गुरुवार, 10 अप्रैल 2008

मेरा उपन्‍यास देस बिराना विकिसोर्स पर

मित्रो
विकीसोर्स पर बहुत कम हिन्‍दी साहित्‍य उपलब्‍ध है. बेशक बहुत से हिन्‍दी रचनाकारों की स्‍तरीय रचनाएं ब्‍लागों में या इधर उधर बिखरी हुई हैं. हम सब को मिल कर इस बात की कोशिश करनी चाहिये कि हमारा साहित्‍य किसी कॉमन प्‍लेटफार्म पर भी उपलब्‍ध हो. इसी दिशा में एक प्रयास करते हुए आज मैंने अपना उपन्‍यास देस बिराना इस पते पर डाला है -
http://wikisource.org/wiki/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B8_%E0%A4%AC%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE
बेहद पठनीय और सहज भाषा शैली में रचा गया यह मार्मिक उपन्यास एक ऐसे अकेले लड़के की कथा लेकर चलता है जिसे किन्हीं कारणों के चलते सिर्फ चौदह साल की मासूम उम्र में घर छोड़ना पड़ता है, लेकिन आगे पढ़ने की ललक, कुछ कर दिखाने की तमन्ना और उसके मन में बसा हुआ घर का आतंक उसे बहुत भटकाते हैं।
यह अपने तरह का पहला उपन्यास है जो एक साथ ज़िंदगी के कई प्रश्नों से बारीकी से जूझता है। अकेलापन क्या होता है, और घर से बाहर रहने वाले के लिए घर क्या मायने रखता है, बाहर की ज़िंदगी और घर की ज़िंदगी और आगे बढ़ने की ललक आदमी को सफल तो बना देती है लेकिन उसे किन किन मोर्चों पर क्या क्या खोना पड़ता है, इन सब सवालों की यह उपन्यास बहुत ही बारीकी से पड़ताल करता है। इसी उपन्यास से हमें पता चलता है कि भारत से बाहर की चमकीली दुनिया दरअसल कितनी फीकी और बदरंग है तथा लंदन में भारतीय समुदाय की असलियत क्या है। यह उपन्‍यास एमपी3 में ऑडियो में भी उपलब्‍ध है)
सूरज प्रकाश

7 टिप्‍पणियां:

ghughutibasuti ने कहा…

yah upanyas net per dalne ke liye apko badhaai. ajkal ghar se bahar hun, ghar lautker avashya padhungi.
ghughutibasuti

rakhshanda ने कहा…

zaroor padhungi.

विजय गौड़ ने कहा…

उपन्यास की सूचना सुखद है. जरूर पढूंगा, फ़िर विसतार से चर्चा करूंगा.

रवि रतलामी ने कहा…

ऊपर आपके द्वारा दी गई कड़ी काम नहीं कर रही है.rदेस बिराना उपन्यास की सही कड़ी यह है

अनुनाद सिंह ने कहा…

मैने आपके उपन्यास को कई पृष्ठों में बांटकर व्यवस्थित कर दिया है। अब इसको लोड करने में कम समय लगेगा। हाँ, इसकी और फारमेटिन्ग करने की जरूरत अभी भी है।

पारुल "पुखराज" ने कहा…

लिंक खुल गये हैं-आभार

Vineeta Yashswi ने कहा…

apka upnayas net per parha. kafi achha laga upnayas. aur net mai pahli baar upnayas parne ka anubha bhi achha raha
dhanyawaad