सोमवार, 5 जनवरी 2009

कथाकार लवलीन नहीं रहीं




अभी थोड़ी देर पहले जयपुर से दुखद खबर मिली कि कथाकार लवलीन नहीं रहीं. वे मेरी बेहद प्रिय कथाकार और मित्र थीं. कई बार उनकी तकलीफों को देख कर मन व्याकुल हो जाया करता था लेकिन उनकी जिजीविषा देख कर यह आश्वासन भी रहता था कि ये लड़की अपनी जिंदगी खींच ले जायेगी. अपनी पूरी जिंदगी उसने मनों के हिसाब से गोलियां और दूसरी दवायें खायीं और टनों के हिसाब से मानसिक और शारीरिक तकलीफें झेलीं. हजारों के हिसाब से दोस्त बनाये और उतने ही उसके दुश्मन भी रहे होंगे. मेरा उससे लम्बा पत्र व्यवहार था. धर्मयुग में शहर में अकेली लड़की के एक दिन गुजारने को ले कर उसकी एक कहानी छपी थी 1994 के आसपास. मुझे बेहद पसंद थी वह कहानी. तब से उससे खतो किताबत चलती रही. वह दो बार हमारी मुंबई में हमारी पारिवारिक मेहमान रही. एक बार जब लवलीन विजय वर्मा कथा सम्मांन लेने के लिए मुंबई आयी थी तो भी हमारी मेहमान थी. तब मैं, धीरेन्द्र् अस्थाना, उसकी पत्नी ललिता, कवि मनोज शर्मा और उसकी पत्नी लवलीन के साथ गोराई बीच पर घूमने गये थे और पूरा दिन समंदर के किनारे बिताया था. खूब बातें की थीं, धमाल मचाया था और ढेर सारी बीयर पी थी. जब बीयर खत्म हो गयी थी तो हम जिस दुकान नुमा घर के आगे बैठे थे तो वहां और बीयर लेने के लिए गये तो पता चला कि और बीयर नहीं है लेकिन दुकानदार ने हमारा मस्ती भरा व्यवहार देख कर अपनी तरफ से शराब की नन्हीं वाली बोतलें भेंट की थीं. अगली बार जब लवलीन हमारे घर ठहरी थी तो मेरी पत्नी मधु ने उसका साक्षात्कार लिया था जो किसी पत्रिका में छपा था और http://www.abhivyakti-hindi.org/snibandh/sakshatkar/lovleen.htm पर भी पढ़ा जा सकता है.
जब मैं लवलीन के घर जयपुर गया था तो उसने और उसके पति और बिटिया ने जितनी आत्मीयता से मेरा ख्याल रखा था उसे मैं भूल नहीं सकता. बीमार होने के बावजूद वह मुझे लेने के लिए स्टेशन पर आयी थी और ढेर सारी बातें करती रही थी. कभी कभार हम फोन पर बात कर लिया करते थे. वह अपनी खराब सेहत को ले कर हमेशा तनाव में रहती और बताती कि उसका भी वही हाल होना है जो उसकी मां और भाई का हुआ था यानि बेवक्त मौत. उसे समझाने के लिए मेरे पास कभी भी माफिक शब्द नहीं होते थे क्योंकि जिस तरह की कठिन जिंदगी वो जी रही थी, सहानुभूति के कोई भी शब्द बेमानी होते.
वह अपनी खराब मानसिक और शारीरिक हालत के बावजूद कई मोर्चों पर लगातार डटी रहती थी. बिटिया के कैरियर को संवारने की योजनाएं बनाती रहती थी. लिखती रहती थी और सबसे जूझती रहती थी. लगातार सिगरेट पीना, नशे के उपाय करना उसकी जरूरत बन चुके थे और उसकी इन लतों ने उसे खासी बदनामी दिलायी. पर क्या करती वह. उसके हिस्से में जितने दुख लिखे थे उन्हें भोगने के लिए उसे कुछ तो चाहिये था जो उसे अपने आप को भूलने में भी मदद करे और तकलीफों से पार पाने की हिम्मत भी दे.
उसे मेरा उपन्यास देस बिराना बहुत पसंद था लेकिन उसने ये भी कहा था - सूरज ख्याल रखना, तुमने अपना बेहतरीन इस उपन्यास में उड़ेल दिया है. कहीं ऐसा न हो कि बाद में कुछ कहने के लिए बचे ही ना. तुमने सच कहा था लवलीन, उस किताब के बाद मेरे पास कहने के लिए कुछ भी तो नहीं रहा है. लिखना ही बंद हो चुका है. लेकिन लवलीन, मैं फिर लिखूंगा और तुम्हारे लम्बे संघर्ष से प्रेरणा ले कर लिखूंगा. तुम्हारी याद को बनाये रखने के लिए जरूर लिखूंगा.
सूरज

14 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

abhee suraj ke blog per lovleen ke dehant kee khabar padhee. padhkar oonse pahalee mulaaqaat yaad aaeye.wey hamare ghar thaharee theeN. 2 din se ghar ka khana kha rahee theeN. mujhe laga ki ek din bahar bhee khilana chahiye. so meine oonko restraurent mein dinner ke liye kah diya. lekin wey badi hi sarlata se boleeN," mujhe ghar ka khana accha lagta hai.mein ghar mein khana prefer karoongee." wey apnee baat bade hi bebaaq tareeke se kahatee theeN. wey saaf bol dee theeN ek din," madhu tum suraj se zyada practical ho. isliye safal ho." aur mein chup rah gayee thee ye sunkar ki itnee badi rachanakar ne mujhe ek tag de diya thaa. oonko dekhkar lagta hi nahin thaa ki wey badi activist bhee hongee. ek ghar ke talash ne oonheiN kai dhokhe bhee dilwaye.per oonke mazboot manobal ko salaam ki wey purushoN ke rajya mein bhee khud ko sthapit kar pyaaeN.abhee ek baar aur mumbai aayee theeN aur oonko kisi prog mein jana thaa. meine kaha ki aapko bulaya hai aap chalee jaaiye,lekin wey bilkul nahin maaneeN. boleeN ki madhu, tumhare bina nahin jaaoongee. mujhe tumhara saath accha lagta hai.aur mein hairaan ki mere jaisee bore mahila ka saath kisi ko accha lag sakta hai.aur mein oonke saath gayee,oonhone ek pal bhee mujhe akela nahin rahane diya. dar asal suraj ke rachana sansaar ko hi meine apna rachana sansaar maan liya hai, oonke sabhee dost mere bahut acche dost haiN.suraj ko isese rashq bhee hota hai.lovleen oonmein se ek theeN.
oonko meri vinamra shraddhanjali.

बेनामी ने कहा…

अरे !

इस साहसी कथाकार को मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि .

उनसे ९२ में जनवादी लेखक संघ के सम्मेलन के दौरान जयपुर में मिलना हुआ था .

श्रुति अग्रवाल ने कहा…

ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें......

Dr Parveen Chopra ने कहा…

दिवंगत आत्मा की शांति के लिये हम भी प्रार्थना कर रहे हैं, परमात्मा करे कि जितने कष्ट का उल्लेख आपने अपनी पोस्ट में किया है , उस से कईं गुणा सुख उन्हें अब स्वर्ग में नसीब हों.
वैसे लेखन कार्य भी कितना मुश्किल है कि आदमी अपनी सारी व्यक्तिगत परेशानियों से ऊपर उठ कर पाठकों के मनोबल को ऊंचा उठाने के लिये लिखता ही रहता है--- लिखता ही रहता है जब तक कि कलम हाथ से छूट ही नहीं जाता।
दोस्त, हम भी आप के दुःख में दुःखी हैं। परमात्मा परिवार को इस सदमे को सहने की शक्ति प्रदान करे।
आप भी अपना लेखन ज़ारी रखिये ।

Kavita Vachaknavee ने कहा…

श्रद्धान्जलि!!

बोधिसत्व ने कहा…

यह तो बुरी खबर है...लवलीन को मेरी भी श्रद्धांजलि

siddheshwar singh ने कहा…

इस चर्चित कथाकार का जाना!
क्या कहूँ ?
कहानी रह जायेगी!!
नमन!!

Unknown ने कहा…

हिम्मती औरत थी और दोस्त भी। लेकिन अच्छा हुआ तुम्हारा लिखना बंद हो ग।

naveen kumar naithani ने कहा…

आज ही यह खबर देखी. लवलीन की कहानिया हस मे देखी थी
बहुत अलग तरह से लिखती थी .जयपुर मे हरजीत के साथ जब दीपक के यहा रुका था तो मुलाकात की बात सोची थी. हो नही पाई.
यकीन नही होता.
स्तब्ध हू.ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे

अजित वडनेरकर ने कहा…

लवलीन और हमारा करीब बाइस तेइस वर्ष पुराना परिचय रहा है। उनके निधन की खबर जैसे ही कृष्णकल्पित को मिली, उन्होंने हमेशा की तरह हमे सूचना दी। नभाटा जयपुर में बिताए दस वर्षों में तो हम लोग परिवार की तरह ही जुड़े रहे,उसके बाद भी सम्पर्क लगातार बना रहा। लवलीन एक बहुत अच्छी इन्सान थीं। ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें। तीन वर्ष पहले हमारे अभिन्न संजीव मिश्र भी हमें यूं ही अचानक छोड़ कर चले गए थे।

ravindra vyas ने कहा…

श्रद्धांजलि।

Amit Kumar Yadav ने कहा…

श्रद्धांजलि।
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आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!

डॉ .अनुराग ने कहा…

दुखद है !मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि .

pallav ने कहा…

Rajasthan ke ek aur kathakar YADAVENDRA SHARMA CHANDRA nahi rahe.