बुधवार, 11 मार्च 2009

युवा पुत्र की अकाल मौत से उपजे शून्‍य में घुटता परिवार

बेंगलूर में रहने वाले मेरे मित्र के जवान बेटे की पिछले बरस नवम्‍बर में रात के वक्‍त एक सड़क दुर्घटना में मृत्‍यु हो गयी थी। बेचारा डेढ़ घंटे तक सड़क पर घायल पड़ा रहा। मां परेशान हाल मोबाइल से उससे बात करने की कोशिश कर रही थी। तभी वहां से गुज़र रहे किसी मोटर साइकिल सवार ने उसके बजते मोबाइल की आवाज सुनी। वह रुका और उसका मोबाइल अटैंड किया। उसी व्‍यक्ति ने तब बताया कि आपका बेटा तो यहां बेहोश पड़ा हुआ है। मोटर साइकिल अलग पड़ी हुई है। माता पिता लपके उसकी बतायी जगह पर। तब तक वह भला आदमी एक दो लोगों की मदद से उसे पास के अस्‍पताल तक ले जा चुका था। वे उसके बताये अस्‍पताल की तरफ मुड़े।
बच्‍चा अभी भी बेहोश था और उसके सिर पर पीछे की तरफ से खून बह रहा था। रात ग्‍यारह बजे से लगभग बारह बजे तक अपनी तरफ से उसे होश में लाने, खून देने और इलाज शुरू करने की नाकाम को‍शिशें करने के बाद अस्‍पताल के स्‍टाफ ने हाथ खड़े कर दिये और उसे किसी बड़े अस्‍पताल ले जाने के लिए कह दिया। दूसरे बड़े अस्‍पताल में भी यही हुआ कि वे न तो लगातार बहता खून रोक पाये और न ही खून चढ़ा ही पाये हालांकि मेरे मित्र लगातार डाक्‍टरों को बताते रहे कि उनका ब्‍लड ग्रुप और बेटे का ब्‍लड ग्रुप एक ही है। डॉक्‍टर बार बार अंदरूनी चोटों की बात करते रहे और यही कहते रहे कि हम नब्‍ज ही नहीं पकड़ पर रहे हैं।
रात लगभग सवा एक बजे डॉक्‍टरों ने हाथ खड़े कर दिये और एक होनहार नौजवान अस्‍पताल में और डॉक्‍टरों की देखरेख में होने के बावजूद दम तोड़ गया।
जो लोग उसे अस्‍पताल ले कर गये थे उन्‍हीं में से एक ने बाद में बताया था कि उसने लड़के की मोटर साइकिल को डिवाइडर से टकराते और उसे गिरते देखा था और उसने उसी के मोबाइल से एम्‍बुलेंस के लिए 102 पर फोन भी किया था। लेकिन लगभग सवा घंटे तक कोई भी मदद उस तक नहीं पहुंच पायी थी। जिस जगह दुर्घटना हुई थी, वह बेंगलूर के अंतर्राष्‍ट्रीय हवाई अड्डे पर जाने वाली सड़क पर है लेकिन किसी ने भी रुक कर उसकी मदद नहीं की। वह चश्‍मदीद गवाह इस संभावना से भी इनकार नहीं करता कि शायद उसे किसी तेज चलते वाहन ने टक्‍कर मारी हो।
मेरे मित्र और उनका परिवार हक्‍का बक्‍का है और समझ नहीं पा रहा कि ये सब कैसे हो गया और वे कुछ भी नहीं कर पाये। वे दोनों अस्‍पतालों में डॉक्‍टरों के आगे हाथ जोड़ते, गिड़गिड़ाते रहे और ढंग से इलाज शुरू तक नहीं किया गया। सिर से बहते खून को रोकने के लिए भी कुछ नहीं किया गया।
शाश्‍वत मिश्र होनहार लड़का था और नौकरी करते हुए एमबीए कर रहा था। मात्र बाईस बरस की उम्र। बहुत सारे शून्‍य छोड़ गया है वह अपने पीछे। ये स्‍थायी सवाल तो हर बार की तरह है ही कि लोग बाग़ रोज़ाना सड़कों किसी वजह से दुर्घटनाग्रस्‍त हो गये लोगों की मदद करने में अब भी आगे नहीं आते। एंबुलेंस के लिए फोन किये जाने के बावजूद डेढ़ घंटे तक वह नहीं आती। डॉक्‍टर इस तरह के एमर्जेंसी मामलों में भी रूटीन तरीके से ही काम करते हैं और घायल की जान बचाने की कोशिश नहीं करते। मैं खुद पिछले अट्ठाईस बरस से मुंबई में देख रहा हूं कि लोकल ट्रेनों से होने वाली अलग अलग दुर्घटनाओं में घायल होने वाले सैकड़ों लोग स्‍टेशनों पर ही घंटों पड़े रहते हैं और उनमें से ज्‍यादातर इलाज के इंतजार में दम तोड़ देते हैं।
मेरे मित्र को कुछ और सवाल परेशान कर रहे हैं। ये सब हुआ कैसे। कहीं किसी ने .. लेकिन किसी भी आशंका या संभावना के लिए पुलिस को पक्‍का गवाह चाहिये।
मेरे दोस्‍त की एक और परेशानी है और वे कुछ भी तय नहीं कर पा रहे। जिस कम्‍पनी में शाश्‍वत काम पर लगा था, वहां के नियमों के अनुसार सभी कर्मचारियों की बीमा कराया जाता है। अब मेरे मित्र का संकट ये है कि बीमे में मिली इतनी बड़ी रकम का करें क्‍या। बेटे की जान की कीमत में मिली ये रकम उन्‍हें परेशान किये हुए है। वे शाश्‍वत के पिछले स्‍कूलों और कॉलेज में उसकी याद में स्‍कॉलरशिप शुरू करना चाहते हैं, अपने भूले बिसरे गांव में बच्‍चों के लिए कुछ करना चाहते हैं लेकिन बीमे की रकम निश्चित रूप से ज्‍यादा है और इस तरह की स्‍कालरशिप में पूरी राशि खर्च नहीं होगी। ये रकम उन्‍हें लगातार दबाव में रखे हुए है। वे कुछ करना चाहते हैं लेकिन तय नहीं कर पा रहे कि कैसे क्रिएटिव तरीके से इस राशि का सदुपयोग करें।
मुझे विश्‍वास है मेरे ब्‍लॉगर मित्र आगे आयेंगे और उन्‍हें कोई राह सुझायेंगे।

9 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

सूरज प्रकाश जी,
सड़क दुर्घटनाएँ इस युग का कैंसर हो चुकी हैं। आप के मित्र को बड़ी रकम मिल गई है और उसे खर्च करना चाहते हैं।
सड़क दुर्घटना में किसी कि मृत्यु हो जाने उन के आश्रित बड़ी संख्या में असहाय हो जाते हैं। जो बच जाते हैं उन में से अनेक हमेशा के लिए अपंग हो जाते हैं। इन लोगों को सहायता पहुँचाने के लिए कोई संस्था का आरंभ उस राशि से किया जा सकता है। लेकिन इसे स्थायित्व देने के लिए इस संस्था को लगातार पैसा मिलता रहे ऐसी व्यवस्था भी करनी होगी।

नीरज गोस्वामी ने कहा…

ऐसी घटनाएँ हमारे जीवन में बढ़ते शून्य की और ईशारा करती हैं...अब किसी के पास न संवेदना है और ना ही समय सब अपने संसार में रहना चाहते हैं...इस्तिथि भयावह है...किसी की निस्वार्थ भावः से सेवा करने में भी लुटने का भ्रम रहता है...विकत प्रश्न पूछा है आपने...क्या कहें?

नीरज

ghughutibasuti ने कहा…

बहुत दुखद घटना हुई। वे इस बीमे के पैसे का सदुपयोग करना चाहते हैं जानकर खुशी हुई। कोई ऐसा फंड बनाया जा सकता है जो किसी हस्पताल में दुरघटनाग्रस्त लोगों की तब तक चिकित्सा के लिए उपयोग किया जा सके जब तक परिवार वाले वहाँ नहीं पहुँचते। फिर यदि वे यह पैसा चुका सकें तो उनके बिल में डाला जाए अन्यथा इसी फंड में से चुकाया जाए।
घुघूती बासूती

बेनामी ने कहा…

bahut dukh hua shashwat ke nidhan ki khabar padhakr aur kshobh hua logoN ki samvedanheenata per. yadi log ye sochein ki iss jagah oonka bhee beta ya beti ho sakta thaa tow shayad dil meiN kucch harqat ho.


shshwat ke papa accident se hue apahij logon ko artificial pair, haath etc mein honewale kharch ko de sakte hain. kisi bhee sanstha ko shuru karna bahut aasan hai per nirantar chalaye rakhana mushkil. bahut dhand-phand karne hote hain phir main purpose haashiye per chala jaata hai. hum dost jaldi kucch aisa rasta khoj nikalenge ki beema ke paise ka sahi istemaal kiya jaa sake.

बेनामी ने कहा…

मेरे विचार में अपने पुत्र के नाम से एक न्यास शुरू करें। बीमे की धनराशि उसी में डालें और धर्मान्द के कार्य जैसे स्कॉलशिप पुरुसकार, गरीब बच्चों की शिक्षा के लिये पैसे दिये जा सकते हैं। अपने देश में इतनी मुश्कलें हैं कि कितना भी पैसा हो वह कम पड़े।

Archana Chaoji ने कहा…

बहुत पीडादायक होता है क्षतिपुर्ति की राशि को इस्तेमाल करना । आपके मित्र एवं उनके परिवार के लिये सांत्वना के कोई शब्द नही है मेरे पास ,अपने दिल मे उनके दर्द को महसूस कर रही हू मै । वे इन पैसों से किसी ऐसे बच्चे की फ़ीस भर सकते है जो फ़ीस न दे पाने की वजह से एम. बी. ए. नही कर पा रहा हो,और अगर राशी ज्यादा हो तो हर वर्ष एक "शाश्वत" की फ़ीस दी जा सकती है।अंत मे यहाँ गीता-सार लिखना चाहूँगी---
"परिवर्तन संसार का नियम है,जिसे तुम म्रत्यु समझते हो,वही जीवन है। एक क्षण मे तुम करोडों के स्वामी बन जाते हो,दूसरे हि क्षण मे तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा,छोटा-बडा,अपना-पराया,मन से मिटा दो,फ़िर सब तुम्हारा है तुम सबके हॊ।"

Archana Chaoji ने कहा…

बहुत पीडादायक है क्षतिपुर्ती की राशि को उपयोग मे लेना ।आपके मित्र के लिए सांत्वना के कोई शब्द नहीं है मेरे पास,बस उनके दुःख को अपने दिल मे महसूस कर रही हूँ मै ।
वे ऐसे किसी बच्चे की एम.बी.ए.की फ़ीस दे सकते है जो फ़ीस न दे पाने की वजह से एम.बी.ए. नही कर पा रहा है( हो सकता है वे उस बच्चे को अपने गाँव मे ही ढूँढ लें ) अगर राशी ज्यादा है तो वे हर वर्ष एक "शाश्वत" को एम.बी.ए. करवा सकते हैं।
अंत में गीता-सार लिखना चाहूँगी-----
"परिवर्तन संसार का नियम है,जिसे तुम म्रत्यु समझते हो,वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोडों के स्वामी बन जाते हो,दूसरे हि क्षण मे तुम दरिद्र हो जाते हो।
मेरातेरा,छोटाबडा,अपना-पराया मन से मिटा दो,फ़िर सब तुम्हारा है,तुम सबके हो।"

दीपा पाठक ने कहा…

दुखी परिजनों के प्रति हार्दिक संवेदनाएं।

रवि रतलामी ने कहा…

गरीब बेसहारा बच्चों को सपोर्ट करने वाली एक प्रतिबद्ध संस्था है - CRY. वहाँ आँख मूंद कर दान दिया जा सकता है. कितनी भी बड़ी राशि कम होगी. विवरण यहां से लें -

http://cry.org