सुबह सुहानी है। मौसम मीठा मीठा सा तराना छेड़े हुए है। आज का दिन हमारे लिए खास है। बड़ा बेटा अपनी पहली नौकरी पर गया है। नागपुर से बीटेक और आइआइएम, लखनऊ से एमबीए करने के बाद। मेरे खराब स्वास्थ्य के बावजूद मेरी हिम्मत बढ़ाने के लिए उसने मुझे अपने पैंट कमीज प्रेस करने के लिए दिये जो मैंने खुशी खुशी कर दिये। मुझे टाई की नॉट लगाने के लिए दी। मैंने लगा दी।
कई बरस पहले के दिन याद आ गये। बीस बरस पहले भी उसे स्कूल भेजने के दिन हम इतने ही उत्साह में थे। उसे तैयार कर रहे थे। तब बरसात हो रही थी और बेटा चिल्ला रहा था - जल्दी करो रेन कोट पहनाओ नहीं तो बरसात रुक जायेगी और रेनकोट पहनना बेकार हो जायेगा। आज भी बेशक मौसम वैसा ही है लेकिन बरसात नहीं है। शहर बेशक वही है। तब बंबई था अब मुंबई हो गया है।
वक्त कितनी तेजी से करवट बदलता है। पता ही नहीं चलता कब हम बूढ़े हो गये और बच्चे बड़े। कई बार हम बूढ़े होने से इनकार भी कर देते हैं। बस या राह में कोई अंकल कहे या मराठी या गुजराती में वढील यानी बुजुर्ग कहे तो नाराज हो जाते हैं। दिल्ली यात्रा में एक बस में इस बार कंडक्टर ने मेरी सफेद दाढ़ी देख कर मुझसे कहा कि सीनियर सिटीजन की सीट पर जो आदमी बैठा है उसे उठा कर आप बैठ जाओ लेकिन मैंने तकलीफ के बावजूद इनकार कर दिया कि सीनियर सिटीजन का हक मांगने लायक तो नहीं ही हुआ। खड़ा रहा। तब कंडक्टर खुद उठ कर उस आदमी तक गया और मेरे लिए सीट खाली करायी। तब बैठा।
एक और मजेदार किस्सा हुआ। मेरी एक मित्र है - फोन वाली मित्र। कभी मिले नहीं। मिलेंगे भी नहीं, पता नहीं। अक्सर बातें करते हैं। पढ़ाती है। अक्सर मेरी सलाह लेती रहती है और अपने सुख दुख बांटती है। उसे कुछ काम की सलाह दी होगी तो बेहद खुश थी। कहने लगी कि सूरज तुम्हें कुछ देना चाहती हूं - मना मत करना। मैं हैरान, फोन पर भला क्या देगी। उसने फोन पर किस करने की आवाज निकाली और कहा - ये स्वीट किस मेरी तरफ से। मैं हँसने लगा। बोली - हँसे क्यों। मैंने जवाब दिया कि मैं अट्ठावन बरस की उम्र में फोन पर इश्क लड़ा रहा हूं और पप्पियां पा रहा हूं। मेरे पिता जी जब इस उम्र में थे तो पेंशन का हिसाब लगाते रहते थे, तब उनके चार बच्चों की शादी हो चुकी थी और उनके चार पांच पोते पोती थे। ये बात 1985 की है और वे ये सब करने की सोच भी नहीं सकते थे। हम न केवल कर रहे हैं बल्कि ये उम्मीद भी करते हैं कि अभी तो ये सब चलते रहना है।
हमें पता है कि बेटा कभी कभार पी लेता है या सिगरेट के कश ले लेता है। छ: बरस हास्टलों में रहा और जिस तरह के माहौल में, अकेलेपन में और पढ़ाई के तनावों में रहा हम समझ सकते हैं कि कई बार इन चीजों से बचना मुश्किल होता है। लेकिन उसने जब भी पी, मम्मी को फोन पर बता दिया कि आज थोड़ी सी ली है। हमें खबर रहती है। अब मैं उसे किस मुंह से मना करूं जब कि मैं खुद ये सारी हरकतें बीस बरस की उम्र से पहले शुरू कर चुका था।
वह बी टैक करके आया था और उसका घर पर पहला दिन था। हम बातें कर रहे थे और उसकी बहुत इच्छा थी कि मेरे साथ पहली बार बीयर पीये। वह घंटों से जद्दो जहद कर रहा था लेकिन कह नहीं पा रहा था। शायद नागपुर से तय करके आया था कि पीयेगा लेकिन कहे कैसे। तभी मैंने उससे कहा कि बेटे अब तुम ग्रेजुएट हो गये हो इस हिसाब से मेरे दोस्त हुए। हम अब बराबरी से बात कर सकते हैं। चलो बेटे तुम्हारे ग्रेजुएशन की खुशी में हम दोनों आज एक साथ बीयर पीयेंगे।
आप समझ नहीं सकते उसे इस बात से कितनी राहत मिली कि मैं अपने इस एक ही वाक्य से उसकी दुनिया में शामिल हो पाया और उसे अपनी दुनिया में ले आया।
उसी ने तब ये बात बतायी थी कि वह मुझसे बीयर पीने के लिए कहने के लिए दो दिन से कहना चाह रहा था। डर भी रहा था कि मैं पता नहीं कैसे रिएक्ट करूं। बेशक अब वह एमबीए हो कर आ गया है, आज पहला दिन है उसके जॉब का लेकिन हम दोनों ने दोबारा नहीं पी है एक साथ। जरूरत ही नहीं हुई।
कभी मेरे पिता ने भी मेरा संकोच इसी तरह से दूर किया था और मेरी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था। मैं अपनी नौकरी के सिलसिले में 22 बरस की उम्र में घर से 2000 मील दूर हैदराबाद में तीन बरस तक रहा था और दोस्तों के साथ कभी कभार बैठने लगा था। तभी घर लौटने पर एक बार मेरे पिता ने कहा था कि अगर नहीं पीते हो तो बहुत अच्छी बात है और अगर पीते हो तो हमारी कम्पनी में पी सकते हो। हम तुम्हें अच्छी कम्पनी देंगे। तय था कि कभी उनके साथ बैठ कर पी जायेगी तो पूरे अनुशासित तरीके से और लिमिट में ही पी जायेगी। हम बाप बेटे (मैं और मेरे पिता) आज भी एक साथ बैठ कर पीते हैं लेकिन सारी मर्यादाओं में रहते हुए।
मैं नहीं चाहूंगा कि ये परम्परा आगे भी जारी रहे लेकिन आने वाले वक्त के बारे में कौन कह सकता है।