मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

लेखकों की बातें -रोचक आदतें


• जर्मन कवि गेटे को हमेशा यह डर सताता रहता था कि कोई जरूर ही उनका पीछा कर रहा है। उन्‍हें लगता कि हो न हो ये शख्‍स दूसरा ही गेटे  है। ये ख्‍याल उन्‍हें इतना डराये रहता कि आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगे थे।
• फ्रांसिसी लेखक मोपासां की भी कुछ ऐसी ही हालत थी। जनाब को कभी-कभी लगता कि वे बगल के कमरे में अकेले बैठे हैं और ज्यों ही उन्हें ये विश्‍वास होने लगता, वे बेहोश हो जाते थे।
• 17वीं शताब्दी के कवि तथा सेंटपाल के डीन, जॉन डौन अपने कमरे में शवों को ले जाने वाली संदूक रखते थे। जीवन का कोई ठिकाना नहीं, इस बात को हमेशा याद रखने  के लिए वे रोजाना कुछ मिनटों के लिए ताबूत में लेट जाया करते।
• स्विटज़रलैंड निवासी लेखक जोना स्पायरी एकांत में काम नहीं कर पाते थे। शोर जुटाने के लिए वे ट्रेन में सवार हो कर लिखते। लिखने की इस धुन में वे रोजाना लगभग 200 कि.मी. तक की यात्रा कर लेते थे। उनके लिखे को अगर हिसाब में लें तो उन्‍होंने अपने जीवन में 21 लाख 90 हजार कि.मी. की रेल यात्रा कर ली थी। सिर्फ शोर की चाहत के कारण।
• जर्मन कवि कार्ल बेन हेमबेल्ट को लिखने की प्रेरणा संगीत से मिलती थी। उन्होंने अपनी पसंद के गीत टेप किये हए थे। जब भी उनका लिखने का मूड बनता, वे फुल वौल्‍यूम में टेप रिकार्डर चला देते थे। इससे वे लगातार लिख पाते थे। लगभग 45 बरस तक फैला उनका पूरा लेखन ही संगीत के साथ जुगलबंदी का नतीजा है।
• अंग्रेजी के महान कवि और प्रकृति के महान शब्द-चित्रकार विलियम वर्ड्सवर्थ प्रकृति से बहुत गहरे जुड़े हए थे। लिखने के लिए वो जंगल में चले जाते थे और नाचते हुये मोर के देख कर और फूलों, पेड़ों, पत्तियों को निहारते हुये उनका लिखने का मूड बनता था। वन्य पशु-पक्षियों की आवाज भी उन्हें लिखने के लिये प्रेरित करती थी। एक विचित्र बात उनमें और थी। उनकी कलम का ऊपरी भाग सुगन्धित इत्र से भीगा रहता था। वे कलम को सूँघते जाते थे और लिखते जाते थे।

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