शनिवार, 11 जुलाई 2015

राजकमल चौधरी – आजीवन कठघरे में खड़ा लेखक



हिन्दी और मैथिली के प्रसिद्ध कवि एवं कहानीकार राजकमल चौधरी (1929 -1967)  का मूल नाम मणीन्द्र नारायण चौधरी था। दोस्‍तों के लिए वे फूलबाबू थे। राजकमल की माता की मृत्यु के उपरान्त उनके पिता मधुसूदन चौधरी ने राजकमल की उम्र की जमुना देवी से पुनर्विवाह कर लिया था। इस शादी की वजह से राजकमल कभी भी अपने पिता को माफ़ नहीं कर सके और पिता के देहावसान के बाद भी राजकमल ने अपने पिता को मुखाग्नि नहीं दी थी लेकिन श्राद्धकर्म पूरे किये थे।
राजकमल मित्रों के बीच बेहद लोकप्रिय थे। वे महिला मित्र बनाने में माहिर थे। उन्‍होंने पहला प्‍यार शोभना से किया। पहली शादी शशिकांता चौधरी से। दूसरी शादी सावित्री शर्मा से और दूसरा प्रेम सावित्री की भतीजी संतोष से किया। बेशक लगाव पहली पत्‍नी शशिकांता से बना रहा।
अपनी शुरूआती पंक्तियाँ उन्‍होंने स्कूल की पुस्तिका पर लिखी थीं। अब तक अप्रकाशित। राजकमल चौधरी की रचनात्मकता मैथिली, हिंदी एवं बंगाली में रही बेशक अंग्रेजी में भी कुछ कवितायें लिखीं। मैथिली में उन्होंने करीब 100 कवितायें, तीन उपन्यास, 37 कहानियाँ, तीन एकांकी और चार आलोचनात्मक निबंध लिखे। उनका अधिकांश लेखन उनके जीवन काल में अप्रकाशित रहा।
उन्होंने हिंदी की तुलना में मैथिली में ज्यादा समय तक लिखा, लेकिन उनका हिंदी साहित्य में योगदान विपुल है। हिंदी में उन्होंने आठ उपन्यास, करीब 250 कवितायें, 92 कहानियाँ, 55 निबंध और तीन नाटक लिखे। ज्‍यादातर लेखन कलकत्ता में किया इसीलिए उनके लेखन में कलकत्ता, वहाँ का जीवन, वर्ग-संघर्ष का बहुधा चित्रण मिलता है।
राजकमल के रचनाकर्म में निर्भीकता के फलस्वरूप उनके कई समकालीन साहित्यकारों ने उनके रचनाकर्म को काफी हेय दृष्टि से देखा और उनकी उपस्थिति को दरकिनार किया एवं बहिष्कार किया। उनकी सोच अपने समय से बहुत आगे की थी। राजकमल चौधरी पर आरोप लगता रहा कि वे अश्‍लीलता, नग्‍नता और विद्रूपता परोसते हैं और कथ्‍य और टेक्‍नीक के धरातल पर अपठनीय और कम पसंद आने लायक रचनाकार हैं। नदी बहती थी', ‘देहगाथा' एवं ‘मछली मरी हुई' उनके काफी चर्चित उपन्‍यास हैं।
राजकमल का जीवन, लेखन, मृत्‍यु सभी कुछ विवादास्‍पद रहा। उन्‍हें मृत्‍यु के बाद भी नहीं बख्‍शा गया। वे हमेशा विवादों से घिरे रहे और बिरादरी बाहर भी रहे। राजकमल का विद्रोह सिर्फ राजनीति के प्रति ही नहीं, उन्‍होंने पूंजीवादी व्‍यवस्‍था की विद्रूपता का भी चित्रण किया है। अनेक लघु पत्रिकाओं युयुत्‍सा, लहर, आधुनिका, दर्पण, निवेदिता, आरंभ, नई धारा आदि के अतिरिक्‍त मैथिली पत्रिकाओं ने राजकमल विशेषांक प्रकाशित किए, जिनमें प्रकाशित सभी लेख उन अपशब्‍दों का विरोध करते हैं और राजकमल की प्रशंसा की गयी और दूसरी तरफ वे अपमान और दंश झेलते रहे।
अपनी पीढ़ी के कुछ थोडे़ से ईमानदार कवियों और व्‍यक्‍तियों में से एक राजकमल को अपने 37 वर्षों के अल्‍पजीवन में घोर उपेक्षा, अपमान और आत्‍मनिर्वाचन का शिकार होना पड़ा था। वे ‘भूखी' और ‘बीट' पीढ़ी के प्रतिनिधि कवि थे। उन्‍होंने कथ्‍य और टेक्‍नीक का एक नया धरातल स्‍थापित किया था। वे राजनैतिक रूप से सजग और जिम्‍मेदार रचनाकार थे।
आज तक हिन्‍दी जगत ने संभवतः उन्‍हें माफ नहीं किया है। अब जा कर उनका संपूर्ण साहित्‍य एक साथ प्रकाशित हो कर आया है। 

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