शनिवार, 26 सितंबर 2015

इस बार लेखकों की कुछ चुहलबाजी

 
किस्‍सा एक
कविवर मैथिलीशरण गुप्‍त और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कहीं बैठे थे। गुप्‍त जी चिरगांव के रहने वाले थे और द्विवेदी जी बलिया के। गुप्‍त जी को शरारत सूझी। द्विवेदी जी से पूछ बैठे - पंडित जी, आप कहां के रहने वाले हैं?
- बलिया के। द्विवेदी जी ने जवाब दिया।
दद्दा तुरंत बोले - लेकिन बलिया के लोग तो बलियाटिक होते हैं।
- लेकिन चिरगंवार नहीं होते। द्विवेदी जी ने भोलेपन से जवाब दिया।

किस्‍सा दो

किस्‍सा दिल्‍ली का है। एक दिन शाम को टी हाउस के पीछे सरदारजी के चाय वाले खोखे में सौमित्र मोहन, गौरी शंकर कपूर, जगदीश चंद्र, हरि प्रकाश त्यागी और सुरेश उनियाल का जमावड़ा बैठा था। तभी हांफते हुए मुद्रा राक्षस वहां आ पहुंचे। पहुंच कर राहत की सांस ली।
- थैंक गॉड, योगेश गुप्त अभी नहीं आया।
किसी ने पूछा - ऐसा क्या हो गया?
मुद्रा राक्षस बोले - योगेश अभी रेडियो पर कहानी पढ़ कर आया है। डेढ़ सौ रुपए का चैक उसके पास है और उसे दिखाकर तीन लोगों से 100-100 रुपए उधार ले चुका है। यहां तो किसी से नहीं लिए न।
बाद में पता चला कि योगेश तो गैंडामल हेमराज कैमिस्ट के यहां से चैक के बदले सवा सौ रुपए लेकर घर जा चुके थे।

किस्‍सा तीन

एक बार गंगा प्रसाद विमल, जगदीश चतुर्वेदी, सौमित्र मोहन आदि मुफ्त की दारू की तलाश में घूम रहे थे लेकिन कहीं मिल नहीं रही थी। सोचा कि शायद भीष्म साहनी के पास मिल जाए। करोलबाग से पटेल नगर पहुंचे। घंटी बजाई। दरवाजा भीष्मजी ने ही खेला।
पूछा – भीष्म जी दारू है?
भीष्म जी बोले - हां है, आप अंदर जो आइए। तीनों अंदर आए।
भीष्म जी ने पूछा - क्या पीएंगे, चाय या ठंडा।
विमल बोले - दारू है तो वही ले आइए।
भीष्म जी बोले - है तो लेकिन यहां नहीं है।
- फिर कहां है?
- बंबई में। भाई के पास।
इसके बाद तीनों की जो खिसियानी हंसी छूटी तो भीष्म जी की समझ में नहीं आया कि वे किस बात पर हंस रहे हैं।

किस्‍सा चार

कमलेश्वर जी दूरदर्शन के नए नये एडीश्‍नल डायरेक्टर जनरल बने थे। मंडी हाउस के अपने दफ्तर में बैठते थे। एक बार हिमांशु जोशी और सुरेश उनियाल उनसे मिलने के लिए गए। काफी गपशप के बाद सुरेश उनियाल ने एक किस्सा सुनाया - एक किसान अपनी बैलगाड़ी में बैठकर दिल्ली आया। दो बैल गाड़ी को खींच रहे थे और एक पीछे बंधा साथ चल रहा था। इंडिया गेट के पास आए तो एक पुलिस वाले ने रोका।
पूछा - यह तीसरा बैल क्या कर रहा है?
किसान बोला - साहब, ये तो एडीश्‍नल है।
ठहाकों से कमरा गूंज उठा। सबसे ऊँचा ठहाका कमलेश्‍वर जी का था।

किस्‍सा पाँच
 
किस्‍सा मुंबई का है। कुछ शायर नियमित रूप से एक रेस्‍तरां में मिलते हैं। अड्डेबाजी करते हैं, सुनते सुनाते हैं। चाय कॉफी के कई दौर चलते हैं। वहां पर एक वरिष्‍ठ शायर भी अगर शहर में हों और फुर्सत में हों तो ज़रूर आते हैं। वे हमेशा सबसे आखिर में जाते हैं और इस चक्‍कर में अमूमन सबकी चाय कॉफी का बिल भी अदा करते हैं। उस समूह में शामिल हुए एक नये शायर ने उनसे पूछ ही लिया - जनाब, आप जब भी आते हैं, सबसे आखिर में जाते हैं और हर बार हम सबके बिल भी अदा करते हैं। कोई खास वजह?
उन जनाब ने बहुत भोलेपन से जवाब दिया – बेशक हम सब यहां यार दोस्‍त ही बैठते हैं, एक दूसरे की इज्‍ज़त करते हैं लेकिन तुमने देखा होगा कि इनमें से जो भी उठ कर जाता है, बाकी सब उसी की बुराई करने लग जाते हैं। उसके बाद जो जाता है, बुराई का केन्‍द्र वह बन जाता है। ये सिलसिला रोज़ाना इसी तरह से चलता है। बरखुरदार, मैं किसी को भी ये मौका नहीं देना चाहता कि मेरे जाने पर मेरी बुराई करे।
शायर चूंकि अभी हैं, इसलिए नाम लेना ठीक नहीं।

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