शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

गजानन माधव मुक्तिबोध – पार्टनर, तुम्‍हारी पॅालिटिक्‍स क्‍या है?



कवियों के कवि गजानन माधव मुक्तिबोध (1917-1964) मिडिल की परीक्षा में फेल हो गए थे। पिता की पुलिस की नौकरी के मुक्तिबोध की पढाई में बाधा पड़ती रहती थी। बाद में इन्दौर के होल्कर कॉलेज से 1938 में बी.ए. करके उज्जैन के माडर्न स्कूल में अध्यापक हो गए। इनका एक सहपाठी था शान्ताराम, जो गश्त की ड्यूटी पर तैनात हो गया था। गजानन उसी के साथ रात को शहर की घुमक्कड़ी को निकल जाते। बीड़ी का चस्का शायद तभी से लगा।
पारिवारिक असहमति और विरोध के बावजूद 1939 में शांता जी से प्रेम विवाह किया।
उज्जैन, कलकत्ता, इंदौर, बम्बई, बंगलौर, बनारस तथा जबलपुर आदि जगहों पर भिन्न-भिन्न नौकरियाँ कीं- मास्टरी से वायुसेना, पत्रकारिता से पार्टी तक का काम किया। सूचना तथा प्रकाशन विभाग, आकाशवाणी एवं वसुधा तथा नया ख़ून में काम किया। कुछ माह तक पाठ्य पुस्तकें भी लिखी।
बनारस में  त्रिलोचन शास्त्री के साथ हंस के सम्पादन में शामिल हुए। वहाँ सम्पादन से लेकर डिस्पैचर तक का काम वह करते थे। वेतन साठ रुपये था।
1942 के आस-पास वे वामपंथी विचारधारा की ओर झुके। 1947 में जबलपुर चले गये। वहाँ हितकारिणी हाई स्कूल में वह अध्यापक हो गये और फिर नागपुर जा निकले। नागपुर का समय बीहड़ संघर्ष का समय था, किन्तु रचना की दृष्टि से अत्यन्त उर्वर रहा। उनका अध्‍ययन बहुत व्‍यापक था। हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले मुक्तिबोध कहानीकार भी थे और समीक्षक भी।
उज्जैन में मुक्तिबोध ने मध्य भारत प्रगतिशील लेखक संघ की बुनियाद डाली। मुक्तिबोध नवोदित प्रतिभाओं का निरन्तर उत्साह बढ़ाते रहते और उन्हें आगे लाते। मुक्तिबोध का मज़दूरों से जुड़ाव ज़मीनी था  और वे उनसे घुल मिल कर रहे। अक्सर कष्ट में पड़े साथियों और साहित्यिक बन्धुओं के लिए दौड़-धूप करते।
मुक्तिबोध गरीबों के मुहल्ले में रहते थे। कुली, मजदूर, रिक्शा चालक, क्लर्क, टाइमकीपर,दर्जी वगैरह उनके पड़ोसी थे। मुक्तिबोध ने संघर्षपूर्ण और अभावों वाला जीवन जिया और इस संघर्ष को अपनी विराट रचनात्मकता का आधार बनाया। वे अपने टुटहे फाउंटेन पैन से दूतावासों से आए हुए बुलेटिनों की दूसरी तरफ रचनाएं लिखते।
सन 1949 में नागपुर आने पर काफी अर्से तक मुक्तिबोध इलाहाबाद, बनारस और फिर जबलपुर के अपने अनुभवों के कारण बेहद आशंकाग्रस्त रहते थे। वे पर्सीक्यूशन मेनिया के शिकार हो गये थे और उन्हें हवा में तलवारें दिखाई देतीं। रात को सपने में मोटी-मोटी छिपकलियां उनके ऊपर गिरतीं, वे पसीने-पसीने हो जाते। नागपुर में काफी दिनों तक यह मेनिया बीच-बीच में उभर जाता।
1953 में लिखना शुरू किया। मुक्तिबोध तार सप्तक के पहले कवि थे। उनका कोई स्वतंत्र काव्य-संग्रह उनके जीवन काल में प्रकाशित नहीं हो पाया। मृत्यु के पहले श्रीकांत वर्मा ने उनकी केवल एक साहित्यिक की डायरी प्रकाशि‍त की थी। मुक्तिबोध को उम्र ज़रूर कम मिली, पर कविता, कहानी और आलोचना में उन्होंने युग बदल देने वाला काम किया। उनकी मृत्यु के कुछ ही दिन बाद उनकी महान कविता अंधेरे में कल्पना पत्रिका में प्रकाशित हुई थी।
मुक्तिबोध अपनी पांडुलिपियों का कई-कई बार संशोधन करते। एक कोने में फटे हुए पुराने ड्राफ्टों का ढेर बढ़ता जाता। उनके पास टिन का एक जंग खाया संदूक था जिसमें अंडर रिपेयर रचनाएं जमा होती रहतीं। मुक्तिबोध लेखन और जीवन दोनों के अधूरे ड्राफ्ट ही ढोते रहे। वे कड़क, मीठी, कम से कम दूध वाली, काली चाय पुराने, बदरंग कपों में पीते। अभाव इतने सहे कि पति पत्‍नी को महीने के चार-पांच दिन इसी चाय के सहारे गुजारने पड़ते। हमेशा कर्ज तले दबे रहते। कई बार तो लेनदारों से छुपते छुपाते भी गलियां पार करनी पड़तीं।
पार्टनर तुम्‍हारी पॅालिटिक्‍स क्‍या है?  उनका प्रिय जुमला था और अंधेरे में उनकी सर्वाधिक चर्चित कविता है।
वे आजीवन बेचैन रहे और यही बेचैनी और जद्दोजहद उनकी कविता में नज़र आती है। उनकी कविता का कैनवास बहुत बड़ा है।
उन्‍हें 1964 में पक्षाघात हो गया था। आठ महीने तक बीमारी से जूझने के बाद वे 11 सितम्‍बर को मूर्छा में ही चल बसे थे।

1 टिप्पणी:

Rangnath Singh ने कहा…

आज आपके कई लेख पढ़े.सभी पसंद आए. हम जैसों के लिए लिखते रहें.