सोमवार, 12 अगस्त 2019

कहानी - ये हत्‍या का मामला है




व्‍हाट्सअप पर मैसेज की आवाज़ आयी है। देखता हूं गुलाटी साहब का मैसेज है। दिन में उनके कई मैसेज आते रहते हैं। ज्‍यादातर फारवर्डेड। अरे, ये तो उनका ग्रुप मैसेज है - साहब जी, अगर आप घर पर हैं या आस-पास हैं तो तुरंत मेरे घर पहुंचें लेकिन हर हालत में 11:00 बजे से पहले। फोन न करें। सी 303 अटलांटा।
      हैरानी हो रही है अचानक बुलाया है और फोन करने से भी मना किया है। घड़ी देखता हूं नौ बजे हैं। मेहता मेरी ही बिल्‍डिंग में रहते हैं। उनसे पूछता हूं। वे भी परेशान हो रहे हैं। अचानक क्या हो गया है? फोन करने से भी मना कर रहे हैं।
हम दोनों यही तय करते हैं कि ग्रुप के बाकी सदस्यों को भी इतला कर देते हैं कि हम सब साढ़े नौ बजे गुलाटी की बिल्डिंग के नीचे इकट्ठे हों और फिर एक साथ उनके घर पर जाएं।
पत्‍नी को बताता हूं अचानक गुलाटी ने सबको बुलवाया है, पता नहीं क्‍या हो गया हो। उन्होंने ठंडी सांस भरी है – रब्ब खैर करे।
गुलाटी जी के घर पहुंचते-पहुंचते हम 7 लोग जमा हो गए हैं। सातों के चेहरे पर अनिश्चितता और आशंका है कि पता नहीं क्या हुआ होगा। लिफ्ट से बाहर निकलते ही सामने गुलाटी का डबल फ्लैट है। दरवाजा खुला हुआ है, गुप्ता जी बाहर ही खड़े हैं और सामने ही ड्राइंग में फर्श पर सफेद कपड़े से ढकी एक डैड बॉडी रखी हुई है। चेहरा ढका हुआ है। हम सकते में आ गए हैं। मिसेज गुलाटी तो आजकल बेटों के पास कनाडा गई हुई हैं और गुलाटी तो अकेले रहते हैं इन दिनों, तो फिर यह कौन?
गुलाटी हमें एक साथ आया देख कर दरवाजे पर आ गये हैं। गुप्ता जी ने फुसफुसाकर बताया है - प्रोफेसर जायसवाल। कल रात नींद में गुजर गये।
- अरे, जायसवाल, इस तरह अचानक? हमने हैरान होते हुए गुलाटी से पूछा है - और फिर आपके घर पर कैसे?  
- ये सारे सवाल आप बाद में पूछना। पहले आप लोग जितने ग्रुप मेम्‍बर्स को इकट्ठा कर सकते हो, करो। किसी को फोन पर बताने की जरूरत नहीं है। बस, यहां आने के लिए कहें। गुलाटी मेहता की तरफ मुड़़े हैं और मेहता जी, आप गुप्ता जी के साथ दरवाजे के पास रहें और हर आने वाले को अटैंड करें। ज्‍यादा बताने के लिए कुछ है नहीं और ज़रूरत भी नहीं है।
      हम प्रोफेसर जायसवाल की डेड बॉडी के पास आए हैं। चेहरे से चादर हटाकर देखते हैं। चेहरा वैसे ही उदास है जैसे हर रोज़ हुआ करता था। वैसा ही भावहीन। मुक्‍ति पा जाने का अहसास जरूर आ जुड़ा है चेहरे पर। परम शांत मुद्रा। मैं और नहीं देख पाता। हमने चेहरा ढका है और कुर्सियों पर आ बैठे हैं। उफ, ये मौत भी न।
      अब तक बीस के करीब लोग ड्राइंग रूम में जमा हो गये हैं। हम सबको नहीं जानते। हो सकता है, प्रोफेसर जायसवाल के परिचित या रिश्‍तेदार हों या इसी बिल्‍डिंग के रहते हों।
गुलाटी मेरे पास आ कर बैठ गये हैं। वे मेरी आंखों में सवाल पढ़ लेते हैं। खुद बताते हैं मैं सुबह जब उन्हें सैर पर जाने के लिए उठाने गया तो हिले ही नहीं। रोजाना मुझसे पहले उठ कर तैयार हो जाते थे। उनका चेहरा देखते ही समझ गया कि ये अनंत यात्रा पर निकल चुके हैं। सामने ही डॉक्‍टर चोपड़ा रहते हैं। उन्हें फटाफट बुलाया। वे आये। दो मिनट में ही बता दिया कि रात में साइलेंट अटैक आया है। नींद में चल बसे। आदमी को खुद पता नहीं चलता ऐसे अटैक का। चुपचाप निकल लिया हमारा यार।
-       डेथ सर्टिफिकेट?
-       डॉक्‍टर चोपड़ा एमडी हैं। उन्‍होंने ही दिया है।
-  अंतिम संस्कार कैसे करना है? मतलब इनके घरवालों को खबर करनी होगी। यहां कोई है या किसी का इंतजार करना होगा?
      गुलाटी बताते हैं बेटा था, मर चुका है, यहां बहू के पास सफायर टावर में रहते थे, वह भी आजकल मायके गयी हुई है। इनके पेपर्स में उसका मोबाइल नंबर कहीं मिला नहीं। इनके पास मोबाइल था नहीं। कुछ दिन से मेरे पास ही रह रहे थे। सवेरे गुप्ता जी चेक करने गये थे शायद बहू आ गयी हो। घर पर ताला बंद है। ग्वालियर में इनके कुछ लोग होंगे, अब किसे खबर करें।
      ये हमारे लिए खबर थी। पूछता हूं मैं - और संस्कार?
- गुप्ता जी ने सारी तैयारी करा दी है। हम ही करेंगे। हमसे सगा उनका और कौन था।
      - वहां खबर कर दी है?
- हां, इलेक्ट्रिकल संस्कार होगा। भतीजे को भेजकर खबर करा दी है। पंडित जी आते ही होंगे।
      देखते देखते हमारा पूरा ग्रुप आ चुका है। बिल्‍डिंग के भी कुछ लोग चेहरा दिखा गये हैं। 
शव वाहिनी के आने तक पंडित जी सबकी मदद से शव को स्‍नान आदि करा चुके हैं। कुछ लोग शव वाहिनी में और कुछ कारों में श्मशान घाट की ओर चल दिये हैं। जो लोग ज्‍यादा देर तक खड़़े नहीं रह सकते या बैठ नहीं सकते या श्मशान भूमि तक नहीं जाना चाहते, उन्‍होंने गेट से ही शव को हाथ जोड़ कर माफी मांग ली है और अपने घरों को लौट गये हैं।
अचानक सब बहुत उदास हो गए हैं। कोई इस तरह से जाता है क्या? चुपचाप। बिना बताये। हवा भी नहीं लगने दी किसी को।
अंतिम संस्कार से लौटते-लौटते एक बज गया है। गुलाटी ने श्मशान घाट में ही सबको बता दिया है कि शाम को शांति कुटीर में आयें। कुछ बातें शेयर करनी हैं। वैसे भी सबके पास बहुत सारे सवाल हैं जिनके जवाब गुलाटी ही दे सकते हैं। मैं और मेहता गुलाटी को अपने साथ ले आये हैं। हम जानते हैं इस मौके पर अपने इतने बड़े घर में उनका अकेले रहना ठीक नहीं होगा। बाकी दिनों की बात अलग है। उनके घर के नीचे गाड़ी रुकवा कर हमने इतना जरूर कर दिया है कि वे अपने लिए एक जोड़ी कपड़े लेते आयें।  
मेरे घर पहुंचते ही गुलाटी अचानक मेरे गले लग कर फूट फूट कर रोने लगे हैं - जायसवाल को उनके घर वालों ने मार डाला और हम कुछ भी नहीं कर सके। कुछ भी नहीं कर सके। मार डाला उन्‍होंने अपने पिता को। वे रोये जो रहे हैं। सुबह से उन्‍होंने अपनी रुलाई रोकी हुई थी। मैंने उन्‍हें रोने दिया है। मेरी आंखें भी गीली हैं लेकिन मैं किसी तरह से अपनी रुलाई रोके हुए हूं।
स्‍नान करने और खाना खा लेने के बाद हमने गुलाटी को एक तरह से जबरदस्‍़ती सुला दिया है।
शाम को जब मैं गुलाटी के लिए चाय ले कर गया हूं तो वे जाग चुके हैं और एक डायरी के पन्‍ने पलट रहे हैं।
खुद ही बताते हैं प्रोफेसर जायसवाल की डायरी है। वे कभी कभार लिखते थे। सुबह मेज पर ये डायरी रखी मिली। उनके घर वालों के नंबर वगैरह देखने के लिए पन्ने पलटे। कोई नंबर तो नहीं मिले लेकिन उस आदमी की उदास रूह के दर्शन ज़रूर हो गये।
दोपहर को जब घर पर कपड़े लेने गया था तो साथ लेता आया। वाहे गुरू, कितनी बेचारगी की ज़िंदगी जी रहा था ये आदमी। अपने गलत फैसलों का शिकार हो गया और बेमौत मारा गया।
मैं सुन रहा हूं। जायसपाल के बारे में हम कितना कम जानते थे। बस यही कि वे चार पांच महीने से हर शाम शांति कुटीर में हमारे साथ बैठने लगे थे। हमेशा गुमसुम और उदास रहने वाले जायसवाल ने शायद पिछले पांच महीनों में पचास वाक्‍य भी नहीं बोले होंगे। यही इस शहर की कमीनगी है। हमें बरसों तक अपने पड़ोसियों के नाम तक पता नहीं चल पाते। अगर गुलाटी न बताते तो पता ही न चलता कि जायसवाल सफायर में रहते थे। सफायर अभी कुछ महीने पहले बनी है। हमसे दो बिल्डिंग बाद में है। वे तो फिर भी दो बिल्डिंग परे रहते थे, मैं अपनी ही बिल्डिंग वालों को कहां जानता हूं। पड़ोसी का चेहरा देखे छ: महीने हो गये होंगे।
      हम शांति कुटीर के लिए निकलने को हैं कि पत्‍नी ने इशारा किया है आप शांति कुटीर से गुलाटी साहब को साथ लेते आना। खाना बना रखूंगी। आज रात वे हमारे घर ही टिक जायें। उनका वहां अकेले रहना ठीक नहीं।
मैं समझ गया हूं। गुलाटी ने उनकी बात सुन ली है घबराओ मत भाभी जी, मुझे क्‍या होना। रब्‍ब दी मेहर है। लेकिन पत्‍नी ने इस बार सीधे गुलाटी से ही कह दिया है तुस्‍सी इत्‍थे ही आओगे। मैं रोटी बणा के रक्‍खांगी।
शांति कुटीर एटलांटा के ठीक नीचे वाला पार्क का एक कोना है। गुलाटी वाली इमारत के ठीक नीचे। कभी पार्क का यह उपेक्षित हिस्‍सा पेड़ों से गिरे पत्‍ते और सूखी टहनियां जमा करने के काम आता था। नीचे सैप्‍टिक टैंक है। कभी किसी को सूझा ही नहीं कि पार्क के इस हिस्‍से को भी विकसित किया जा सकता है। तब तक सभी इमारतों में सोसाइटियां नहीं बनी थीं और एक तरह से ये जगह भी बिल्‍डर के कब्‍जे में थी। गुलाटी ने ही तब भाग दौड़ करके यह आशियाना बनवाया था। पूरी जगह की सफाई करायी थी और बीचों बीच एक गोलाकार प्‍लेटफार्म बना कर ऊपर चारों तरफ खंबों के सहारे कलवे वाली छत बनवा दी थी। जब यह जगह तैयार हुई थी तो यहां सिर्फ बैठने के लिए गोलाकार लगी हुई चार बेंचें थीं और एक बल्‍ब के जरिये रौशनी की जाती थी। अब यहां बारह बेंचों के लायक जगह निकाल ली गयी है। ट्यूब लाइटें, पंखे, घड़ी सब लग चुके हैं। पता नहीं ऐसे कैसे होता चला गया कि यहां शाम को पूरे एन्‍क्‍लेव की महिलाएं आ कर बैठती हैं और उनके जाने के बाद सीनियर सिटिजन आते हैं। दिन में यहां कभी गिटार की क्‍लास चल रही होती है तो कभी अकेले दुकेले जन बैठे होते हैं। दिन में प्रेमी जोड़े भी यहां अक्सर देखे जा सकते हैं। सीनियर सिटिजन भी कहीं से आते हुए अपने घर जाने से पहले यहां एक बार ज़रूर बैठते हैं।
सीनियर सिटिजन क्‍लब इसी जगह की देन है। साठ के करीब नियमित सदस्‍य हैं लेकिन रोज़ाना बैठने वाले दस पन्‍द्रह ही हैं। यहां सब मेम्बर्स का जन्‍मदिन मनाया जाता है। जिस दिन किसी का जन्मदिन होता है तो पच्‍चीस तीस तक आ जाते हैं। प्रोफेसर जायसवाल लगभग पांच महीने पहले इस क्‍लब में आये थे।
आज यहां रोज़ाना की तुलना में ज्यादा लोग आए हैं। सब जायसवाल की मृत्यु के कारण और खासकर गुलाटी के घर उनकी मृत्‍यु और वहीं से संस्‍कार किये जाने के बारे में जानना चाहते हैं।
जब सब इकट्ठे हो गए हैं तो गुलाटी ने अपनी भारी आवाज़ में कहना शुरू किया है – आपको बता देता हूं कि प्रोफेसर जायसवाल पिछले कुछ दिन से मेरे घर पर रह रहे थे। मेरी सरदारनी आजकल बड़े बेटे के पास कनाडा गई हुई है और मैं चार कमरे के फ्लैट में अकेला रहता हूं। जब मुझे जायसवाल की हालत के बारे में पता चला तो मैंने उन्‍हें अपने घर बुला लिया था। आखिर वे हमारे दोस्त थे। हमारे क्‍लब के मेंबर थे। ज़रूरतमंद थे। परेशानियां किसके जीवन में नहीं आतीं। आपने उन्‍हें हमेशा उदास और चुप देखा होगा। आपको शायद पता हो, तीन महीने पहले उनके इकलौते जवान बेटे की मौत हो गई थी। बेटे ने दो बरस पहले ही लव मैरिज की थी इसलिए वे बहू से बहुत ज्यादा ट्यूनिंग सेट नहीं कर पाये थे। मुझे उन्‍होंने बहुत कम बातें बतायी थीं। ये सारी डिटेल्‍स मुझे भी आज सुबह ही उनकी डायरी पढ़ कर पता चली हैं। वे कभी कभी डायरी लिखा करते थे।
गुलाटी जी रोने लगे हैं – सुबह मेरे सामने उनकी डेड बॉडी रखी थी और मैं इस डायरी के पन्ने पढ़ता हुआ जार जार रो रहा था। कसम से दोस्तो, मैं पिछले कई वर्षों से रोया नहीं था और आज मैं अपना रोना रोक नहीं पा रहा हूं। ये डायरी कच्‍चा चिट्ठा है एक ऐसे शख्‍स के जीवन का जो अपने गलत फैसलों का शिकार हो गया। जब आप देखेंगे तो आपको हर हरफ पर ढेरों आंसू नज़र आयेंगे जो इस डायरी के पन्‍ने पन्‍ने पर सूख कर उस बदनुमा रिश्‍ते के गवाह बन गये हैं जो हमें शर्मसार ही करते हैं। इससे ज्यादा तकलीफ की बात क्या होगी कि कल रात की डायरी की एंट्री में आखिरी वाक्य अधूरा है और उस पर सूखे हुए आंसू हैं।
यह कहते हुए उन्‍होंने अपने अपने बैग में से डायरी निकाल कर सामने मेज पर रख दी है - मेरी हिम्मत नहीं है कि इस डायरी को पढ़ कर सुनाऊं। यह डायरी आपके सामने है। आप में से जो इसे पहले पढ़ना चाहे, ले जा सकता है और बारी-बारी से दूसरों को पढ़ने के लिए दे सकता है। यह कहते हुए वे फिर रोने लगे हैं रब्‍ब किसी को इस तरह की डायरी लिखने के लिए मजबूर न करे। काश, हम प्रोफेसर जायसवाल को बचा पाते। अभी उनके मरने की उम्र नहीं थी। मुझसे चार महीने छोटे थे और मुझसे पहले चले गये। गुप्ता जी जरूर पूरे मामले के बारे में जानते हैं।
      वे रुके हैं। फिर पानी का गिलास पी कर बता रहे हैं – हम कुछ दिन से एक साथ रह रहे थे। वे पीते नहीं थे, मांस मछली नहीं खाते थे और मैं इन सारी चीजों के बिना एक दिन भी नहीं रह पाता। उन्‍होंने मेरे खाने पीने पर कभी एतराज नहीं किया। उनके लिए सादी दाल रोटी बनती थी और वे चुपचाप खा लेते थे। मुझे चुप रहने में बहुत तकलीफ होती है लेकिन दोस्तो, उस भले इन्‍सान से एक वाक्‍य भी बुलवाना मुश्‍किल काम होता था। वह चुप्‍पा इंसान अपने सीने में कितने तूफान अपने साथ लेकर चला गया है। हम होते तो कब के टूट चुके होते लेकिन उसने इस हालत में कई साल गुजार दिए थे और किसी से कोई शिकायत नहीं की थी। वे क्या थे यह तो उनकी डायरी से ही पता चलेगा। मेरी हिम्मत नहीं है कि मैं यह डायरी पूरी पढ़ सकूं। मैं उस शख्‍स के साथ रहने के बावजूद उसे कहां पढ़ पाया था।  
      अब गुप्ता जी ने अपनी बात कहनी शुरू की है – मुझे गुलाटी जी ने ही जायसवाल जी से मिलवाया था। अब मैं आपको बता ही देता हूं कि उन्होंने पुत्र मोह में आ कर अपना पुश्तैनी मकान बेच कर सारी रकम, जी हाँ, एक करोड़ दस लाख रुपये अपने बेटे को यहां सफायर में मकान खरीदने के लिए गिफ्ट के रूप में दे दी  थी। इससे पहले दस लाख रुपये उसकी एमबीए के लिए दे चुके थे। जायसवाल जी एक डिग्री कॉलेज के रिटायर्ड प्रिंसिपल थे, फिर भी पता नहीं, इतना गलत फैसला कैसे ले लिया। उनका बेटा और बहू दोनों आइआइएम बेंगलूर के एमबीए हैं।
दो तीन महीने पहले बेटे की एक एक्सीडेंट में मौत हो गयी थी। सारे डॉक्यमेंट्स में नामिनी उसकी बीवी थी जोकि एक नेचुरल सी बात है। अब कहानी में एंगल ये आता है कि जायसवाल जी की बहुत बड़ी मदद से बना ये घर, ग्रुप इंश्योरेंस की रकम और लाइफ इंश्योरेंस के तथा दूसरे तमाम फंड उसकी बेवा बीवी के नाम हो गये हैं। इसमें भी हमें एतराज नहीं है। तकलीफ की बात ये हुई कि बहू ने जायसवाल जी को एक तरह से घर से बाहर कर दिया था। वह खुद आजकल अपने ट्रांसफर के चक्कर में गुड़गावां गयी हुई है। जायसवाल जी इन दिनों पैसे पैसे को मोहताज थे और उन्होंने हमसे किसी वृद्धाश्रम का पता भी पूछा था जहां वे जा कर रह सकें।
हम सब गुलाटी जी को जानते हैं और उनकी शख्सियत का एक और पहलू आज खुद देख चुके है। हम जासयवाल जी को कानूनी मदद दिलाने की प्रोसेस शुरू कर चुके थे। उन्हें उनका हक दिलाते ही। आज उनके गुजारे भत्ते के लिए बहू के खिलाफ एफआइआर दर्ज करायी जानी थी। बदकिस्मती से जायसवाल जी ने यहां भी एक दिन इंतजार करने के बजाये एक बार फिर सरंडर कर दिया।
इन दोनों के बाद कुछेक सदस्‍यों ने अपने अपने तरीके से यही बात कही है कि ये तो साफ पता चलता था कि वे किसी गहरी तकलीफ से जूझ रहे हैं लेकिन कभी भी किसी से अपनी बात शेयर नहीं की।
उनकी आत्‍मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन धारण करने के बाद सभा विसर्जित कर दी गयी है। डायरी सबसे पहले ठाकुर ले गये हैं। उनके जीवन का कुछ अरसा ग्‍वालियर में बीता है, इसलिए।
      जीवन फिर से अपने ढर्रे पर चलने लगा है। हम अब भी रोज शाम को शांति कुटीर में मिलते हैं और जिसने भी उस दिन जायसवाल जी की डायरी पढ़ी होती है, जायसवाल के जीवन के दो चार दुखद प्रसंगों का जिक्र जरूर छेड़ देता है। इस बीच गुलाटी जी कुछ दिन के लिए अपने भतीजे के साथ अमृतसर चले गये हैं।
लगभग बीस दिन बाद आज डायरी मेरे हिस्‍से में आयी है। कुछेक लोग इसे आराम से पढ़ना चाहते हैं इसलिए उन्होंने पूरी डायरी की फोटोकॉपी करवा कर रख ली है। मुझसे पहले डायरी मेरी पत्नी के पढ़ ली है और पूरी शाम रोती रही हैं।
      मुझे पता है, अब तक जायसवाल जी के बारे में, उनकी तकलीफों के बारे में जो कुछ भी पता चला है, उस सबसे डायरी के पन्नों के जरिये एक बार फिर उनसे गुज़रना आसान नहीं होगा। डायरी लगभग दस बरस पुरानी है। उसमें जब भी लिखा गया है, पन्ने पर छपी हुई तारीख के हिसाब से नहीं लिखा गया है। इस तरह से पिछले दस बरस में लगभग दो सौ बार डायरी लिखी गयी है। कई बार कुछ कुछ दिन के अंतराल पर तो कभी महीनों, बरसों के अंतराल पर। लेकिन एक बात जरूर है कि जिस दिन भी वे ज्यादा तकलीफ में रहे हैं या ज़रा सा भी खुश हुए हैं तो अपने मन की बात डायरी से शेयर की है।
मैं सारे पन्ने नहीं पढ़ पाता। सबसे पहले इस एंट्री पर निगाह पड़ती है

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तो शारदा अपनी तकलीफों से हमेशा के लिए मुक्‍त हो गयी। मुझसे रोने के लिए अकेला छोड़ गयी। उसके बिना घर भांय भांय करता है। डॉक्‍टर बेचारे अपनी तरफ से हर कोशिश कर करके हार गये। उसके बदले मैं क्‍यों नहीं मर गया।
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वरुण का आइआइएम बेंगलूर में सेलेक्‍शन हो गया है। अब तक तो यहीं मेरे पास रह कर पढ़ रहा था। दोनों को एक दूसरे का सहारा था। वह भी अब चला जायेगा। शायद हमेशा के लिए। एमबीए के बाद भला ग्‍वालियर उसे कहां खपा पायेगा। इसका मतलब अब लंबा अकेलापन मेरे हिस्से में आने वाला है।
सुबह हम हिसाब लगा रहे थे। फीस, किताबों, लैपटॉप, हॉस्‍टल के खर्च सब मिला कर दस लाख की जरूरत पड़ेगी। शारदा के इलाज के लिए समय समय पर फंड से पांच लाख पहले ही निकाल चुका हूं। ये दस लाख निकालने के बाद पता नहीं कुछ बचता भी है या नहीं। बड़े बाबू ने आगाह किया है कि आजकल तो बैंकों से एमबीए के लिए चुटकी बजाते लोन मिल जाते हैं। आप ये रकम न ही निकालें तो बेहतर।
उधर वरुण अलग राग अलाप रहा है पापा, आपके रिटायर होने से दो बरस पहले ही मेरा एमबीए पूरा हो जाएगा। अच्‍छी नौकरी कहीं नहीं गयी। बस इधर नौकरी लगी और उधर आपके दस लाख चुकाते देर नहीं लगेगी।
आखिर इकलौता बेटा है और हमेशा अव्वल आता रहा है। बिना ट्यूशन पढ़़े यहां तक पहुंचा है। मेरे पैसों पर पहला हक उसी का है। मैंने फैसला उसके हक में किया है।
एक जाइंट खाता खोल कर पांच लाख उसमें डाल दिये गये हैं। बाकी की 13 महीने की एफडी करा दी है। एटीएम कार्ड और चेकबुक वरुण को दे दी है। जब चाहे जितना चाहे निकाले।
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आज बहुत दिनों के बाद अच्‍छी खबर आयी है। कैम्‍पस सेलेक्‍शन से वरुण का बंबई में एक अच्‍छी कंपनी में जॉब लग गया है। उसने खुद तो नहीं बताया है कि उसका पे पैकेज कितना है लेकिन कॉलेज में कोई लेक्‍चरर बता रहा था कि उसका भतीजा आइआइएम लखनऊ से पास आउट हुआ है और सीधे सोलह लाख सालाना के पैकेज पर उसका कैम्‍पस सेलेक्‍शन हुआ है। वरुण पर गर्व हो रहा है। उसने निराश नहीं किया है।
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वरुण ने अपना वादा पूरा किया है। उसने अपने पहले वेतन से बीस हजार रुपये भेजे हैं। मेरे लिए रेडीमेड कपड़े भी। मैंने पूरे स्‍टाफ को मिठाई खिलाई है। बड़े बाबू यूं ही डरा रहे थे।
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इस हफ्ते रिटायर हो रहा हूं। इसी कॉलेज में पढ़ा था और इसी कॉलेज में लेक्चरर बन कर आया था। बाद में 50 साल की उम्र से अब तक 10 साल तक प्रिंसिपल के रूप में ईमानदारी से अपनी ड्यूटी निभायी। अब इससे अलग होने की घड़ी आ गयी। एक तरह से बेदाग कैरियर रहा। मन उदास हो रहा है।
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अकाउंटेंट बता रहा था कि अब तक आप फंड से 15 लाख रुपये उठा चुके हैं। पहले मैडम के इलाज के लिए और फिर बेटे के लिए। इस तरह से आपके खाते में कुल मिलाकर बकाया तीन लाख रुपये हैं। मुझे पता है ये रकम और मेरी थोड़ी बहुत बचत की रकम मेरे बाकी जीवन के लिए बहुत कम है। वरुण तो जैसे भूल ही गया है। जॉब लगने के बाद पिछले डेढ़ बरस में उसने सिर्फ पचास हजार रुपये भेजे हैं। उसे अच्‍छी तरह से पता है कि मेरी पेंशन नहीं है और घर खर्च का कोई नियमित सिलसिला नहीं है मेरे पास। यही हाल रहा तो मुझे अपने घर का एक पोर्शन किराये पर देना पड़ सकता है। अब लग रहा है कि मुझे उस वक्‍त एकांउटेंट की बात मान लेनी चाहिए थी।
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आज तो कमाल हो गया। दो अच्‍छी खबरें एक साथ मिलीं। वरुण ने कूरियर से मेरे लिए रिटायरमेंट के अगले ही दिन की बंबई की एयर टिकट भेजी है और दूसरे उपहारों के साथ एक लाख रुपये का चैक भेजा है। उसका जब फोन आया तो बोला पापा, आपको सरप्राइज देना चाहता था। आप बंबई पहुंचेंगे तो एक और सरप्राइज आपका इंतजार कर रहा होगा।
रिटायरमेंट पर इतनी खबरें एक साथ। वरुण की तरफ से एक लाख रुपये का उपहार, पहली बंबई यात्रा और वह भी हवाई जहाज से। मन हल्‍का हो गया है।
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बंबई एयरपोर्ट पर वरुण मुझे लेने आया है। एक और सरप्राइज के साथ। अपनी बीवी प्रभा के साथ वह मुझे लेने आया है। बता रहा है पापा, हम दोनों क्‍लास फैलो थे। पन्द्रह दिन पहले ही शादी की है। शादी में किसी को भी नहीं बुलवाया। फालतू की शो बाजी में हम दोनों का ही विश्‍वास नहीं। प्रभा के माता-पिता को भी बाद में खबर की है। अब आप आ गये हैं तो घर पर ही एक छोटा सो गेट टुगेदर कर लेंगे।
वरुण की ब्‍याहता सुंदर है। मैंने दोनों को जी भर के आशीर्वाद दिये हैं। एयरपोर्ट से बाहर आये हैं तो एक और सरप्राइज। वरुण की शानदार कार। मुझे हंसी आ रही है मैं पूरी जिंदगी अपने वेतन से एक स्‍कूटर तक नहीं खरीद पाया और वरुण ने दो बरस के भीतर ही इतनी महंगी कार खरीद ली है।
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वरुण का घर बहुत अच्‍छा है। टू बेड रूम हॉल। सलीके से सजाया हुआ। बता रहा है कि ये मुंबई का पॉश इलाका हीरानंदानी एरिया है। मुंबई में ट्रैफिक की बहुत मारा मारी है और यहां से दोनों को आफिस नजदीक पड़ता है। मकान का किराया पूछने पर वह टाल गया है।
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मुंबई आये मुझे एक महीना हो गया है। इस बीच हाउस वार्मिंग, उनकी शादी की पार्टी और मेरे साठ बरस पूरे होने का मिली जुली पार्टी एक साथ हो चुकी। पूरी मुंबई घुमा दी है दोनों ने।
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दोनों सुबह जल्‍दी ही काम पर चले जाते हैं। मेरे पास सारा दिन करने के लिए कोई काम नहीं होता। दिन भर फ्लैट में अकेला रहता हूं। कभी आसपास या पार्क में घूमने चला जाता हूं। दोनों शाम को आगे पीछे लौटते हैं तो इतने थके होते हैं कि बात ही नहीं हो पाती। बात करने के लिए सिर्फ छुट्टी का दिन मिलता है लेकिन उस दिन कोई ना कोई मेहमान आ जाता है या ये दोनों किसी से मिलने चले जाते हैं। मेरे हिस्‍से में वही अकेलापन। कई बार वरुण से कह चुका हूं मैं वापिस जाना चाहता हूं। लेकिन वह हर बार यही कहता है क्‍या करेंगे वहां अकेले रह कर। यहां आराम से रहिये ना।
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आखिर तीन महीने मुंबई में रह कर मैं ग्‍वालियर लौट आया हूं। हर तरह के अनुभव लिये। रिटायरमेंट के बाद पहली बार अकेला रह रहा हूं। बहुत खालीपन पसर गया है जीवन में। किसी ने सच ही कहा था कि अपने आपको इस दूसरी इनिंग के लिए तैयार करना इतना आसान नहीं होता।
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पिछले एक बरस में वरुण के गिने चुने फोन आये हैं। मैं जब भी फोन करता हूं वह या तो किसी मीटिंग में होता है या ड्राइव कर रहा होता है। पूरे साल में उसने बीस हजार रुपये भेजे हैं। मैंने घर का एक पोर्शन किराये पर दे दिया है। घर भी गुलज़ार हो गया है और घर खर्च में भी आसानी हो गयी है।
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अचानक वरुण आया है। कई बरस बाद। एक खास बात करने। वह मुंबई में घर खरीदना चाहता है। बता रहा है कि जो घर उसकी निगाह में है, उसका क्‍लासफैलो उस बिल्‍डर का जनरल मैनेजर है। एक एन्क्लेव में एक नयी विंग बन रही है। वह सारे दोस्‍तों को दिलवा रहा है। थ्री बीएचके। तीन बाल्‍कनी। एकदम शानदार नयी कॉलोनी। घर अपने बजट में है और वह अपने रसूख से पांच सात लाख कम करवा देगा। कुछ फर्निशिेंग भी कंपनी के खर्च पर करवा देगा। शानदार लाइफ स्टाइल। स्वीमिंग पूल, जिम, क्लब, लाइब्रेरी सब हैं। बिल्‍डिंग के नीचे ही गार्डन है। आपके लिए बहुत अच्‍छा रहेगा।
बता रहा है कि घर दो करोड़ का है। उसकी सैलरी के हिसाब से उसे कुल 80 लाख का लोन मिल पाएगा। थोड़ी बहुत दोनों की बचत है। सवाल एक करोड़ का है। उसने मकसद की बात कही - अगर आप ग्वालियर का यह घर बेचकर हमेशा के लिए हमारे पास आ जाएं तो मैं अपना घर खरीदने का सपना पूरा कर सकता हूं। सिर्फ 27 बरस की उम्र में अपना घर।
लगता है उसके पास घर खरीदने के लिए अनिगनत तर्क हैं - पापा, मैं इस समय अपने घर का जितना किराया दे रहा हूं, उतने में तो अपने घर की किस्‍त निकल जाएगी और टैक्‍स रिबेट मिलेगी वो अलग। और फिर अपने घर की बात ही कुछ और होती है।
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मैं सकते में आ गया हूं। तय नहीं कर पा रहा कि यह घर बेच कर वरुण का घर बसाने के लिए फैसला करूं। घर बेचने के मतलब, ग्‍वालियर से, अपने  पुश्तैनी घर से हमेशा के लिए नाता टूट जायेगा। अभी तो मैं अपने घर में हूं, बेशक अकेले रहने की तकलीफें हैं लेकिन है तो मेरा पुश्‍तैनी घर। हमेशा के लिए मुंबई जाने का मतलब वरुण के घर पर उसकी और बहू की शर्तों पर रहना। वरुण ने नौकरी लगने के बाद अभी तक दस लाख में से मुश्‍किल से चार लाख वापिस किये हैं। और अब यह घर बेचने का राग।
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वरुण रोज़ रात को मेरे कानों की मालिश करता है। लगता है, वह तय कर के आया है जब तक इस घर का सौदा नहीं हो जाता वह वापिस नहीं जायेगा।
मैं भी सोचता हूं कि मेरे मरने के बाद यह घर वैसे भी उसके हिस्से में आने वाला था, क्या हुआ जो मेरे जीते जी आ जाए। और फिर वह इस घर को बेचकर घर ही तो ले रहा है। तय है, वह अपनी नौकरी के चलते कभी भी ग्वालियर नहीं आ पाएगा। एक तरह से ठीक भी है कि मेरे जीते जी प्रॉपर्टी निकल जाए और मैं अपने सामने और उसका घर बनता देखूंगा।
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मैंने भरे मन से हां कर दी है। वरुण तो जैसे इसी बात की राह देख रहा था। एक हफ्ता बीतते न बीतते घर बिक चुका है। मन उदास है। इसी घर में मेरा जन्म हुआ था, यहीं शारदा ब्याह कर आयी थी और इसी घर में वरुण का जन्‍म हुआ था। मन कैसा कैसा हो रहा है। सब कुछ छूट जाएगा।
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प्रापर्टी ट्रांसफर के पेपर्स साइन करते समय ही मुझे पता चला है कि खाली जमीन के साथ इतना बड़ा घर एक करोड़ दस लाख में बिका है। कुछ और इंतजार करते तो और अच्छे पैसे मिल सकते थे।
वरुण ने एक वकील की मौजूदगी में कुछ ज्युडिशियल पेपर्स पर मुझसे साइन कराये हैं। पूछने पर उसने बताया है कि ये गिफ्ट डीड है। मतलब आप इस प्रापर्टी को बेच कर मिले पैसे मुझे गिफ्ट कर रहे हैं। जब सारा धन दे दिया है तो ये डॉक्यूमेंट भी सही। मैंने साइन कर दिये हैं।
किताबें कॉलेज में डोनेट कर दी हैं और ज्‍यादातर सामान जरूरतमंदों में बांट दिया गया है। बाकी बचा सामान ट्रक में लदकर पता नहीं कहां चला गया और मैं देखता रह गया। पूछने पर वरुण टाल गया। कितनी तो पुश्तैनी चीजें थीं।
मैं हैरान हूं कि वरुण ये सब काम कैसे पलक झपकते कर गया।
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और इस तरह से मैं एक नयी अटैची और एक बैग में अपना सारी गृहस्‍थी समेट कर हमेशा के लिए मुंबई आ गया हूं। वरुण ने उसी दिन पूरी रकम अपने खाते में ट्रांसफर करवा ली थी। वह इन दिनों अचानक अपने नये घर को ले कर बहुत बिजी हो गया है और बात करने के लिए भी उसके पास समय नहीं है। अभी हम किराए वाले घर में ही हैं। अपना घर दो महीने में तैयार हो जाएगा। रोज शाम दोनों सिर जोड़ कर बैठ जाते हैं और नये घर की एक एक डिटेल तय करते हैं। मैं इस बातचीत में कहीं शामिल नहीं किया जाता। हम सब दो तीन बार देखने गये हैं। ड्राइंग रूम की और दो कमरों की पार्क की तरफ बाल्कनी है। वरुण बताता है कि आपका  कमरा भी पार्क की तरफ वाली बाल्कनी वाला है। मुझे अपना कमरा अच्‍छा लगा है।
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हम अपने घर में शिफ्ट हो गये हैं। बेशक अपने घर में हूं लेकिन मैं इससे घर से जुड़ नहीं पा रहा हूं। यह घर मेरा नहीं है। दरवाजे पर वरुण जायसवाल की नेम प्लेट लगी है। ग्वालियर वाले घर में मेरे नाम की नेम प्‍लेट लगी थी।
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यहां आए हुए दो बरस हो गए हैं लेकिन मैं आज तक इस घर को अपना नहीं समझ पाया। मन ही नहीं लगता यहां। वही पुराना अकेलापन। दोनों जॉब के लिए सुबह ही निकल जाते हैं। जाते समय पोते को बेबी सिटिंग के लिए रास्‍ते में छोड़ते जाते हैं और शाम को दोनों में से जो भी पहले आता है, वह लेता आता है। मैं सारा दिन अकेले पड़ा रहता हूं। जाऊं तो जाऊं कहां। घर या पार्क। बस। बहुत कम दोस्त बन पाये हैं।
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एक अच्छी बात हुई है कि पार्क के कोने में बने शांति कुटीर के बारे में मुझे पता चला है। शाम सात से नौ बजे तक सभी बिल्डिंगों के सीनियर सिटिजन वहां बैठते हैं। एक दिन मैं वहां यूं ही चला गया था। कुछ बूढ़े हैं जो मेरी तरह हैं और बच्चों के पास पर्मानेंटली रहते हैं या आये गये बने रहते हैं। कुछ के खुद के घर हैं और उनके बच्चे उनके साथ रहते हैं। गुलाटी जैसे भी हैं जो फोर बैड रूम के फ्लैट में सिर्फ मियां बीवी रहते हैं। बता रहे थे कि उनकी सरदारनी अक्सर कनाडा जाती रहती है। वहां उसकी तीन बहुओं में से कोई न कोई प्रेगनैंट होती ही है।
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मुझे सिनियर सिटिजन क्लब में शामिल कर लिया गया है। अक्सर शाम को उनके बीच जी बैठता हूं बेशक उनकी दुनिया भर की बातों में शामिल नहीं हो पाता। शांति कुटीर में धूमधाम से सबके जन्मदिन मनाये जाते हैं, जो लोग पीते हैं, वे महीने में एक बार बीयर या दारू पार्टी करते हैं और बरस में एक बार सब सीनियर सिटिजन दिन भर की पिकनिक पर जाते हैं। आज मुझे बहुत शर्म आयी जब फार्म भरते समय मुझसे छ: सौ रुपये देने के लिए कहा गया। मैंने यही बताया कि उधार रहे। बाद में कभी दे दूंगा।
मैं उन सबका उत्साह देख कर हैरान हुआ। कभी स्कूली बच्चों के लिए किताबें जमा की जा रही हैं तो कभी जरूरतमंदों के लिए पुराने कपड़े या दूसरी काम की चीजें जुटायी जा रही हैं। काश, मैं किसी तरह का सहयोग कर पाता।
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यहां आने के बाद वरुण ने मुझे कोई भी रकम नहीं लौटायी है। मकान बेचकर जितने भी पैसे मिले थे सारे के सारे उसने उसी दिन अपने नाम पर ट्रांसफर कर लिये थे। रिटायरमेंट पर मिले पैसे कब के खत्‍म हो चुके हैं।
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वरुण ने कभी इस बात की जरूरत नहीं समझी कि वह मुझसे पूछे पापा, आपको भी तो थोड़ा बहुत पैसों की जरूरत होती होगी। बेशक मेरा मेडिकल इंश्योरेंस उसकी कंपनी की तरफ से है लेकिन उसमें डे केयर शामिल नहीं होता। थोड़े बहुत पैसों की जरूरत हमेशा पड़ती है। इनसान की बीसियों जरूरतें होती हैं। वरुण को अच्‍छी तरह से पता है कि मेरे पास पैसों का कोई इंतजाम नहीं है। एक दो बार जतलाया तो वह टाल गया। अब मांगने की इच्‍छा नहीं होती। बेसिक जरूरतें भी टलती रहती हैं।
हम बेशक रोज रात को बैठते हैं, खाना एक साथ खाते हैं, दिन भर की गतिविधियों पर बात करते हैं लेकिन कभी भी यह बात सामने नहीं आती कि पापा आप दिन भर क्या करते हैं। अकेले बोर हो जाते होंगे। कभी पिक्‍चर या कॉफी शॉप ही चले जाया करें।
एक बार किसी दवा की जरूरत थी, मैं दो तीन दिन तक वरुण को याद दिलाता रहा। आखिर नहीं आयी। उसने कह ही दिया - पापा, आपको पता तो है कि मुझे सिर खुजाने की फुर्सत नहीं मिलती। यहां हर चीज की होम डिलीवरी है। जो भी जरूरत हो आप मंगवा लिया करें। सबके नंबर किचन में चार्ट पर लिखे रखे हैं। अलबत्‍ता, उसने यह नहीं बताया कि दवा या सामान मंगवाने पर देने के लिए पैसे किस अल्‍मारी में रखे हैं। इसके बाद मैंने किसी भी चीज के लिए कहना बंद कर दिया है।
हैरान होता हूं कि कई बार दोनों को घर में मेरी मौजूदगी महसूस ही नहीं होती।
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मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा हादसा हो गया है। मैं तो बरबाद हो गया। इस बुढ़ापे में ये दिन भी देखना था। पिछले हफ्ते वरुण नहीं रहा। एक कार एक्सीडेंट में ऑन द स्पॉट डेथ हो गई उसकी। वे तीन कलीग पुणे से लौट रहे थे कि उनकी गाड़ी एक ट्रक से टकरा गई और तीनों नहीं रहे। समझ नहीं आ रहा कि खुद को कैसे संभालूं और रोती-बिलखती बहू को कैसे संभालूं। हादसे की खबर मिलते ही दिल्ली से बहू के पेरंट्स वगैरह आ गये थे। अभी यहीं हैं।
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जीवन जैसा भी है, वरुण के बिना चलने लगा है। बहू ने अपना ऑफिस ज्‍वाइन कर लिया है, अलबत्‍ता उसकी मां यहीं रह गयी है। दोनों से जरूरत भर बात होती है या ना के बराबर होती है। मां बेटी की सुविधा के लिए मैं अब गेस्‍ट रूम में शिफ्ट कर दिया गया हूं। मैं अपने कमरे में सारा दिन रोता बिलखता रहता हूं। क्या कहूं, किससे कहूं। पहले बहू से जो भी बात होती थी, वरुण के जरिए होती थी और उसके न रहने पर उससे सीधे संवाद करने की स्थिति ही नहीं आ पाती। कभी कभार पोते को गोद में ले कर खुद बहलने और उसे बहलाने की कोशिश करता हूं। हे भगवान, मैंने ऐसा बुढ़ापा तो नहीं चाहा था।
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गेस्ट रूम में आने से बहुत तकलीफ हो गयी है। उसमें कोई बालकनी नहीं है। सिर्फ एक खिड़की है और ये कमरा पूरे घर से अलग है।
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पता चला है कि पिछले दिनों बहू को वरुण के ऑफिस में बुलाया गया था। वह अपनी मां के साथ गयी थीं। मुझे नहीं ले जाया गया। न ही वापिस आने के बाद बताया ही गया कि वहां क्‍या बात हुई और सेटलमेंट के बाद क्‍या तस्‍वीर बनती है।
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अभी भी लगातार यही जतलाया जा रहा है कि बहू को अपनी अकेले की सेलेरी से मकान की बकाया किस्तें और ब्‍याज चुकाने में बहुत तकलीफ हो रही है। वरुण ने कुछ और भी लोन ले रखे थे। उसके फंड से और बीमा से जो पैसे मिले थे, वे काफी होते हुए भी नाकाफी हैं। बहू का एनुअल पैकेज बीस लाख से ज्‍यादा है, इसके बावजूद दिन रात पैसों की कमी का रोना रोया जाता है।
मेरी हालत तो उससे भी गयी गुजरी है। ग्वालियर का घर बेचने से पहले भी खाली था और अब भी खाली हूं।
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अब नयी खुसुर पुसुर शुरू हो गयी है। बहू गुड़गावां सेंटर में अपने ट्रांसफर की बात चला रही है ताकि वह मां की निगरानी में रह सके। बहू के पेरेंट्स दिल्‍ली में वसंत एन्‍क्‍लेव में रहते हैं और वहां से बहू का आफिस कुछ ही किमी के फासले पर है।
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इस खबर ने मुझे बुरी तरह से डिस्‍टर्ब कर दिया है। ये तय है कि जब हर तरह के झूठ बोले जा रहे हैं और षडयंत्र किये जा रहे हैं तो ये घर कम से कम मेरे भरोसे तो नहीं ही छोड़ा जायेगा और न ही बहू के साथ मेरे दिल्ली शिफ्ट होने की बात आयेगी। मुझे बहू से पूरी सहानुभूति है। हम दोनों का दुख एक ही है। उसने पति खोया है मैंने बेटा। यह भी तय है कि बहू देर सबेर दूसरा घर बसायेगी ही। लेकिन मेरा क्‍या होगा। इस बारे में कुछ भी सोचा नहीं गया है न ही मुझसे कोई राय ही ली गई है। मुझसे तो कोई बात करने वाली ही नहीं है।
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बहू मां के साथ दिल्ली गयी हुई है। हैड ऑफिस में ट्रांसफर की बात करने और दिल्ली शिफ्ट होने के बारे में पता लगाने। दस दिन के लिए कह कर गयी है। वैसे खाना बनाने वाली बाई और सफाई वाली बाई आती रहेंगी, लेकिन बहू ने एक बार भी नहीं सोचा कि एक दो हजार रुपये मुझे दे जाये। मैंने बहू से कहा भी लेकिन वह नहीं ही दे कर गयी है। मेरे पास रोजाना सब्जी या दूध मंगाने या कुछ खत्म हो जाने की हालत में बाजार से लाने के लिए भी पैसे नहीं हैं।
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दोनों बाइयों ने तीसरे दिन के बाद से आना बंद कर दिया है। खाना बनाने वाली बाई सोचती होगी कि अकेले बुड्ढे के लिए दो वक्त आ कर खाना बनाने की मगजमारी कौन करे।
अब मेरे पास कहीं बाहर खाना खाने जाने के अलावा कोई उपाय नहीं है। खाना बनाना आता है और बरसों अपने लिए और वरुण के लिए बनाया भी है लेकिन यहां रसोई के ऑटोमैटिक पाइप्ड गैस का सिस्टम ही मुझे नहीं आता। किसी ने बताया ही नहीं। दूध ब्रेड सब खतम हैं। रेस्तरां कितनी दूर है, मुझे नहीं पता, होम डिलीवरी कभी मंगायी नहीं। मंगा सकता भी नहीं। न घर में लैंड लाइन है, न मेरे पास मोबाइल। बाइयों के नंबरों की कभी जरूरत नहीं पड़ी।
हालात पागल कर देने वाले हो गये हैं। खाते में चेक करता हूं सिर्फ दो हजार रुपये हैं। खाते में एक हजार मिनिमन बैलेंस छोड़ कर सिर्फ एक हजार ही निकाले जा सकते हैं। क्‍या करूं। बहू को गये अभी सिर्फ चार दिन हुए हैं। वह कम से कम छ: दिन बाद आयेगी। ज्यादा दिन भी लग सकते हैं।
ग्‍वालियर वापिस लौट जाऊं। लेकिन रहूंगा कहां। डिग्री कॉलेज का प्रिंसिपल रहा, अब कोई छोटी मोटी नौकरी कर नहीं सकता। कभी ट्यूशन पढ़ाने की जरूरत महसूस नहीं हुई। किसी के अधीन काम नहीं कर सकता, लेकिन सवाल वही है कि बहू के यहां से चले जाने के बाद मेरे पास घर ही कहां बचेगा। घर खर्च की बात तो बाद की है। इस घर पर और वरुण के पैसों पर कोई हक रहा नहीं, बहू से उम्‍मीद करना बेमानी है कि वह मेरे खर्च के लिए मेरे मरने तक मुझे कोई बंधी बंधाई रकम देगी।
यहां किसी कोचिंग सेंटर में पढ़ाने या मैनेजर वगैरह की पोस्‍ट के लिए बात की जा सकती है। अटैची खोलता हूं। उसमें मेरे पेपर्स नहीं हैं। याद आया, ग्‍वालियर से आते समय वरुण के बैग में रखवा दिये थे। उसी के कमरे में होंगे। देखता हूं।
बहू अपने और दूसरे कमरे में ताला लगा कर गयी है। इसका मतलब मेरे पेपर्स बहू के आने के बाद ही मिलेंगे। ड्रांइग रूप में एक कूरियर का पैकेट रखा है। पता नहीं, कब आया होगा। शायद मैं सो रहा होऊं और बाई ने रिसीव किया हो। देखता हूं - वरुण की कंपनी से है। भारी लिफाफा है। बहू के नाम पर है। तय नहीं पाता, खोलूं या नहीं, वरुण के फाइनल सेटलमेंट के पेपर्स ही तो होंगे या हाउसिंग लोन के पेपर्स। तय करता हूं, खोलना चाहिये। वरुण की डैथ के बाद के सारे जरूरी कागजात हैं। कुछ स्टेटमेंट हैं। पढ़ना शुरू करता हूं - कंपनी ने एक खास मामले के रूप में बकाया हाउसिंग लोन और उस पर ब्‍याज माफ कर दिया है। इस तरह से अब घर की कोई किस्‍त नहीं चुकायी जानी है। नॉमिनी होने के नाते घर बहू के नाम ट्रांसफर हो गया है। कंपनी से सारा हिसाब किताब होने के बाद और ग्रुप बीमा सेटलमेंट के कुल मिला कर बहू को तीस लाख रुपये मिले हैं जो पिछले महीने बहू के खाते में ट्रांसफर कर दिये गये हैं। बहू वरुण की बीस लाख की एलआइसी पालिसी का भी जिक्र कर रही थी। कुल हुए पचास लाख। ढाई करोड़ का ये घर अलग।
पन्ने पलटते हुए मुझे चक्‍कर आ रहे हैं। रुलाई फूट रही है। उफ, मेरे साथ इतना बड़ा धोखा। छी:, इतनी लालच! और ये सब एक मां अपनी बेटी के साथ कर रही है। एमबीए पास बेटी के साथ जिसका सालाना पैकेज बीस लाख रुपये से ज्‍यादा है। मुझसे हर दिन कितने झूठ बोले गये सिर्फ इसलिए कि कहीं मैं कुछ मांग न लूं जबकि ये घर मेरे ही पैसों से बना है।
मैं कुछ सोच नहीं पाता। बाकी पेपर्स बिना पढ़े छोड़ दिये हैं। मेरा दम घुटने लगा है। चाबी हाथ में लिये मैं घर से बाहर आ गया हूं। पार्क में जाता हूं। मुझे चक्कर आ रहे हैं। किसी तरह शांति कुटीर तक पहुंचता हूं। बैठते ही कर फूट फूट कर रो रहा हूं। पता नहीं कब से रुलाई रुकी हुई थी।
पता नहीं एक घंटा रोता रहा या दो घंटे। मन कुछ थिर हुआ तो मुंह धोने के लिए पानी के लिए आसपास निगाह दौड़ाई है।
किसी की आहट पा कर सिर उठा कर सामने देखता हूं। गुलाटी जी पानी की बोतल लिए मेरे सामने खड़े हैं। मैं सोच नहीं पाता क्‍या कहूं। उनकी बढ़ायी बोतल से पानी ले कर मुंह धोता हूं और पानी पीता हूं। गुलाटी जी पास बैठ गये हैं लेकिन कुछ भी नहीं कहते।
शांति कुटीर में एक एक करके महिलाएं आने लगी हैं। शायद मैं गलत वक्त पर आ गया था। गुलाटी जी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा है और इशारा किया है घर चलते हैं। वहीं बात करेंगे। मैं मना नहीं कर पाता और उनके साथ चल दिया हूं। सामने ही तीसरी मंजिल पर घर है उनका। दरवाजा उनकी पत्‍नी ने खोला है। मैं संकोच करता हूं। नमस्‍ते करता हूं। गुलाटी जी उन्‍हें चाय बनाने के लिए कहते हैं और बताते हैं कि हम बेडरूम में कुछ जरूरी बात कर रहे हैं। कोई डिस्‍टर्ब न करे। उन्‍होंने मुझे अपने पीछे आने का इशारा किया है।
हम दोनों ने पानी पिया है। वे बोले हैं आप को कभी इस वक्त शांति कुटीर में नहीं देखा और इस हालत में तो बिल्कुल नहीं देखा। सब खैरियत तो है।
मेरे भीतर बरसों से जमा लावा पिघलने लगा है। मैं भूल गया हूं कि हम एक दूसरे को अच्छी तरह से जानते भी नहीं हैं। लेकिन मुझे लग रहा है कि अगर मैं इस व्‍यक्‍ति से अभी पूरी बात नहीं कर पाया तो कभी भी किसी से भी नहीं कर पाऊंगा।
मैंने धीरे धीरे पूरी बात बतायी है। एमबीए के लिए लोन लेने से ले कर अभी देखी फाइल में दर्ज सच तक।
सुन कर वे गहरी सोच में पड़ गये हैं। बार बार कह रहे हैं ये तो बहुत गलत हो गया है जी। देखें क्‍या रास्‍ता निकलता है।
उन्‍होंने फोन करके गुप्ता जी को तुरंत घर आने के लिए कहा है। पांच मिनट में ही दरवाजे की घंटी बजी है। गुलाटी जी ने उनके लिए चाय के लिए कहा है और बिना एक भी पल गवाये मेरा सारा किस्‍सा बयान कर दिया है।
गुप्‍ता जी भी परेशान हो गये हैं। पूछा है उन्‍होंने आपने बेटे को पढ़ाई के लिए जो दस लाख रुपये दिये थे, उसकी कोई कच्ची पक्की रसीद बनवायी थी कि आप उसे ये रकम लोन के रूप में दे रहे हैं।
मैंने बताया है – नहीं, सिर्फ एक ज्वाइंट एकाउंट खुलवा कर पैसे उसमें डाल दिये थे और एटीएम कार्ड और चेकबुक बेटे को दे दिये थे।
और घर बेचते समय कोई डॉक्यूमेंट?
मैंने बताया कि बेटे ने गिफ्ट डीड के नाम पर कुछ कागजों पर साइन करवाये थे कि मैं ये रकम उसे गिफ्ट के तौर पर दे रहा हूं।
गुप्ता जी सोच में पड़ गये हैं - प्रोफेसर साहब आप पुत्र मोह में एक के बाद गलतियां करते रहे और अपने हाथ कटवाते रहे। इस समय आपकी ये हालत है कि बच्चों को सवा करोड़ रुपये देने के बाद भी आपके पास शाम के खाने के पैसे नहीं हैं। तय है, बहू अपने माता पिता के कहने में है और वह वही करेगी जो उसे सिखाया जायेगा। वह देर सबेर गुडगांवा जायेगी। घर किराये पर देगी या बेचेगी। दूसरी शादी भी करेगी। इस पूरी पिक्चर में आप कहीं नहीं हैं।
गुलाटी साहब ने टोका है - लेकिन गुप्ता जी, ठीक है, गलती इन्सान से ही होती है लेकिन कानून या पुलिस भी तो कुछ मदद करती होगी ऐसे मामले में।
गुप्ता जी बोले हैं - मैं उसी बात पर आ रहा हूं। प्रोफेसर साहब की मदद करने के कानून भी है और संविधान भी। आजकल सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामलों को बहुत गंभीरता से ले रहा है। सीनियर सिटिजंस को इज्जत से रहने का पूरा हक है। हम जायसवाल जी को उनका पूरा हक दिलवायेंगे। चार तरीके हैं, बस इन्हें अपने हक के लिए खुद लड़ना होगा।
गुलाटी जी के चेहरे पर रंगत आ गयी है – हुण होई ना गल्ल। आप बतायें तब तक मैं और चाय बनवाता हूं।
गुप्ता जी ने बताना शुरू किया है – पहला तरीका तो यही है कि आप बहू से आमने सामने सीधी बात करें। बिना किसी बिचौलिये के। उसके सामने सारे फैक्ट्स और सबूत रखें कि आप किस तरह से हर बार आगे बढ़ कर वरुण की मदद करते रहे हैं। उसे भी सारे पेपर्स सामने रखने के लिए कहें कि अब जो भी सेटलमेंट हुआ है और घर उसके नाम हुआ है, उसमें से आपके खर्च के लिए वह एक वाजिब रकम आपको हर महीने दे।
गुप्ता जी रुके हैं – दूसरा तरीका ये बनता है कि ये सारी बातें उनके पिता से की जायें। बहू के पिता होने के नाते उन्हें समझायें और वह भी उस हालत में जबकि ये घर आप ही की मदद से बना है और आपके पास अपने खर्च पूरे करने के लिए कोई दूसरा जरिया नहीं है।
गुलाटी साहब ने कहा है- आप चारों ऑप्शन बता दें फिर उन पर डिस्कस करते हैं।
गुप्ता जी ने तीसरा तरीका बताना शुरू किया है। मैं चुपचाप सुन रहा हूं।
- कानून की कई धाराएं काम करती हैं इस तरह के केस में। नजदीकी पुलिस स्टेशन पर एक एफआइआर रजिस्टर करवानी होगी। उसमें ये बताना होगा कि दरअसल मेरे बेटे ने लोन डीड पर साइन करने के लिए कहा था लेकिन धोखे से उसने मुझसे गिफ्ट डीड पर साइन करवा लिये जिसके बारे में मुझे अभी पता चला। ये मेरे साथ धोखाधड़ी हुई है। दूसरे, मेरी बहू मुझे फाइनैंशियली, इमोशनली और मैंटली तंग कर रही है। पुलिस सीनियर सिटिजन के एफआइआर पर तुरंत एक्शन लेती है। और चौथा तरीका बचता है कि बहू के खिलाफ कोर्ट केस किया जाए। उसमें पैसे भी खर्च होते हैं और समय भी लगता है।
- अब ये हम पर है कि हम कौन सा रूट लेते हैं कि प्रोफेसर साहब की जल्द और वाजिब मदद हो जाये।
गुलाटी साहब ने मेरी तरफ देखा है।
मैं सोच में पड़ गया हूं – लेकिन गुप्ता जी, पैसे मैंने अपने बेटे को अपनी सहमति से ट्रांसफर किये थे।
गुप्ता जी की आवाज ऊंची हो गयी है – आज का दिन देखने के लिए ही न। जायसवाल जी, हमारी यही दिक्कत है कि बचपन में बच्चों को पीटते हैं लेकिन बाद में जब जरूरत होती है, हाथ उठाना छोड़ देते हैं और जिंदगी भर उनके आगे गिड़गिड़ाते रहते हैं। आपने वरुण से एक बार भी ऊंची आवाज में कहा होता कि मुझे इज्जत से क्यों नहीं रखता तो बहू की मजाल है आपको बिना पैसे दिये निकल जाती।
गुलाटी जी ने बात बदली है – तो हम किस तरह से शुरुआत करेंगे?
गुप्ता जी ने फैसला सुना दिया है – हम ऑप्शन नंबर एक और दो पर टाइम बरबाद नहीं करेंगे। बहू पहले ही अपने मां बाप के कहने में है और उसकी नीयत खराब है। उसके आगे गिड़गिड़ाने का मतलब नहीं। करोड़ों की प्रापर्टी का मामला है।   
मैंने कुछ कहने की कोशिश की है – लेकिन इस तरह से बहू को कोर्ट में घसीटना। एक बार आमने सामने बात करके देख लेते हैं।
गुप्ता जी ने अपनी आवाज बुलंद रखी है – तो फिर रहिये आप वृद्धाश्रम जा कर। बहू यहां से एक बार गयी तो आपको आपसी सहमति से कुछ भी नहीं मिलने वाला। मैं शर्त लगा कर कह सकता हूं कि आपके पास न तो बहू का मोबाइल नंबर होगा न उसका पता।
मैंने सिर झुका लिया है – नहीं है।
गुप्ता जी नरम हुए हैं - बहू से आप कभी ढंग से संवाद तो कर नहीं पाये, पहली ही बार में गुजारे के लिए रुपये पैसे की बात आप कर ही नहीं पायेंगे। कानून है न आपकी मदद करने के लिए।
गुप्ता जी ने सलाह दी है – आपने बताया कि बहू के आने में अभी एक हफ्ता है। ज्यादा दिन भी लग सकते हैं। हम उसके आने से पहले ही एफआइआर रजिस्टर करवा देंगे ताकि वह अगर तुरंत जाने की तैयारी के साथ आती है तो उसके जाने से पहले उसे घेरा जा सके।
गुलाटी जी ने कहा है - एक काम और करते हैं गुप्ता जी, आज प्रोफेसर साहब यहीं खाना खायेंगे और आज की रात वे अपने घर में रहेंगे। कल दोनों हम सुबह इनसे मिलने आयेंगे। जिन कागजों की ये बात कर रहे हैं, वे देखेंगे। काम के कागजों की फोटो लेंगे ताकि वक्त जरूरत काम आयें और कल ही इन्हें अपने साथ यहां ले आयेंगे। सरदारनी की कल रात की कनाडा की फ्लाइट है। ये अपनी बहू के आने तक ये आराम से यहां रह सकते हैं। मेरा भी दिल लगा रहेगा। एक काम हम करेंगे कि प्रोफेसर साहब के पड़ोसियों को बता देंगे कि इनकी तबीयत ठीक नहीं है। इन्हें अपने साथ ले जा रहे हैं। उनके पास अपना नंबर छोड़ देंगे ताकि बहू के आने पर हमें बता सकें।
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कल अपनी अटैची ले कर गुलाटी जी के घर आ गया हूं। दोनों मुझे लेने आये थे। वरुण के ऑफिस से आये पेपर्स देखे। गुप्ता जी ने कुछ कागजों की फोटो अपने मोबाइल में ले ली। सामने वाले फ्लैट में रहने वाले वर्मा जी को मेरे यहां आने के बारे में बता दिया गया है।
गुलाटी जी मेरा बहुत ख्याल रख रहे हैं। हालांकि अब मुझे जरूरत नहीं है, फिर भी मेरी जेब में दो हजार रुपये डाल दिये हैं। वे मुझे एक नया मोबाइल देना चाह रहे थे लेकिन मैंने मना कर दिया है।
शांति कुटीर में किसी को भी हवा नहीं लगने दी गयी है कि मैं आजकल  गुलाटी जी के घर रह रहा हूं। बस उन्हें मुझसे एक ही शिकायत है कि मैं हमेशा साइलेंट मोड में ही रहता हूं। अब मैं इसमें क्या कर सकता हूं।
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आज गुप्ता जी एफआइआर का ड्राफ्ट तैयार करके दे गये हैं। मेरे सामने रखा है। गुप्ता जी ने राई रत्त्ती सही बातें लिखी हैं और मेरा पक्ष बहुत मजबूत बनाया है। सिर्फ गिफ्ट डीड वाले मामले को छोड़ कर।
बहू से या उसके पिता से बात करने के रास्ते उन्होंने बंद कर दिये हैं। अब पुलिस की मौजूदगी में ही बहू से आमने सामने बात होगी।
कर पाऊंगा मैं ये सब? अपनी बहू के खिलाफ घर पर पुलिस को बुलवा पाऊंगा? कह पाऊंगा कि बहू गुजारे के पैसे नहीं देती। उसके बाद कभी बहू से आंखें मिला

डायरी यहीं तक है। आखिरी वाक्य अधूरा है और वहां कुछ धब्बे देखे जा सकते हैं। निश्चित ही वे आंसुओं के निशान हैं। शायद वे आखिरी वाक्य पूरा करने से पहले ही रोने लगे हों। काफी देर तक रोते रहे हों और जब लेटे हों तो हमेशा हमेशा के लिए नींद में ही चले गये।
डायरी पढ़ने के बाद मेरा दिमाग सुन्न हो गया है। मैं कुछ भी कहने सुनने की हालत में नहीं हूं। बार-बार लग रहा है कि उनकी हत्या की गई है। दो तीन किस्तों में। पहले वार उनके बेटे ने किये थे और उसके जाने के बाद उन्हें मारने की कमान उसकी बीवी ने संभाल ली थी। आज उन्हें पूरी तरह से मार दिया गया है।

क्या मेरी तरह आपको भी नहीं लगता कि यह हत्या का मामला है।
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