मंगलवार, 13 मार्च 2012

मेरा नया पुस्‍तकालय


मेरे साठवें जन्म दिन की पूर्व संध्या पर मेरे प्या्रे बेटों अभिजित और अभिज्ञान ने मुझे अद्भुत उपहार दिया है। आगे आने वाले दिनों में ये उपहार न केवल मेरा हर वक्त का संगी साथी रहा करेगा बल्कि मुझे ये भी याद दिलाता रहेगा कि मैं कितना खुशनसीब पिता हूं कि मेरे बच्चे मेरा इतना ख्याल रखते हैं।
मेरे मित्र जानते ही हैं कि कुछ ही दिन पहले मैंने अपना पूरा पुस्तकालय फेसबुक के जरिये पुस्तकालयों और परिचित, अपरिचित मित्रों को उपहार में दे दिया था और बेटियों जैसी 4000 किताबों की विदाई के बाद घर एकदम खाली खाली लगने लगा था। मेरे बच्चों ने मुझे एक नया पुस्तकालय ही उपहार में दे दिया है। इस पुस्तकालय में मेरी पसंद की किताबें रहा करेंगी। पहले सारे घर में किताबें बिखरी रहती थीं अब ये वाला पुस्तकालय हर वक्त मेरी जेब में रहा करेगा। इस पुस्तकालय का आकार है लगभग 6 इंच X 4 इंच और इसमें लगभग 1400 पुस्तकें समा सकती हैं। इतना ही नहीं, मैं पहले की तरह मित्रों को पुस्तकें उपहार में देता रह सकता हूं, नयी किताबें, अखबार और पत्रिकाएं खरीद सकता हूं। मेरा पुस्तकालय हर वक्त मेरे पास। न चोरी का घर, न दीमक की चिंता। न कैटेलागिंग का झंझट और न ही किताबें गुम जाने की फिक्र। 160 ग्राम के इस पुस्तकालय का नाम है KINDLE और ये amazon.com की अनुपम भेंट है। wi-fi के जरिये किताबें खरीदें या डाउनलोड करें। मिनटों में। ई बुक्स के रूप में। अब तो हिंदी में भी ई बुक्स आने लगी हैं। मैंने तो रातों-रात अपना सारा साहित्य pdf में कन्वर्ट करके इसमें डाल दिया है। न पेनड्राइव की चिंता, न वायरस का डर। जहां मर्जी जिस रचना का पाठ करना हो, पूरी लाइब्रेरी साथ में। शायद इसी को कहते हैं – कर लो दुनिया मुट्ठी में।
थैंक यू माय डीयर अभिजित एंड अभिज्ञान

4 टिप्‍पणियां:

रूपसिंह चन्देल ने कहा…
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arbind ankur ने कहा…
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arbind ankur ने कहा…
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