मंगलवार, 30 अक्तूबर 2007

कहानीकार अस्‍पताल में

प्रवासी कहानीकार अस्‍पताल में है. नानावती अस्‍पताल, मुंबई, वार्ड नम्‍बर 16बी, रूम नम्‍बर 335बी. वैसे घबराने की कोई बात नहीं है. बस, थोड़ी शारीरिक तकलीफें पैं‍डिंग चल रही थीं सो सबका इलाज करवाने लंदन से आये हैं. आप पूछेंगे भला, ये उल्‍टे बांस बरेली को क्‍यों. हमारे नेता तो मामूली जुकाम का इलाज कराने लंदन और पता नहीं कहां चले जाते हैं. तो भई सीधी सी बात है. हमारे कहानीकार मित्र बता रहे हैं कि वहां इलाज कराने के दो तरीके हैं. पहला है नेशनल इंश्‍यूरेंस स्‍कीम में और दूसरा प्राइवेट. जहां तक पहले तरीके से इलाज कराने का सवाल है तो छः महीने में तो टैस्‍ट ही पूरे नहीं होते. इलाज कब शुरू होगा ये वहां की रानी जाने या ऊपर वाला गॉड. तभी तो उनका राष्‍ट्रीय गीत ही ये है- गॉड सेव द किंग. यानी वहां के राजा को भी अपने डॉक्‍टरों पर भरोसा नहीं. तो अपन को कैसे होगा. आखिर वहां भी तो अपनी ही भारतीय बिरादरी के डॉक्‍टर हैं. और जो दूसरा तरीका है इलाज का, वो इतना महंगा है कि दो कन्‍सलटैंसी कराने में ही 400 पाउंड खुल जायें. इलाज तो बाद में शुरू होगा. और इन 400 पाउंड में ही इंगलैड से भारत आने जाने का टिकट कटवा कर हमारे प्रवासी कहानीकार मित्र इलाज करवाने इंडिया चले आये हैं.
वैसे शिकायतें मामूली हैं. चौबीस बरस पुराना स्‍पौंडिलासिस, खर्राटे भरने की पुरानी आदत जिसकी वजह से अक्‍सर उनकी बीवी उन्‍हें बेडरूम से बाहर निकाल देती है और पिछले साल सिर में लगी गुम चोट की वजह से हुई तकलीफें. वे दायीं तरफ नहीं देख पाते, दायां हाथ ऊपर नहीं कर पाते और हर वक्‍त दायें कंधे में सनसनाहट सी महसूस करते रहते हैं. उनका इलाज शुरू हो गया है और गर्दन में आठ किलो का वजन लटका दिया गया है. बाकी एक्‍सरसाइज भी साथ साथ.
वैसे वे यहां चल रहे इलाज से बहुत खुश हैं लेकिन उनकी कुछ मौलिक तकलीफें हैं जो मैं आपके साथ शेयर कर रहा हूं.
जब हम उन्‍हें दशहरे के दिन अस्‍पताल ले जा रहे थे तो वे खुश थे कि दिन भर आसपास युवा और सुंदर नर्सें होंगी जो उनकी सेवा करेंगी और उनका दिल बहलाये रखेंगी (वे खुद हैंडसम हैं) पर हुआ ये कि सारी की सारी नर्सें लगता है कुपोषण की शिकार हैं. बाइ वन गेट वन फ्री वाली. कमजोर इतनी कि इंजेक्‍शन के सामान की ट्रे भी मुश्किल से उठा पायें. कहानीकार मित्र ने सोचा कि अपने हिस्‍से का खाना दे कर शायद उन्‍हें कुछ राहत दी जा सके लेकिन वहां तो आवां का आवां ही खराब है. सारी की सारी एक ही पैकिंग में सप्‍लाई वाली. बेचारे कहानीकार मित्र इसी बात को ले कर सारा दिन दुखी रहते हैं. वे आती हैं. कहती हैं- उठो अंकल. दवा का टाइम हो गया या इंजेक्‍शन लगाना है. बेचारे कुढ़ते रहते हैं.
उनका दूसरा दुख है कि 1998 में लंदन जाने से पहले उनके सैकड़ों मित्र थे जिनके वे हमेशा काम आते थे. अब दस बार फोन पर बताने के बाद भी कोई उनसे मिलने नहीं आता. जो आते हैं वे दो घंटे बैठ कर (विजिटिंग आवर्स दो ही घंटे हैं) पहले अपनी ग़ज़लें और कविताएं पेलते हैं, तब हाले मरीज पूछते हैं. इससे तो न ही आते तो बेहतर था.
कुछ मित्र हैं जिनके न आ पाने के बहाने ही खतम नहीं हो रहे. किसी को कुत्‍ते ने काट लिया है तो किसी की आंख के नीचे जल गया है और वे चश्‍मा नहीं पहन पा रहे.
दो दिन से हमारे मित्र और कुढ़े बैठे हैं. उनके एक करोड़पति मित्र हैं. सिनेमाई दुनिया के आदमी हैं. पहली बार मिलने आये तो मिठाई का एक डिब्‍बा दे गये. उनके जाने के बाद खोला तो कम से कम दस दिन पुरानी मिठाई थी जो खाने के लायक नहीं रही थी. अगले दिन दोबारा आये तो उनके हाथ में पानी की बोतल थी. दो घंटे अपनी लंतरानियां हांकते रहे. जाते समय अपनी बोतल में से आधा पानी कहानीकार मित्र की बोतल में डाल गये कि लो भइया. हम कुछ दे कर ही जा रहे हैं. मेरे मित्र की हालत क्‍या हुई होगी, आप अंदाजा लगा सकते हैं.
खैर करने को बातें तो बहुत सारी हैं. उन्‍हें अभी अस्‍पताल में ही रहना है कुछ दिन और. इस तरह के किस्‍से तो चलते रहेंगे.
आप चाहें तो वक्‍त निकाल कर उनसे मिलने जा सकते हैं या फोन करके हाल पूछ सकते हैं. उन्‍हें अच्‍छा लगेगा. उनका नम्‍बर है (0)9833959216. आप उन्‍हें kahanikar@gmail पर ईमेल करके भी उनके हाल पूछ सकते हैं.
अरे, मैं अपने प्रवासी कहानीकार का नाम तो बताना भूल ही गया.
वे है आप सबके परिचित तेजेन्‍द्र शर्मा.

11 टिप्‍पणियां:

बोधिसत्व ने कहा…

तेजेन्द्र जी एकददम चंगे हो जाँ तो मजा आए....
मैं उनके लिए दुआ करूँगा.....और उनके पानी और मिठाईवैले मित्र के लिए भी...

आपने तो कमाल ही कर दिया है भाई....
लिखना मुझे था लिख दिया आपने यह तो मुद्दे पर हाथ साफ करना हुआ....
पर मेरी सुस्त चाल का फायदा उठाने के लिए बधाई....

सुनीता शानू ने कहा…

आप आये हमारे ब्लोग पर शुक्रिया ...हम पहली बार आयें है यहाँ...बहुत अच्छा लिखते है आप...अब नियमित पढ़ा करेंगे शायद हम कुछ सीख सके आपसे...

हमारा गद्य लेखन का एक ब्लाग और है कभी फ़ुर्सत मिले तो देखियेगा...

http://shanoospoem.blogspot.com/
http://mereerachana.blogspot.com/

सुनीता(शानू)

Ashish Maharishi ने कहा…

हमारी शुभकामनायें

कथाकार ने कहा…

शुक्रिया अाशीष
आपकी शुभकामनाएं काम आयेंगी.
सूरज

Yunus Khan ने कहा…

कमाल है । तेजेंद्र जी मुंबई में हैं और खबर भी नहीं । चलिए उनसे बात की जाएगी ।
सूचना देने का शु्क्रिया ।

कथाकार ने कहा…

भाई युनुस
खबर देने का ये तरीका भी तो है. दिन भर में देश भर में खबर हो गयी. सब खुश
सूरज

Udan Tashtari ने कहा…

हमारी शुभकामनायें अति शीघ्र स्वास्थय लाभ के लिये.

शैलेश भारतवासी ने कहा…

अब इतने बड़े अस्पताल में हैं तो ठीक तो होना ही है, साथ ही साथ हमारी दुआएँ भी हैं।

कथाकार ने कहा…

भाई समीर जी
आपकी शुभकामनाएं सही पते पर पहुंच गयी हैं. वे स्‍वास्‍थ्‍य लाभा कर रहे हैं और अस्‍पताल के मैनेजमैंट ने भी ये ब्‍लाग पढ़ कर दो तीन हट्टी कट्टी नर्सें उनकी सेवा में तैनात कर दी हैं. वे चाहें या न चाहें अब तो वे सेवा करके ही जायेंगी. आपको पत्र् लखिा था, लौट आया.
सूरज

नीरज गोस्वामी ने कहा…

तेजेंद्र जी के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना के साथ कहना चाहूँगा की उन्होंने भारत आकर इलाज करवाने का बहुत सही निर्णय लिया है यहाँ कम से कम कोई दस दिन पुरानी मिठाई लेकर मिलने आ तो जाता है वहाँ तो हस्पताल मैं किसी परिचित की शक्ल देखने को आखें तरस जाती हैं.
सूरज जी आप बहुत अच्छा लिखते हैं, आज आप की अक्तूबर माह की सारी पोस्ट पढ़ डालीं, कार्ल मार्क्स की कब्र हो या मुम्बई के बारे मैं लेख आप ने कमाल का लिखा है.
मुम्बई में रहते हैं तो क्या सिर्फ़ बीमारों की ही ख़बर रखते हैं? यदि नहीं तो कभी हम से भी मिलने आईये मुम्बई के पास खोपोली में. दर्शन लाभ हम को और स्वास्थ्य लाभ आपको हो जाएगा, साथ में तेजेंद्र जी को भी लेते आयीयेगा, में यकीन दिलाता हूँ की उनको अपनी ग़ज़लें नहीं सुनाऊंगा.
नीरज .

कथाकार ने कहा…

भाई नीरज
आपका पत्र् ओर न्‍यौता, मेरा तो दिन बन गया भाई. मज़ा आ गया. मैं मुंबईकर
और पुणेकर होता रहता हूं हर हफते. कल जाऊंगा मुंबई कार से तो रास्‍ते में
आयेगा खोपोली जाने का रास्‍ता और आपको याद करूंगा.
आप दिलदार यार हैं और आपसे मिलर जरूरी हो गया है. देखें कब आते हैं
खोपोली. बस यूं जान लीजिये हमारे परिचित शहरों में एक नाम और जुड गया.