शनिवार, 27 जून 2015

राहुल सांकृत्यायन


महापंडित राहुल सांकृत्यायन (1893-1963) मूल नाम केदारनाथ पाण्डेय जैसा घुमक्‍कड़, बहु भाषाविद, लेखक, अनुवादक, वक्‍ता, भारतीय मनीषा का अग्रणी विचारक और साम्यवादी चिंतक आज तक नहीं हुआ।
आम तौर पर हम अपने दिमाग का लगभग 7 प्रतिशत इस्‍तेमाल करते हैं जबकि वे लगभग 12 प्रतिशत करते थे। जीवन के अंतिम दिनों में उनके स्‍मृति लोप होने का कारण ही यही रहा। वे अपना नाम भी  भूल गए थे।।
राहुल जी का विवाह 11 बरस की उम्र में कर दिया गया था। मां के मरने के बाद नाना के घर रह रहे थे। वहीं एक बार दो सेर घी से भरा घड़ा उनसे फूट गया तो मार से बचने के लिए घर से भागने का बहाना मिल गया। बचपन में पढ़े शेर - सैर कर दुनिया की गाफिल ने भी उन्‍हें घर से भागने के लिए प्रेरित किया। घर से भाग कर एक मठ में साधु हुए। चौदह वर्ष की उम्र में भाग कर कलकत्ता चले गये। फिर तो 50 बरस की उम्र तक घर ही नहीं लौटे। हमेशा घूमते ही रहे।
कलकत्‍ता में तंबाकू की दुकान में काम किया। साधु बने तो खाना बनाना नहीं आता था। भिक्षा मांग कर पेट भरते रहे। पैदल और बिना टिकट यात्राएं की। राहुल जी जहाँ भी वे गए वहाँ की भाषा व बोलियों को सीखा और इस तरह वहाँ के लोगों में घुल मिल कर वहाँ की संस्कृति, समाज व साहित्य का गूढ़ अध्ययन किया। वे 36 भाषाएं जानते थे लेकिन अधिकांश साहित्‍य हिंदी में ही रचा। वे संस्‍कृत मे पत्र लिखते थे। वे अच्‍छे फोटोग्राफर थे।
1930 में श्रीलंका जाकर वे बौद्ध धर्म में दीक्षित हो गये। वहां वे ‘रामोदर साधु’ से ‘राहुल’ हो गये और सांकृत्य गोत्र के कारण सांकृत्यायन कहलाये। रूस गये तो 1937 में  रूस  के लेनिनग्राद में एक स्कूल में उन्होंने संस्कृत अध्यापक की नौकरी कर ली और उसी दौरान ऐलेना से दूसरी शादी कर ली। ये विवाह दो बरस चला। उससे हुए बेटे का नाम इगोर राहुलोविच रखा।
उनका यात्रा साहित्य और बौद्ध धर्म पर शोध तथा विश्व-दर्शन के क्षेत्र में विपुल साहित्यिक योगदान है। वे दुर्लभ ग्रन्थों की खोज में हजारों मील दूर पहाड़ों व नदियों के बीच भटके और उन ग्रन्थों को खच्चरों पर लादकर अपने देश में लाए। उन्होंने हर धर्म के ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया। उन्होंने तिब्बत, इंग्लैण्ड, यूरोप, चीन, श्रीलंका, रूस, जापान, कोरिया, मंचूरिया और ईरान की एकाधिक यात्राएं कीं। तिब्बत और चीन की यात्राओं में हजारों ग्रंथों का उद्धार किया और उनके सम्पादन और प्रकाशन का मार्ग प्रशस्त किया। ये ग्रन्थ पटना संग्रहालय में हैं।
वे कहते थे - मेरी सीमाएं हैं। मैं अपना काम करता हूं। आने वाली पीढ़ियां मुझे दुरुस्‍त करेंगी। राहुल सांकृत्यायन ने बिहार के किसान आन्दोलन में भी प्रमुख भूमिका निभाई। वे जेल आते जाते रहे। जेल में कुरान का संस्‍कृत में अनुवाद शुरू किया।
उनका सम्पूर्ण जीवन अन्तर्विरोधों से भरा पड़ा है। राहुलजी ने कथा साहित्य, जीवनी, पर्यटन, इतिहास दर्शन, भाषा-ज्ञान, भाषाविज्ञान, व्याकरण, कोश-निर्माण, लोकसाहित्य, पुरातत्व आदि विषयों पर 150 ग्रंथ रचे। वे बाह्य यात्रा और अंतर्यात्रा के विरले प्रतीक हैं।
1950 में नैनीताल में घर बना कर रहने लगे। यहाँ पर उनका विवाह नेपाली महिला कमला हुआ। पटना में और उनके गांव पंदहा में राहुल सांकृत्यायन साहित्य संस्थान और संग्रहालय बनाये गये हैं। उन्हें 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1963 में पद्मभूषण प्रदान किया गया।
वे जागते समय पूरी जिंदगी खाली नहीं बैठे। या तो चल रहे होते या लिख पढ़ रहे होते।

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