांग्ला के अलावा संस्कृत, तमिल, ग्रीक, लेटिन, फ्रेंच और अंग्रेजी जानते थे।
जब उनके पिता ने उनकी विद्रोही आदतों पर नकेल डालने के लिए उनका विवाह करना चाहा तो वे बिदक गये। उनके विद्रोह का एक कारण उनका धर्म परिवर्तन भी था। वे इसाई बन गये थे। जब गुस्से में पिता ने उन्हें घर ने निकाला तो दत्त ने कहा था - कभी आप मेरे ही कारण जाने और पहचाने जायेंगे। इसाई बनना उन्हें बहुत महंगा पड़ा। घर छूटा। कॉलेज छूटा। बिरादरी बाहर हुए। पढ़ाई पूरी करने के लिए मद्रास गये। वहां छोटे मोटे धंधे किये। पत्रकारिता की।
मधुसूदन दत्त अंग्रेजी कवि होना और प्रसिद्ध होने के लिए इंगलैंड की यात्रा करना चाहते थे। बाद में वे इसके लिए पछताये भी। उनकी शुरुआती रचनाएं अंग्रेजी में हैं जिनमें वे कुछ खास कर नहीं पाये। परदेस में जा कर ही उन्हें अहसास हुआ कि वे एक गुलाम देश की मामूली भाषा के बाशिंदे हैं। वहीं जा कर उन्हें अपनी औकात का पता चला था।
वे बेहतरीन साहित्यकार थे लेकिन युवावस्था से ही नशे की लत ने उन्हें कहीं का न छोड़ा। नशे की लत ने उन्हें आजीवन कई आर्थिक और मानसिक तकलीफें दीं। ऐसे में उनके सखा ईश्वर चंद्र विद्यासागर उनकी मदद के लिए हमेशा आगे आते। एक बार किसी ने विद्यासागर से किसी ने कहा भी था कि आप क्यों इस नशेड़ी और फालतू आदमी की इतनी मदद करते हैं तो उन्होंने जवाब दिया था कि आप मेघनाद जैसी रचना करके दिखा दीजिये, आपकी भी मदद कर दूंगा।
इंगलैंड में वे सिर से पैर तक कर्ज में डूबे रहे। कई बार जेल जाने की नौबत आ जाती। वे विद्यासागर की मदद से ही देश वापिस आ सके थे। घर माता पिता और संगी साथी उन्हें पहले ही त्याग चुके थे। विद्यासागर दत्त को उनके इंगलैंड प्रवास के दौरान नियमित राशि इस शर्त पर भेजते थे कि वे बांग्ला साहित्य के लिए ही अपना पूरा मन लगायेंगे।
कई भाषाओं में धाराप्रवाह बोल सकते थे और एक ही वक्त में कई भाषाओं में डिक्टेशन दे सकते थे। अपनी मेधा और कुछ और जानने की ललक ने उन्हें ये विश्वास दिला दिया कि वे गलत जगह पैदा हो गये हैं। अपना बंगाली दकियानूसी समाज उन्हें पिछड़ा हुआ लगता जहां उन्हें अपनी बौद्धिक क्षमता के प्रदर्शन की संभावना नजर न आती ।
टैनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस उनकी पड़पोती के बेटे हैं।
दत्त ने दो विवाह किये। दोनों ही अंग्रेजी परिवारों में। पहली पत्नी थी रेबेका नाम की अंग्रेज यतीम। उससे चार बच्चे हुए। दूसरी पत्नी हेनरिटा से दो बच्चे हुए। दत्त बेहद जटिल व्यक्ति थे। दत्त नशे से कभी बाहर नहीं आ पाये। नशा ही उनकी मृत्यु का कारण बना। अपनी पत्नी हेनरिटा की मृत्यु के तीन दिन बाद दत्त अड़तालिस बरस की उम्र में कलकत्ता के एक अस्पताल में गुजरे।
उनकी मृत्यु के पंद्रह बरस बाद तक उन्हें ढंग से श्रद्धाजंलि तक नहीं दी गयी थी। एक मामूली सी समाधि इस महान साहित्यकार की याद दिलाती रही।
आज भी बंग समाज में कोई व्यक्ति असंभव काम करना चाहता है तो उससे कहा जाता है कि क्या माइकल मधुसूदन दत्त बनने का इरादा है।
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