शुक्रवार, 29 अगस्त 2008

कुछ अनछुए पल कमलेश्वर जी के साथ - प्रिया आनंद

ये रचना और साथ में चित्र मेरी टेलिफोन मित्र प्रिया आनंद ने हिमाचल प्रदेश से भेजे हैं. कमलेश्‍वर जी से जो भी मिला, उनका मुरीद हो गया. प्रिया मैडम ये दुर्लभ तस्‍वीरें मेरे ब्‍लाग के माध्‍यम से आप सब के साथ शे‍यर कर रही हैं. उनका स्‍वागत है.

सूरज प्रकाश

हिमाचल का एक प्यारा सा शहर मंडी

शिखर समारोह 2006 के एक दिन पहले वाली शाम मैं मंडी के ब्यूरो आफिस में थी। रात के दस बजे तक मैं और अजय (ब्यूरो) जागते ही रहे थे। संकन गार्डन के पुरातन घंटाघर से गजर की आवाज सुनाई दी, तो उस समय मेरे दिमाग में यही चल रहा था कि कल बहुत सारे ऐसे लोगों को देखूंगी, जिन्हें अब तक मैंने सिर्फ पढ़ा था। शाम भी देर तक मैं और अजय इंदिरा मार्केट में घूमते रहे थे। इस मार्केट को देखकर अचानक ही लखनऊ के गड़बड़झाला बाजार की याद आ गई। कुछ-कुछ वैसा ही माहौल था। हम सीढियों से उतर कर संकन गार्डन में गए। मंडी के बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों की यहां सबसे ज्यादा बैठकें होती हैं। वहां बात यही चल रही थी कि कल कमलेश्वर जी आने वाले हैं।
- कमलेश्वर नहीं... पहाड़ों में आग आ रही है। किसी ने कहा था।
रात उनसे मेरी फोन पर बात हई। मैंने कहा आपका मंडी में स्वागत है।
``मंडी आ तो गया हूं, पर यह पता नहीं लग रहा है कि पूर्व में हूं या पश्चिम में´´ हंसकर उन्होंने कहा था।
अगले दिन विपाशा सदन में लेखकों का यह महाकुंभ आरंभ हुआ।


चित्रा मुद्गल, प्रभाकर श्रोत्रिय, लीलाधर जगूड़ी, राजेंद्र प्रसाद पांडेय, राजी सेठ, जया जादवानी और भारतीय दूरदर्शन के प्रथम स्क्रिप्ट राइटर कमलेश्वर। उनके अलावा और भी साहित्यकार थे।
सत्र का विषय था - मैं क्यों लिखता हूं।


``मैं यह नहीं कहूंगा कि किसी लड़की ने मेरा दिल तोड़ा है, इसलिए लिखता हूं कमलेश्वर जी ने मंच पर घोषित किया... लोग हंस दिए। इसके बाद उन्होंने अपनी बात शुरू की। शब्द... शब्द जैसे मोतियों की लडियां पिरोई जा रही हों।
उन्होंने कहा - यह सिल्क रूट की तरह साहित्य संस्कृति का चौराहा है, इसलिए मंडी है।´´ बात चली तो यशपाल, गुलेरी से होकर ओरवेल पामुक तक आ गई।
एक के बाद एक साहित्यकार बोलते गए। सत्र समाप्त हुआ।
ब्रेकफास्ट के दौरान मुझे शरारत सूझी, मैंने अपनी दोस्त से कहा... चल कमलेश्वर जी को छकाते हैं। साथ-साथ चलते हमने उन्हें एक क्षण के लिए रोका और उनके अगल-बगल हो लिए... काफी करीब।

तस्वीर बीरबल शर्मा ने खींची और एक उम्दा शरारत उसने भी की। कैमरे का फोकस सिर्फ मुझ पर और कमलेश्वर जी पर ही रखा। यह उसी शरारत की तस्वीर है। यह तस्वीर शाम धुलकर आई तो लोगों ने कहा, ऐसा नूर तुम्हारे चेहरे पर कभी नहीं आया। कैसे कहती कि जिस सूरज की तपिश मेरे साथ थी यह रौनक उसी से आई थी।
कमलेश्वर जी ने गायत्री जी से मेरा परिचय करवाया।
डाइनिंग हाल तक हम फिर साथ-साथ ही रहे।
सामने मुख्यमंत्री और कमलेश्वर जी, इधर मैं, गायत्री जी तथा कुछ अन्य लोग। इसी बीच मेरे मित्र अशेष ने मेरे पास आकर कहा... सारे पत्रकार उधर खड़े होकर खा रहे हैं, तुम यहां क्यों बैठी हो...?
``आपके राज्य अतिथि मेरे आत्मीय हैं, इसलिए उन्होंने मुझे यहां बिठा रखा है´´, मैंने जवाब दिया था।
खाना खत्म हुआ, लोग धीरे-धीरे धूप में आ गए।
हम धूप में ही कुर्सियों पर बैठे... कमलेश्वर जी, गायत्री जी और मैं।
मैंने कमलेश्वर जी से कहा- आप आज के दिन के लिए मेरी डायरी पर कुछ लिख दें। मैंने डायरी उन्हें थमा कर कैमरा फोकस कर लिया। मेरी डायरी हाथ में थामे उन्होंने ब्यास दरिया के बहते पानी पर एक नजर डाली और फिर ऊंचे हरे पहाड़ों को देखा। उसी वक्त वह पल मैंने कैमरे में कैद कर लिया।
कमलेश्वर जी और गायत्री जी की यह उसी समय की तस्वीर है। मेरी डायरी पर उन्होंने लिखा-
प्रिया के लिए....।
अपने समय के यथार्थ को समझना और सहेजना ही लेखक का धर्म है। कमलेश्वर 8-12-2006...
तब मुझे जरा भी नहीं पता था कि यह उन्हें मैं आखिरी बार देख रही हूं।


यह रोचक ही रहा कि जितने दिन कमलेश्वर जी मंडी में रहे, सूरज चमकता रहा और सारा शहर धूप में नहाया रहा। पर उनके जाते ही धूप गायब... बर्फ, बारिश... ठंडा घना कोहरा।
क्या सचमुच यह धूप कमलेश्वर जी की आग की थी...?
प्रिया आनंद, दिव्‍य हिमाचल,

2 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

कुछ व्यक्ति होते ही इतने विलक्षण हैं की उनके व्यक्तित्व की स्थाई छाप मन मश्तिक्ष पर अंकित हो जाती है...कमलेश्वर भी उनमें से ही थे.
नीरज

vipinkizindagi ने कहा…

अच्छी पोस्ट