शुक्रवार, 2 नवंबर 2007

कुछ और चिरकीं

भाई बोधिसत्‍व ने जब शुरुआत कर ही दी है तो स्‍वाभाविक है कि सब साथी अपने अपने दिमाग की हार्ड डिस्‍क में तलाशेंगे कि शायद कहीं चिरकीं की कोई फाइल डिलिट होने से रह गयी हो. तो लीजिये पेश है, हमारी याद में जो थे चिरकीं-
चिरकीं प्रसंग से पहले दो एक बातें
• रूस में चिरकिन कई लोगों का सरनेम हुआ करता है.. इस नाम वाले कवि विद्वान और कवि वहां हुए हैं.
• चिरकीं दुनिया में अकेले ऐसे कवि नहीं थे जो अपनी रचना का आधार वहां से तलाशते थे.. फ्रांस, इंगलैंड में भी ऐसे कवि हुए हैं जिन्‍होंने गू, पाद, हगने की आदतों, और गू की ईश्‍वरीय खासियतों को अपनी रचना का आधार बनाया है.
• फ्रांस के Euslrog de Beaulieo, Gilles Corrozal और Piron, इंगलैंड के स्वि‍फ्ट ऐसे ही कवि हैं.
कुछेक बानगियां देखिये
Gilles Corrozel की कविता हैः
"Recess of great comfort
Whether it is situated
in the fields or in the citys
Recess in which no one dare enter
Except for cleaning his stomach
Recess of great dignity"

इसी तरह से फ्रांस के Euslrog de Beaulieo अपनी कविता में पाखाने की तारीफ यूं करते हैं :

"When the cherries become ripe
Many black soils of strange shapes
Will breed for many days and urgents
Then will mature and become products of various colours and breaths"

एक अन्‍य फ्रांसीसी कवि पिरॉन की कविता यूं हैः

"What am I seeing oh! God
It is night soil
What a wonderful substance it is It is excreted by
the greatest of all Kings
Its odour speaks of majesty"

• एक वक्‍त गू महिमा का ये आलम था कि दाइयां बच्‍चे की पहली टट्टी देख कर उसके भविष्‍य के बारे में बता दिया करती थीं. ये तो अपने भारत में ही पंजाब के कुछ हिस्‍सों में होता रहा है कि अगर किसी परिवार में कई कन्‍याओं के बाद अगर लड़का पैदा होता था या विवाह के कई बरस के बाद लड़का पैदा होता था तो बच्‍चे की दादी बच्‍चे का पहला गू (बेशक जरा सा ही और दलिये में मिला कर) खाती थीं.
• चिरकीं के नाम को ले कर मतभेद हैं कि वे चिरकीन थे, चिरकिन थे या चिरकीं लेकिन वे जो भी थे, लाजवाब थे.
मेरे कलेक्‍शन में उनकी कुछ और रचनाएं हैं. शब्‍द आगे पीछे हो सकते हैं. लेकिन मूल भाव यही रहे होंगे.
• पाठकों के पास अगर इनके मौलिक संस्‍करण हों तो स्‍वागत है.
1. जो भी कमाऊंगा मैं अब सब का सब लगाऊंगा पाखाने में
जब अगली दफा घर आऊंगा तेरे कभी नहीं मूतूंगा वहां पे.
2. कल जो उनकी याद में दस्‍त ऐसा आ गया
पोंक से दीवार पर तस्‍वीर उनकी बन गयी
3. जिधर देखता हूं उधर तू ही तू है
इधर टट्टियां हैं, उधर गू ही गू है
4. टूं को टंकारो पूं की पिचकारी
ठस वस सब छोड़ो भइया, फुसकारी की बलिहारी
5. गुरुड़ गुरुड़ मेरा पेट करे
निकल लेंड हत्‍यारे

6. दर्द करता है निकलता क्‍यों नहीं
क्‍या मैं हौवा हूं जो तुझे खा जाऊंगा.

7. गर पाखाने में आग लग गयी
तो उसे मूत कर बुझाऊंगा.

9 टिप्‍पणियां:

बालकिशन ने कहा…

वाह!!! एक और जमीन से जुड़े साहित्यकार के पर्शन हुए आज.
(देखने से "दर्शन"--- पढने से "पर्शन")

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

क्या बात है. आजकल पूरा ब्लॉगजगत चिरकिन्मय हो गया. खैर होना भी चाहिए. क्योंकि चिरकिन्मय होना कम-से-कम अक्षरों की मात्रा के हिसाब से टू बड़ी बात है ही.

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

क्या बात है. आजकल पूरा ब्लॉगजगत चिरकिन्मय हो गया. खैर होना भी चाहिए. क्योंकि चिरकिन्मय होना कम-से-कम अक्षरों की मात्रा के हिसाब से टू बड़ी बात है ही.

विशाल श्रीवास्तव ने कहा…

वाकई चिरकीन की आत्मा को अब .... शान्ति मिली होगी...

आपके लिंग प्रकरण पत्रिका पर पढ़ लिया था आज आपके ब्लाग पर आने का अवसर मिला

Yunus Khan ने कहा…

अरे भई आप लोगों ने अच्‍छा सिलसिला कायम रखा है । दीवाली से पहले ही पटाखे बम छोड़ने शुरू कर दिये हैं । लगता है दीपावली पर विशेष चिरकिन मुशायरे का आयोजन करना होगा ।

और हां । अगर कोई हर्ज ना हो तो ये वर्ड वेरीफिकेशन को अलविदा कह दीजिये ना ।
काहे तकलीफ देते हैं शैदाईयों को ।

बोधिसत्व ने कहा…

आप सब के लिए एक सलाह है कि ब्लॉग जगत में पक्की सफलता के लिए नित्य प्रात: काल में दस जुदा-जुदा चिरके का दर्शन करें। और एक सौ आठ बार ऊँ चिरकाय नम: का जाप करें। चिरकीन जी की कृपा रही तो हर काम में हाथ लगाते ही सफलता हाथ में चिरक जाएगी।

madhu ने कहा…

bahut kharab bhasha istemaal kee hai. shabdoN ke istemaal mein maryada rakhiye. ye bhee koi baat huyee ki koi site mil gayee tow valgurity per aa gaye. chirkee ki mahima itnee hi kafee hai.

madhuri

सृजनगाथा ने कहा…

आपकी कहानियों को यहाँ देखकर तोष हुआ । हमारे तरफ भी इनायत करते रहें ।

Kuwait Gem ने कहा…

suraj ji,ye kya likh rahe ho,chirki nikalne se pahale khana padta hai,bhook ke sangharsh ka kya hoga?bodhi ya bodhi jese tamam log bhare pet he is liyeunhe sirf chirki hi yaad ati hai.abhi ek comment tha ,me us se agree hun.chandrapal.(mera loptop kharab hone ki vajah se mughe cyber se english me comment karna padh raha he is ke liye maaf karna sir.)jald hi hindi aa jaye gi.