रविवार, 12 अप्रैल 2015

फर्नांदो पेसोआ -छद्म लेखक



क्‍या आप किसी ऐसे कवि की कल्‍पना कर सकते हैं जो कम से कम 75 छद्म नामों से लिखता रहा हो और इन छद्म नामों में से उसके खुद के अलावा तीन नाम ऐसे हों जिन्‍हें अपनी भाषा के चार महत्‍वपूर्ण और दिशा बदलने वाले रचनाकारों में गिना जाता रहा हो।

फर्नांदो  पेसोआ ( जून 13, 1888  - नवम्‍बर 30, 1935) ऐसे ही पुर्तगाली कवि, लेखक, समीक्षक, अनुवादक, प्रकाशक और दार्शनिक थे। वे 20वीं शताब्‍दी के पुर्तगाली भाषा के बेहद महत्‍वपूर्ण रचनाकार माने जाते हैं। वे अंग्रेजी और फ्रेंच में भी लिखते थे और इन भाषाओं में अनुवाद भी करते थे।

• उन्‍होंने 6 बरस की उम्र में ही छद्म नामों से लिखना शुरू कर दिया था। छद्म नामों से लिखने का सिलसिला आजीवन चलता रहा। उनके रचे गये ये काल्‍पनिक लेखक न केवल अपनी भाषा शैली में एक दूसरे से अलग थे बल्‍कि अलग अलग धर्म के और व्‍यवसाय के थे। उनका नजरिया एक दूसरे से इतना अलग था कि यह कल्‍पना तक नहीं की जा सकती थी कि इन सबके पीछे एक ही लेखक काम कर रहा है। कुछ छद्म लेखक तो बदनाम भी हुए।
• पेसोआ ने डेविड मेरिक के नाम से अंग्रेजी में कहानियां भी लिखीं जो बदकिस्‍मती से अधूरी रहीं।
• 1912 में पेसोआ ने समीक्षक के रूप में एक निबंध लिख कर पुर्तगाली साहित्‍य जगत में तहलका मचा दिया।
• पेसोआ ने 1915 में कुछ समानधर्मा रचनाकारों के साथ मिल कर आधुनिक पुर्तगाली साहित्‍य को समर्पित एक पत्रिका भी निकाली जिसके दो ही अंक निकल सके। तीसरा अंक जो आर्थिक संकटों के चलते छप नहीं सका था, 1984 में खोज निकाला गया था और प्रकाशित किया गया था। इसमें पेसोआ अपने मूल नाम के अलावा छद्म नामों के साथ भी मौजूद थे।
• पेसोआ ने 1924-25 में आर्ट जरनल की स्‍थापना की जिसमें वे अपने ही सृजित छद्म नामों वाले लेखकों अल्‍बर्टो कैरो और रिकार्डो रेइस का गद्य छापते थे। वे अपने खुद के नाम से भी समीक्षाएं, लेख और अनुवाद दे कर साहित्‍य को समृद्ध करते रहे।
• पेसोआ ने 1925 में अंग्रेजी में गाइडबुक टू लिस्‍बन लिखी जो 1992 में ही छप सकी। उन्‍होंने कई पुर्तगाली किताबों के अंग्रेजी में अनुवाद भी किये।
• वे जाने माने ज्‍योतिषी भी रहे और अच्‍छी खासी फीस ले कर जनम पत्रियां बनाया करते थे। उन्‍होंने विख्‍यात महानुभावों की लगभग 1500 जनम पत्रियां बनायी थीं। मजे की बात उन्‍होंने खुद की और अपने बनाये छद्म लेखकों की भी जनम पत्रियां बनायीं। उनकी भविष्‍य वाणी अचूक मानी जाती थी।
• वे एक साथ कई वादों और विज्ञानों में दखल रखते थे और उन पर लिखते थे।
• पेसोआ जिन नामों से लिखते थे उनमें तीन Alberto Caeiro, Álvaro de Campos और Ricardo Reis प्रमुख है और इन तीनों की लेखन शैली, जीवन शैली और दर्शन उनसे बिल्‍कुल अलग हैं। ये चारों नाम पुर्तगाली साहित्‍य के चार नक्षत्रों की तरह हैं। चारों में कोई समानता नहीं जबकि दरअसल चारों पेसोआ ही हैं। पेसोआ का कहना है कि जो कुछ उनके छद्म लेखक लिख पाये, वे खुद नहीं लिख सकते थे।
• जीवन भर और 75 नामों से पत्रिकाओं में लिखने के बावजूद उनकी केवल तीन किताबें अंग्रेजी में और एक ही किताब पुर्तगाली में छप पायी थी। वे अपने पीछे लगभग 27000 अप्रकाशित कागज छोड़ गये थे और इन पर अगले 50 वर्ष तक काम होता रहा।
• वे लिस्‍बन में लीवर की खराबी के कारण 1935 में गुजरे। उनकी मृत्‍यु  के बाद ही उनके सारे रहस्‍यों से पर्दा उठा और उन्‍हें आशातीत ख्‍याति मिली।
• वे अपने ही छद्म नामों वाले लेखकों की आलोचना किया करते थे और उनके काम  की समीक्षा भी करते थे।
• कहा जाता है कि एक बार उन्‍होंने अपने ही एक छद्म लेखक की मृत्‍यु का समाचार अखबारों में दिया, उसकी याद में शोक सभा की रिपोर्ट प्रकाशित करायी और बताया कि उसमें कौन कौन लेखक शामिल हुए। तय है कि उस शोक सभा में पेसोआ के पैदा किये हुए लेखक ही शामिल हुए होंगे।

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