आज अखबार ने बताया कि आज लैफ्ट हैंडर्स डे है. जब भी इस तरह के डे की बात पढ़ता हूं तो यही अफसोस होता है कि बरस भर के बाकी दिन तो दूसरों के लिए लेकिन एक दिन आपका. अब चाहे मदर्स डे हो या फादर्स डे. साल में एक दिन आपका. भले ही अपने देश का करवा चौथ का व्रत ही क्यों न हो. बेचारे पति के हिस्से में पूरे बरस में एक ही दिन आता है. जवाब में आप ये भी कह सकते हैं कि बेचारी महिलाओं के हिस्से में भी तो बरस भर में एक ही वीमेंस डे आता है. बाकी दिन तो उन्हें कोई याद नहीं करता.
तो बात चल रही थी लैफ्ट हैंडर्स डे की. मेरे पिता बेशक खब्बू थे लेकिन बचपन में हुई पिटाई के कारण दायें हाथ से लिखने के अलावा जीवन भर अपने सारे काम बायें हाथ से करते रहे. चाहे टेबिल टेनिस खेलना हो, कैरम खेलना हो या खाना खाना हो.
यही हाल मेरे बड़े भाई का रहा. वे खब्बू होने के बावजूद लिखने सहित अपने सारे काम दायें हाथ से करने को मजबूर हुए और नतीजा ये हुआ कि वे जिंदगी में जितनी तरक्की कर सकते थे. नहीं कर पाये. औसत से कम वाली जिंदगी उनके हिस्से में आयी.
मेरा छोटा बेटा भी खब्बू है. लेकिन उसे अपने सारे काम बायें हाथ से करने की पूरी छूट है. बेशक वह गिटार दायें हाथ से बजा लेता है और पीसी पर माउस भी दायें हाथ से ही चलाता है. पीसी की वजह समझ में आती है कि पीसी पूरे घर का सांझा है और वह इस बात को ठीक नहीं समझता कि बार बार सेटिंग करके माउस को अपने लिए लैफ्ट हैंडर बनाये. बाकी काम वह बायें हाथ से ही करता है.
मुझे याद पड़ता है कि हमारे बचपन में खब्बुओं को मार मार कर सज्जू कर दिया जाता था. (पंजाबी में बायें हाथ को खब्बा और दायें हाथ को सज्जा हाथ कहते हैं). मजाल है आप कोई काम खब्बे हाथ से कर के दिखा दें. घर पर तो पिटाई होती ही थी. मास्टर लोग भी अपनी खुजली उन्हें मार मार कर मिटाते थे. दुनिया में पूरी जनसंख्या के तीस से पैंतीस प्रतिशत लोग खब्बू तो होते ही होंगे लेकिन ये भारत में ही और वो भी उत्तर भारत में ज्यादा होता है कि बायें हाथ से काम करने वाले को पीट पीट कर दायें हाथ से काम करने पर मजबूर किया जाता है. उसका मानसिक विकास तो रुकेगा ही जब आप प्रकृति के खिलाफ उस पर अपनी चलायेंगे.
मैंने सिर्फ गुजरात में ही देखा कि क्लास में और ट्रेनिंग सेंटर्स में भी इनबिल्ट मेज वाली कुर्सियां लैफ्ट हैंडर्स के लिए भी होती हैं बेशक तीस में से पांच ही क्यों न हों. ये भी मैंने गुजरात में ही देखा कि कई पति पत्नी दोनों ही खब्बू हैं. कई कई तो डाक्टर भी.
कहा जाता है कि पहले के ज़माने में युद्धों में बायें हाथ से लड़ने वालों को तकलीफ होती थी. वे मरते भी ज्यादा थे क्योंकि सामने वाले के बायें हाथ में ढाल है और दायें में तलवार. वह अपने सीने की रक्षा करते हुए सामने वाले के सीने पर वार कर सकता था लेकिन खब्बू महाशय के बायें हाथ में तलवार और दायें हाथ में ढाल है. बेचारा दिल तो उनका भी बायीं तरफ ही रहता था. नतीजा यही हुआ कि लड़ाइयों की वजह से खब्बू ज्यादा शहीद होते रहे और दुनिया की जनसंख्या में उनका प्रतिशत भी कम हुआ. ये एक कारण हो सकता है.
मैं विदेशों की नहीं जानता कि वहां पर लैफ्ट हैंडर्स के साथ क्या व्यवहार होता है. लेकिन ये मानने में कोई हर्ज नहीं कि उन्हें सम्मान तो मिलता ही होगा उन्हें भी तभी तो वे लैफ्ट हैंडर्स डे मनाने की सोच सकते हैं. पिटाई तो उनकी वैसे भी नहीं होती. आइये जानें दुनिया के कुछ खास खास खब्बुओं के बारे में. जरा सोचिये, अगर इन सबको भी पीट पीट कर सज्जू बना दिया जाता तो क्या होता. ये है सूची – महात्मा गांधी, सिंकदर महान, हैंस क्रिश्चियन एंडरसन, बिस्मार्क, नेपोलियन बोनापार्ट, जॉर्ज बुश सीनियर, जूलियस सीजर, लुइस कैरोल, चार्ली चैप्लिन, विंस्टन चर्चिल, बिल क्लिंटन, लियोनार्डो द विंची, अल्बर्ट आइंस्टीन, बेंजामिन फ्रेंकलिन, ग्रेटा गार्बो, इलियास होव, निकोल किडमैन, गैरी सोबर्स, ब्रायन लारा, सौरव गांगुली, वसीम अकरम, माइकल एंजेलो, मर्लिन मनरो, पेले, प्रिंस चार्ल्स, क्वीन विक्टोरिया, क्रिस्टोफर रीव, जिमी कोनर्स, टाम क्रूज, सिल्वेस्टर स्टेलोन, बीथोवन, एच जी वेल्स और अपने देश के बाप बेटा बच्चन जी.
है ना मजेदार लिस्ट.
आज के दिन सभी लैफ्ट हैंडर्स को सलाम.
सूरज प्रकाश
15 टिप्पणियां:
सूरज जी
खब्बे हाथ वालों की लिस्ट इतनी इम्प्रेसिव है की सोच रहा हूँ आज से सज्जे हाथ से लिखना छोड़ के खब्बे से लिखने की प्रक्टिस करना शुरू कर दूँ...बड़ी मजेदार पोस्ट लगी जी आप की.
नीरज
आज तो अंदाज कुछ बदला-बदला है हुजूर. लेकिन है मस्त. मै तो सोच रहा था बाद में आएगें यहां तक कुछ इतमिनान से इतमिनान का पढने. पर चटपटा और उतने ही चटर-पटर ढंग से पढा भी गया. जारी रहें इस अंदाज में भी।
लिस्ट पढ़ कर तो लगा कि खब्बे हाथ वाला ज्यादा फ़ायदे मंद रहा,हमारा उल्टा हाथ तो जरा भी नही चलता सिवाय की बोर्ड के...:(
बहुत अच्छी पोस्ट लगी सूरज जी।
बहुत बढ़िया साहब!
पता नहीं कौन-कौन से दिन बना रक्खे हैं पर आपने लिक्खा बहुत अच्छा है!
बधाई
आपने इस लिस्ट मैं एक नाम छोङ दिया सरिता जी वो हमारी पूज्यनीया धर्मपत्नी जी है...
Dear Suraj
Left hand say likhney waaloN ke ek lambi fehrista hai. Hindi ki mukhya dhara ka sahitya left hander hee hai ! ! !
मैं स्वयं भी खब्बू हूँ. बचपन में बहुत मार खाई कि सीधे हाथ से लिखूँ और खाऊँ-मगर हम खब्बू ही रह गये और आज अपना दिन मना रहे हैं. :)
रोचक जानकारी दी आपने - और बच्चन जुनीयर ( अमित भैया ) के लेफ्ट हेन्ड से खाना खाते वक्त
उन्हेँ परोस्ने मेँ जो परेशानी आती थी उसका अनुभव कर चुकी हूँ
पता नहीँ था ऐसा भी डिवस होता है -हमारे समीर भाई को भी आजके दिन बधाई -
"Happy Left Handre's Day "
-लावण्या
aisa bhi koi din hai?to fir aaj ka din hamaara hai...subah daal dete ye post...
मैं भी एक प्राऊड खब्बू हूं.
मेरी नानी नें मुझे सज्जू बनाने की एक बार कोशिश की जिसे मेरे पिताजी की हिदायत के बाद कभी किसी ने दोहराया नहीं.
जिनका दांया दिमाग बाएं से अधिक क्रियाशील होता है वो खब्बू होते हैं. खब्बू लोगों के लिये कहा जाता है की ये अधिक कल्पनाशील, कलाप्रेमी और सृजनशील होगे हैं -अपवाद शायद हर जगह हैं .. काश उपरोक्त लिस्ट में अपना नाम भी होता.:)
वाह - अपना दिन और पता नहीं? - मैं भी अपना बांया हाथ उठाता हूँ [और मेरा छोटा लड़का भी - शायद] - साभार - मनीष
अच्छा लगा बहुत बहुत बधाई
भाईसाहब,
पहली बात तो यह कि मुझे पहली बार पता चला कि दायें हाथ से काम करने वालों को 'सज्जू' कहते हैं। दूसरी यह कि आम-तौर पर झिड़कियाँ खाने वाले 'खब्बुओं'पर इतना अच्छा लिखा जा सकता है, यह भी मैंने पहली बार ही जाना। पता नहीं क्यों, खब्बू मुझे प्रारम्भ से ही आकर्षित करते रहे हैं। मुझे लगता रहा है कि खब्बू सज्जुओं की तुलना में कहीं अधिक सकारात्मक और मारक होते हैं। नया विज़न देने वाले लेख के लिए बहुत-बहुत बधाई!
आप सब के इतने सारे पत्र. मेरा हौसला बढ़ा
लेख के पीछे कई कारण रहे कि मेरे पिता, फिर भाई और बेटा तीनों खब्बू. बेशक मेरे पिता के खब्बू होने पर हम कुछ नहीं कर सकते थे लेकिन बड़े भाई का जीवन बरबाद इसी वजह से हुआ. बायें हाथ से काम करने के कारण पहले पिटाई. पिटाई के कारण हकलाना शुरु हुआ. हकलाने के कारण आत्म विश्वास डगमगाया और उपहास के पात्र बने. आत्म विश्वास खोया तो पढ़ाई में लुढके. इतना ही नहीं. कैरियर नहीं बना पाये. आजीवन हकलाना और खब्बू होना भारी पड़ते रहे. अभी 60 बरस के होने के बावजूद हीनता की ग्रंथि से उबर नहीं पाये हैं.
शायद ये ही कुछ दबाव रहे कि लिखा.
आप सब जैसे पाठक का मिलना ऐसे ही तो होता है
सूरज
मजेदार पोस्ट ....
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